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यहां दिखता है फुटबॉल का भविष्य : बाल विवाह से बचकर अब इंग्लैंड- रूस जा रहीं है झारखंड की बच्चियां

रांची : रांची जिले के कांके प्रखंड की हुंदूर पंचायत का चारी हुजीर गांव. इस गांव की पांच साल पहले कोई अलग पहचान नहीं थी. गांव में बाल मजदूरी, बाल विवाह जैसी गंभीर समस्या थी. पांच सालों में इस गांव की लड़कियों ने न सिर्फ अपनी पहचान बनायी बल्कि इन कुरीतियों को लात मारकर गांव […]

रांची : रांची जिले के कांके प्रखंड की हुंदूर पंचायत का चारी हुजीर गांव. इस गांव की पांच साल पहले कोई अलग पहचान नहीं थी. गांव में बाल मजदूरी, बाल विवाह जैसी गंभीर समस्या थी. पांच सालों में इस गांव की लड़कियों ने न सिर्फ अपनी पहचान बनायी बल्कि इन कुरीतियों को लात मारकर गांव से बाहर कर दिया. जो आदिवासी बच्चियां समय से पहले राजस्थान, हरियाणा जैसे बड़े शहरों में शादी के नाम पर बेच दी जाती थी अब इंग्लैंड और रूस जैसे देशों में फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रही है. इस टीम से 7 बच्चियां फुटबॉल की ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड जबकि दो बच्चियां रूस जा रहीं हैं.

इस गांव की गलियों में संघर्ष की कई कहानियां छुपी है. मैदान में जब बच्चियां पुरुषों को टक्कर दे रही होती हैं तो मैदान पर चल रहे संघर्ष से ज्यादा यहां तक पहुंचने का संघर्ष इन बच्चियों को जीत के लिए प्रेरित करता है. ऑस्कर फाउंडेशन इन बच्चियों को खेलने का मौका देता है. देश – विदेश के कई टूर्नामेंट में इन्होंने जीत हासिल की.
राजस्थान में हो रही थी शादी , अब जा रही है इंग्लैंड
प्रियंका कच्छप का चयन भारतीय टीम के लिए हुआ था. दो महीने गुजरात में ट्रेनिंग लेने के बाद अचानक चोट आ गयी. इस चोट के कारण वह आगे नहीं खेल पायीं. प्रियंका की शादी राजस्थान में तय हो गयी थी. मां चाहतीं थीं कि बेटी की शादी हो जाये. राजस्थान से आये लड़के वाले शादी का पूरा खर्च उठाने के लिए तैयार थे. मां को लगा बेटी विदा करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा. फुटबॉल की टीम में डिफेंस खेलने वाली प्रियंका अपने घर में हारने लगी थी. जब इसकी जानकारी कोच आनंद गोप और उनकी टीम को मिली तो उन्होंने परिवार वालों से बात की. मां नहीं मानी लेकिन पिता राजी हो गये. प्रियंका अब खेलने के लिए इंग्लैंड जा रहीं हैं. इस गांव में ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं.
सुविधाओं का अभाव
कांके प्रखंड की हुंदूर पंचायत के गांव चारी हुजीर, पाहन टोली, हलदामा, जीराबार व कादीटोली समेत कई गांव ऐसे हैं जहां ऑस्कर फाउंडेशन फुटबॉल के जरिये बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में लगा है. बच्चे फुटबॉल में इतना शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं कि कई जगहों से जीतकर ट्राफी लेकर आये हैं. इस जीत के बाद उन्हें प्रोत्साहन तो खूब मिलता है लेकिन तैयारी के लिए जो सुविधाएं चाहिए उन्हें नहीं मिलती. किसी खिलाड़ी को चोट आ गयी, तो फस्ट एड बॉक्स की सुविधा कम है. मैदान की कमी है. बच्चे कई जगह खेलते हैं सबसे ज्यादा परेशानी खेती के वक्त आती है. उन्हें खेलने के लिए जगह नहीं मिलती. दूर- दूर से बच्चे आते हैं. उन्हें मैदान तक पहुंचाने की कोई सुविधा नहीं है. कई बच्चों के पास किट नहीं है. इन जरूरी सुविधाओं के अभाव के कारण बच्चे थोड़ा पीछे रह जाते हैं.
जो सोचा नहीं वह हो गया
इस गांव समेत आसपास के कई गावं की बच्चियों की रंगों में फुटबॉल दौड़ता है.घर के सारे कामकाज करने के बाद स्कूल जाने से पहले यही जुनून उन्हें मैदान तक खींचकर लाता है. इनकी उपल्बधियां देखकर आप हैरान रह जायेंगे. सेंटर में मौजूद मेडल, ट्रॉफी और प्रशस्ति पत्र इनकी खामोशी से की गयी मेहनत की सफलता की कहानी बयां करते हैं.
फुटबॉल से बदली किस्मत, रूस जायेंगी सोनी कुमारी, कोच
सोनी कुमारी कहती हैं कि फुटबॉल ने उनकी किस्मत बदल दी. अब वह फुटबॉल खेलने रूस जायेंगी. महाराष्ट्र में स्लम सॉकर नेशनल टूर्नामेंट, यूपी में 35वें भारतीय महिला फुटबॉल फेडरेशन कप एवं खेलो इंडिया में बेहतर प्रदर्शन कर चुकीं सोनी दिल्ली व मुंबई में यंग लीडर का प्रशिक्षण लेकर कोच बन गयी हैं. फिलहाल 60 खिलाड़ियों को खेल का गुर सीखा रही हैं. वह कहती हैं कि ऑस्कर फाउंडेशन के आनंद प्रसाद गोप व हीरालाल महतो नहीं होते, तो आज उन जैसी आदिवासी बेटियों की किस्मत नहीं बदलती. इनके त्याग व मेहनत से पंचायत की 400 बेटियों की तकदीर बदल गयी है.
फुटबॉल खेलने जायेंगी इंग्लैंड-अंशु कच्छप, कोच
आदिवासी बिटिया अंशु कच्छप कहती हैं कि फुटबॉल ने उनके कई सपने चुटकी बजाते पूरे कर दिये हैं. वह अक्टूबर में आयोजित होने वाले किक लाइक ए गर्ल टूर फुटबॉल टूर्नामेंट में खेलने इंग्लैंड जायेंगी. उन्होंने अंडमान निकोबार में अंडर 17 में जीत दर्ज कराकर चैंपियंस ट्रॉफी का कप झारखंड लाया है. उन्होंने बताया जल जहाज से अंडमान के सफर का रोमांच ताउम्र याद रहेगा. दिल्ली व मुंबई में यंग लीडर का प्रशिक्षण ले चुकीं अंशु झारखंड, बिहार, यूपी, ओड़िशा, मुंबई, खेलो इंडिया समेत कई टूर्नामेंट में अपना हुनर दिखा चुकी हैं. अभी करीब 120 खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रही हैं.

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