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Kader Khan Dialogues: ”ऐसा तो आदमी लाइफ में दोईच टाइम भागता है, ओलिंपिक का रेस हो या पुलिस का केस हो…”

सिने जगत के जाने-माने अभिनेता और पटकथा एवं संवाद लेखक कादर खान अब हमारे बीच नहीं हैं. उनका 81 साल की उम्र में कनाडा में निधन हो गया. वह काफी समय से बीमार थे और हाल ही में उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था जिसके बाद से वह वेंटीलेटर पर थे. कादर […]

सिने जगत के जाने-माने अभिनेता और पटकथा एवं संवाद लेखक कादर खान अब हमारे बीच नहीं हैं. उनका 81 साल की उम्र में कनाडा में निधन हो गया. वह काफी समय से बीमार थे और हाल ही में उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था जिसके बाद से वह वेंटीलेटर पर थे.

कादर खान जितने मंजे हुए अभिनेता थे, उतने ही सधे हुए संवाद और पटकथा (डायलॉग और स्क्रीनप्ले) वह लिखते थे. उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में काम किया और लगभग 200 फिल्मों को लिए स्क्रीन-प्ले लिखा. यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके लिखे ने ही अमिताभबच्चन,जितेंद्र, अनिल कपूर, गोविंदा जैसे सितारों को बॉलीवुड में जमाया.

आइए नजर डालें कादर खान के कुछ मशहूर डायलॉग्स पर…

मुकद्दर का सिकंदर- मौत से किसको रुस्तगारी है? मौत से कौन बच सकता है? आज उनकी तो कल हमारी बारी है. पर मेरी एक बात याद रखना, इस फकीर की बात ध्यान रखना ये जिंदगी में बहुत काम आएगी कि अगर सुख में मुस्कुराते हो तो दुःख में कहकहा लगाओ, क्योंकि जिंदा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं, पर मुर्दों से बदतर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं. सुख तो बेवफा है चंद दिनों के लिए है, तवायफ की तरह आता है दुनिया को बहलाता है, दिल को बहलाता है और चला जाता है. मगर दुःख तो हमेशा साथी है. एक बार आता है तो कभी लौट कर नहीं जाता है. इसलिए सुख को ठोकर मार, दुःख को गले लगा, तकदीर तेरे कदमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा.

सत्ते पे सत्ता – दारू पीता नहीं है अपुन, क्योंकि मालूम है दारू पीने से लीवर खराब हो जाता है, लीवर.

अमर अकबर एंथनी – ऐसा तो आदमी लाइफ में दोईच टाइम भागता है. ओलिंपिक का रेस हो या पुलिस का केस हो… तुम काहे में भागता है भाई?

बाप नंबरी बेटा दस नंबरी – तुम्हें बख्शीश कहां से दूं. मेरी गरीबी का तो यह हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को भी कंधा दूं तो अपनी इंसल्ट मानकर अर्थी से कूद जाता है.

कुली – बचपन से सिर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाहरक्खा है अपने साथ, बाजू पर 786 का है बिल्ला, 20 नंबर की बीड़ी पीता हूं और नाम है इकबाल.

नसीब – अरे औरों के लिए गुनाह सही, हम पियें तो शबाब बनती है. अरे सौ गमों को निचाेड़ने के बाद एक कतरा शराब बनती है.

अग्निपथ – विजय दीनानाथ चौहान, पूरा नाम, बाप का नाम दीनानाथ चौहान, मां का नाम सुहासिनी चौहान, गांव मांडवा, उम्र 36 साल 9 महीना 8 दिन और ये सोलहवां घंटा चालू है.

हिम्‍मतवाला – मालिक, मुझे मालूम नहीं था कि आप मेरे पीछे खड़े हैं, मैं समझा कोई जानवर अपनी सींग से खटमल्‍लू चला रहा है.

जैसी करनी वैसी भरनी – तुम्‍हारी उम्र मेरे तर्जुबे से बहुत कम है, तुमने उतनी दीवालियां नहीं देखीं जितनी मैंने तुम जैसे बिकने वालों की बर्बादियां देखी हैं.

हम – क्या इश्क का खून किसी साहूकार के पान की पिचकारी है? क्या तुम्हारी जिंदगी जिंदगी, हमारी बीमारी है? तुम्हारा खून खून, हमारा खून पानी है? तुम्हारा नाम नाम, हमारा नाम गाली है? तुम करो जुल्म तो वो सरकारी है और हमारी फरियाद गद्दारी है?

शहंशाह – दुनिया की कोई जगह इतनी दूर नहीं है, जहां जुर्म के पांव में कानून अपनी फौलादी जंजीरें पहना ना सके.

बाप नंबरी बेटा दस नंबरी – लानत है, ना पेट में दाना है, ना लोटे में पानी है, ना बंडल में बीडी है, ना माचिस में तीली है.

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