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देवघर पहुंचे फिल्‍म एक्‍टर रघुवीर यादव ने कहा – महानगरों में शूटिंग होती है, लेकिन गांवों में ही नेचुरल लोकेशन

विजय कुमार, देवघर अपने अभिनय से हर किरदार को जिंदा कर देने वाले फिल्म अभिनेता, गायक सह रंगमंच के कलाकार रघुवीर यादव इन दिनों बॉलीवुड फिल्म ‘आधार’ की शूटिंग को लेकर देवघर आये हुए हैं. छोटे पर्दे पर मुंगेरीलाल के हसीन सपने हो या चाचा चौधरी, फिर चाहे बड़े पर्दे पर अर्थ का हरिया हो […]

विजय कुमार, देवघर

अपने अभिनय से हर किरदार को जिंदा कर देने वाले फिल्म अभिनेता, गायक सह रंगमंच के कलाकार रघुवीर यादव इन दिनों बॉलीवुड फिल्म ‘आधार’ की शूटिंग को लेकर देवघर आये हुए हैं. छोटे पर्दे पर मुंगेरीलाल के हसीन सपने हो या चाचा चौधरी, फिर चाहे बड़े पर्दे पर अर्थ का हरिया हो या लगान का भूरा व पीपली लाइव का बुधिया.

अपनी अदाकारी से सबके दिलों में बस चुके रघुवीर यादव ने बॉलीवुड की कई फिल्मों में अपनी जीवंत छाप छोड़ी है. ऐसी छाप कि आज भी उनका हर किरदार लोगों की जेहन में बस चुका है. पीपली लाइव में उनके गाये गीत महंगाई डायन खात है…आज भी लोगों की जुबान पर है. ‘प्रभात खबर’ ने उनसे बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश…

सवाल : महानगर व विदेश की शूटिंग को छोड़, छोटे शहरों व गांवों में शूटिंग हो रही है. इसे क्या मानते हैं.

जवाब : महानगरों में शूटिंग जरूर होती है. लेकिन, वहां का वातावरण, लोकेशन या सेट है. हम चाहे जो कुछ भी कर लें, नकली ही लगता है. छोटे शहरों, गांवों व कस्बों में नेचुरल चीजें मिलती है. इससे फिल्मों पर काफी असर पड़ता है. फिल्म का लोकेशन, वातावरण सही हो. जिस प्रकार से स्क्रिप्ट में जरूरत है. वह माहौल मिल जाये, तो आधी फिल्म वैसे ही बन जाती है.

सवाल : महानगरों का क्रियेशन बेहतर होता है या ग्रामीण क्षेत्रों की आबोहवा.

जवाब : महानगरों में हर कुछ क्रियेट करना पड़ता है. क्रियेशन भी कहीं न कहीं झूठा लगने लगता है. अभी लोगों ने हट के काम करना शुरू किया है. गांवों व छोटे शहरों में जाने लगे हैं. पहले भी फिल्में बनती थी. लेकिन, अभी ज्यादा होने लगा है. महानगरों में जगह नहीं है. ज्यादा से ज्यादा सेट लगाकर फिल्म कर सकते हैं. लोकेशन इस तरह की मिलती नहीं है. इस तरह के लोकेशन महानगरों में कैसे और कहां बनायेंगे. एक बहुत नेचुरल चीज फिल्म में जुड़ जाता है.

सवाल : ग्रामीण क्षेत्रों में फिल्माये गये पिक्चर को दर्शक किस रूप में लेते हैं.

जवाब : अभी-अभी मथुरा में अनाम फिल्म की शूटिंग किया हूं. हमारे हिंदुस्तान के कस्बों में बहुत कहानियां, कैरेक्टर छिपी हुई है. 80 के दशक से महानगरों की कहानियां मारपीट-मारदहाड़ की कहानियों से जनता ऊब चुकी है. जनता कुछ रीयल देखना चाहती है. अब अच्छी फिल्में बनाने का दौर शुरू हुआ है. अच्छी फिल्में बनाने के लिए स्क्रिप्ट के अनुसार आवोहवा फिल्मायी जा रही है. यह फिल्म इंडस्ट्रीज के लिए अच्छी बात है. हम जमीन से जुड़े हिंदुस्तान के कल्चर को दिखाया जाये, यह अच्छी बात है.

