नयी दिल्ली : निर्माता-निर्देशक करण जौहर का मानना है कि वैश्विक स्तर पर भारतीय फिल्मों को अब भी नाच और गाने के आसपास देखा जाता है और देश की सिनेमा के बारे में ऐसी गलतफहमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके विकास में बाधा डालती है.
‘टाॅयलेट : एक प्रेम कथा’, ‘पैडमैन’ और ‘बरेली की बर्फी’ जैसी प्रशंसित फिल्मों का उदाहरण देते हुए 45 वर्षीय फिल्म निर्माता ने कहा कि भारतीय फिल्मों में ‘छिपे हुए दृश्यों’ की तुलना में और बहुत अधिक है.
बर्लिन से एक साक्षात्कार में करण ने कहा, मैं बहुत उदास होता हूं जब देखता हूं कि पूरी दुनिया में भारतीय सिनेमा को गीत और नृत्य से जुड़ी धारणाओं से जोड़ा जाता है.
हमारी फिल्मों के बारे में यह रूढ़िवादी धारणा केवल तभी बदल सकती है जब हम मनोरंजन उद्योग के एक हिस्से के रूप में जाते हैं और लोगों को बताते हैं कि पेड़ों के इर्द-गिर्द अभिनेताओं के डांस करने के अलावा कहानी कहने और सामग्री के मामले में हमारे पास बहुत कुछ है.
उन्होंने कहा, भारतीय सिनेमा वैश्विक स्तर पर गलत धारणाओं का शिकार है. आमिर खान की फिल्मों ने चीन में बेहतर प्रदर्शन करके साबित कर दिया है कि हम वैश्विक स्तर पर काफी सफलता हासिल कर सकते हैं.