मुंबई: तिरुवनंतपुरम के एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता ने अपनी फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा’ की मंजूरी के लिए सेंसर बोर्ड से लड़ाई कर दी है. सनल कुमार शशिधरन की यह मलयालम फिल्म 23 सालों में पहली ऐसी भारतीय फिल्म हैं जिसे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव रॉटरडैम (आईएफएफआर) में टाइगर पुरस्कार मिलने वाला है. दरअसल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस फिल्म को निष्कर्ष निकाला है कि इस फिल्म के कारण लोगों की भावनाएं आहत हो सकती है.
इस बारे में फिल्म निर्माता ने कहा, ‘ इस फिल्म को अगले महीने होनेवाले स्टार 2017 जियो मुंबई फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किये जाने पर सेंसर बोर्ड ने रोक लगा दी थी, क्योंकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस फिल्म का निष्कर्ष निकाला है कि इस फिल्म के कारण लोगों की भावनाएं आहत हो सकती है.’ उन्होंने कहा कि इस फिल्म का किसी भी तरह से कोई धार्मिक संबंध नहीं है.
फिल्म पर रोक से शशिधरन नाराज और परेशान हैं. शशिधरन ने यहां तक कह दिया कि भारत ‘ईरान जैसा देश बनता जा रहा है.’ लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है और सेंसर बोर्ड से एक प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन किया है. सेंसर बोर्ड के लिए स्क्रीनिंग मंगलवार को हुई.
शशिधरन ने फोन पर आईएएनएस को बताया, ‘मैं सेंसर बोर्ड की राय का इंतजार कर रहा हूं. मैं इस बात को लेकर लड़ने जा रहा हूं. क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कलात्मक चीज रचने की स्वतंत्रता का सवाल है.’ उन्होंने आगे कहा,’ मैं चुप नहीं बैठूंगा. मैं इसके लिए अदालत जाकर अपील करुंगा और इस लड़ाई के लिए जो कर सकता हूं करुंगा.’
आईएफएफआर की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है कि राजश्री देशपांडे और कन्नन नायर की फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें दिखाया गया है कि एक पुरुष प्रधान समाज में जुनून और पूजा कैसे तेजी से उत्पीड़न और शक्ति के दुरुपयोग की मानसिकता पैदा करती है.
उन्होंने कहा कि, दुर्गा फिल्म का नायक है. मुझे यह बात पता है कि लोग कहेंगे, दुर्गा तो हमारी देवी हैं, लेकिन अगर ये मामला है तो सड़कों पर जानेवाली दुर्गा नाम की सभी महिलाओं की पूजा करें, लेकिन यह नहीं हो रहा है. मेरे कहने का मतलब है कि भारत में दुर्गा नाम सामान्य नाम है. यह सिर्फ देवी का नाम नहीं है. लेकिन आप देख सकते हैं कि उनके साथ इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता. जब उन्हें मदद की जरूरत होती है तो लोग उन्हें नकार देते हैं.’
फिल्म निर्माता ने आगे कहा, लेकिन जब एक फिल्म की शीर्षक का नाम आता है तो लोग चिल्लाने लगते हैं, रोने लगते हैं और कहते हैं कि इससे हमारी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही है.’ उन्होंने कहा,’ भारतीय फिल्म निर्माता सच्चाई पर आधारित फिल्में बनाने की हिम्मत दिखाते हैं, इसके लिए आंदोलन भी करते हैं, लेकिन वे (सरकार) इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं. यह बहुत ही मुश्किल समय है.’