अन्नू कपूर. एक शानदार अभिनेता, एक बेजोड़ एंकर और एक लाजवाब किस्सागो. हरफनमौला कलाकार अन्नू कपूर आज अपना 62वां जन्मदिन मना रहे हैं. बहुमुखी प्रतिभा के धनी अन्नू कपूर का जन्म 20 फरवरी, 1956 को मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित इतवारा में हुआ. अन्नू कपूर के पिता पंजाबी थे, जबकि मां बंगाली.
करीब से देखी गरीबी
अन्नू के पिता मदनलाल पारसी थिएटर कंपनी चलाते थे, जो शहर-शहर जाकर गली-नुक्कड़ पर शो किया करती थी. उस दौर में इसे अच्छा काम नहीं माना जाता था और अन्नू का परिवार नौटंकीवाला कहा जाता था. पैसों की किल्लत भी रहती थी. थिएटर कंपनी कभी चली तो पैसे आये. नहीं चली तो पैसे नहीं आये. हालात कभी-कभी ऐसे भी हुए कि पूरे परिवार को भूखे पेट सोना पड़ा.
मां ने उठायी जिम्मेदारी
ऐसे वक्त में घर चलाने की जिम्मेदारी मदनलाल की पत्नी, कमल ने उठायी. उन्होंने एक बालवाड़ी में नौकरी की, वहां तक जाने-आने के लिए उन्हें लगभग 15 किलोमीटर का सफर तय करना होता था. बालवाड़ी में उन्हें 40 रुपये की पगार मिलती थी. अन्नू की मां कमल, एक कवयित्री और गायिका भी थीं.
ऐसी रही परवरिश
उन्होंने शादी के बाद कई भाषाएं सीखी थीं. उन्हें दूसरे धर्मों को जानने का भी शौक था. ये सारे लक्षण बच्चे अन्नू में भी आये. उसने कम उम्र में ही वेद, उपनिषद, कुरान, बाइबिल तक सब पढ़ डाली. साहित्य में उस बच्चे ने कबीर, सूर से लेकर चार्ल्स डिकेंस तक को पढ़ा. जाहिर है इन किताबों का असर उस बच्चे के दिमाग पर पड़ा, जो अब दिखता भी है.
चूरन, लॉटरी, पटाखे बेचे
अन्नू पढ़ाई में अव्वल थे, लेकिन परिवार की माली हालत खस्ता थी, इसे समझते हुए अन्नू कपूर ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चाय का स्टॉल लगाया. जब यह काम नहीं चला तो कभी चूरन के नोट, लॉटरी के टिकट तो कभी पटाखे बेचने लगे.
जब घर छोड़ा
अन्नू कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह 45 साल पहले घर छोड़कर लखनऊ चले गये थे. वहां एक लवलेन मार्केट थी और उसी की छत पर डिलाइट होटल था. जहां उनके जानकार, चोपड़ा जी का ऑफिस था. उस दौर में उन्हें वहीं पनाह मिली. अन्नू कहते हैं, मैं ऑफिस की बेंच पर रात में सोता था. लखनऊ और आसपास में जब कभी कोई स्टेज शो होता, तो मैं भी उसमें कभी पांच मिनट गाना गाता तो कभी मिमिक्री करता. उन शो में मुझे पांच-पांच रुपये मिलते थे. एक साल तक मैंने इस शहर में ऐसे ही अपना गुजारा किया.
नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला
अन्नू कपूर ने जब देखा कि उनका जीवन पटरी पर नहीं आ रहा है तो वह पिताके परसी थिएटर से जुड़ गये. भाई रंजीत कपूर (लेखक – निर्देशक) की सलाह पर उन्होंने वर्ष 1976 में नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया. यहां वह केके रैना, अनिल चौधरी, नसीरूद्दीन शाह, पंकज कपूर जैसे दिग्गज कलाकारों के संपर्क में आये. इसी दौरान थिएटर में एक नाटक के दौरान अन्नू कपूर ने 23 साल की उम्र में 70 साल के बूढ़े शख्स का किरदार निभाया था.