सवाल : आज कलाकार पैसों के पीछे भाग रहे हैं. इससे कलाकार अपनी प्रतिभाओं को कैसे प्रदर्शित कर पायेंगे.

जवाब : अगर कलाकार की नीयत पैसे पर टिकी है, तो वह कैसे कलाकार हो सकता है. कलाकार हैं, तो पैसे हाथों में आयेगी ही. अगर कोई कलाकार हैं तो सबसे पहले मेहनत करके अपनी पहचान बनाना लें. उन्हें अपने अंदर की खूबियों व खामियाें को पहचानना होगा. अगर खूबियां है तो उसे और निखारना चाहिए. कलाकारों की जिम्मेदारी बनती है वो कैसे आगे बढ़ाये. सबसे पहले सीखना पड़ता है.

सवाल : किसी के अंदर छिपी प्रतिभाओं को निखारने के लिए सरकारी स्तर पर क्या प्रयास होना चाहिए.

जवाब : अभी तो सीखने के लिए काफी सुविधा मिली हुई है. पहले गांवों में रामलीला, रासलीला से लोग सीखते थे. अब तो जगह-जगह एक्टिंग, ड्रामा स्कूल खुल गया है. सरकार खुद ही स्कूल चलाती है. सिक्किम में नेशनल स्कूल है. मध्य प्रदेश में ड्रामा स्कूल है. सीखने के बहुत चांस हैं. इससे कलाकारों के साथ इंडस्ट्रीज को काफी फायदा होगा.

सवाल : अपने को स्थापित करने के लिए कलाकारों को कितना संघर्ष करना पड़ता है.

जवाब : मुझे संघर्ष शब्द से काफी नफरत है. मैंने संघर्ष कभी भी नहीं किया. मैंने सीखा है. जब हम पांच-छह वर्ष के होते हैं. स्कूल में सुबह जब घंटी बजती है. पढ़ने जाते हैं. उसे हम क्या संघर्ष कहेंगे. आजकल लोग संघर्ष के नाम से कतराने लगे हैं. संघर्ष के नाम पर लोग तस्वीरें बांटते रहते हैं. जबतक आप सीखेंगे नहीं, पढ़ेंगे नहीं, तबतक कुछ नहीं होगा. इसे भी संघर्ष कहेंगे तो आप हमेशा लेजी (आलसी) ही रहेंगे. काहे का संघर्ष, आपको ईश्वर ने जन्म दिया है, कुछ करने के लिए, तो आप करिये. वक्त जाया मत कीजिए. यह संघर्ष नहीं मजा है. संघर्ष में तकलीफें छिपी हुई है. तकलीफ में आप मजा लेना शुरू करेंगे तो आप आगे बढ़ ही जायेंगे.

सवाल : आप लंबे वक्त से फिल्म इंडस्ट्रीज में है. आज आप अपने को कहां पाते हैं.

जवाब : मैं आज भी अपने आप को जमीन पर ही पा रहा हूं. इससे ज्यादा मैं कहीं ऊपर उठना भी नहीं चाहता हूं. आज के युवा मेहनत करें. वक्त को जाया मत करें. जो भी करें साफ नीयत से करें, तो आपकी तरक्की को कोई रोक नहीं सकता है. तरक्की थोड़ी देर से आयेगी. लेकिन, कभी भी आप पीछे नहीं रहेंगे. दूसरों को धोखा देकर, पैसों के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है. अपने ईमान को अंदर रखें, मेहनत करते रहे. आप कुछ भी करना चाहेंगे तो सबसे पहले आपको सीखना होगा. आपकी दिलचस्पी किस चीज में है. इसे देखना होगा.

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