श्याम बेनेगल से जुड़ा कनेक्शन
इत्तेफाक से यह नाटक देखने के लिए फिल्म मेकर श्याम बेनेगल भी पहुंचे थे. उन्हें अन्नू की परफॉर्मेंस बहुत पसंद आयी. उन्होंने अन्नू के नाम उनकी तारीफ में एक चिट्ठी लिखी और मिलने के लिए बुलाया. इसके बाद श्याम बेनेगल ने उन्हें अपनी फिल्म में काम करने का ऑफर दिया और इस तरह अन्नू कपूर ने फिल्म ‘मंडी’ के साथ बॉलीवुड में डेब्यू किया.
अनिल बन गया अन्नू
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अन्नू कपूर का असली नाम अनिल कपूर है. लेकिन अभिनेता अनिल कपूर के साथ कोई गड़बड़ न हो, इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर अन्नू कपूर कर लिया. दोनों ने साथ में ‘तेजाब’, ‘जमाई राजा’ सहित कई फिल्में साथ की हैं.
‘एक रुका हुआ फैसला’
अन्नू कपूर ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1979 में एक स्टेज एक्टर के रूप में की, लेकिन उन्हें पहचान साल 1984 में ‘एक रुका हुआ फैसला’ से मिली. इसके बाद तो उनके सामने फिल्मों की बाढ़ आ गयी. बेशक उन्होंने मुख्य भूमिका न निभायी हो, लेकिन अपने बेमिसाल किरदारों के लिए वह आज भी जाने जाते हैं.
हर किरदार में फिट
चाहे ‘बेताब’ का चेलाराम हो, ‘चमेली की शादी’ का छदम्मी लाल हो या नये दौर में ‘ऐतराज’ का बैरिस्टर राम चोटरानी, ‘विक्की डोनर’ में डॉ बलदेव चड्ढा, ‘जॉली एलएलबी 2’ में एडवोकेट प्रमोद माथुर, अन्नू कपूर हर किरदार में फिट नजर आये हैं.
काम को सम्मान
इसके अलावा अन्नू कपूर को ‘द शौकीन्स’, ‘7 खून माफ’, ‘धर्म संकट’, ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’, ‘डर’, ‘तेजाब’, ‘हम’ जैसी फिल्मों में भी उल्लेखनीय भूमिकाएं निभा चुके हैं. फिल्म ‘विक्की डोनर’ में निभाये डॉक्टर के किरदार के लिए अन्नू कपूर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.
टीवी – रेडियो पर धूम
टीवी पर उन्होंने छोटे पर्दे के सिंगिंग रियलिटी शो ‘अंताक्षरी’ से घर-घर पहचान बनायी. दूरदर्शन पर आये उनके शो ‘करामाती’ और ‘स्मार्ट श्रीमती’ में भी उन्हें काफी पसंद किया गया. शो में उनका निराला अंदाज और साहित्य में उनकी पकड़ लोगों के दिलोदिमाग में बस गयी. इन दिनों वह रेडियो पर सुहाना सफर लेकर आते हैं, जिसमें वह अपने निराले अंदाज में फिल्मी दुनिया की कही-अनकही कहानियां सुनाते हैं.
गीत गाता चल ओ राही…
अन्नू कपूर एक एक्टर और कवि होने के साथ-साथ एक निर्माता और निर्देशक भी हैं. उन्होंने ‘अभय’ नाम की एक फीचर फिल्म का निर्देशन भी किया. इस फिल्म में नाना पाटेकर लीड रोल में थे. 1994 में इस फिल्म को बेस्ट चिल्ड्रन्स फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला. अन्नू कपूर ने बच्चों के लिए कई म्यूजिकल टीवी शो का निर्माण भी किया है. वह सब टीवी के म्यूजिकल कॉन्टेस्ट ‘आओ झूमें गाएं’ के निर्माता हैं. इन सब के अलावा अन्नू कपूर ने कई टीवी शो होस्ट किये हैं. जब वह स्टेज पर खड़े होकर बोलते हैं तो हर कोई सम्मोहित हो जाता है. हम दुआ करते हैं कि वह स्वस्थ और दीर्घायु हों, ताकि आगे भी हमारा मनोरंजन करते रहें.