लेखक को हर चीज पर नजर रखनी पड़ती है : फरीद खान

लेखक होना बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है. एक लेखक से लोगों की हमेशा यही अपेक्षा होती है कि वह सबकुछ जानता है. पटना के रहने वाले फरीद खान भी ऐसे ही लेखक में से हैं, जो लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं. पेश है फरीद खान की सुजीत कुमार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 24, 2019 8:55 AM

लेखक होना बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है. एक लेखक से लोगों की हमेशा यही अपेक्षा होती है कि वह सबकुछ जानता है. पटना के रहने वाले फरीद खान भी ऐसे ही लेखक में से हैं, जो लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं. पेश है फरीद खान की सुजीत कुमार से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-आप कहां के रहने वाले हैं. आपको लेखक बनने की प्रेरणा कहां से मिली?
मेरा बचपन पटना के आलमगंज मुहल्ले में गुजरा है. चूंकि मैं अपने मामा परवेज अख्तर, तनवीर अख्तर और जावेद अख्तर से बहुत ज्यादा लगाव में रहा तो इन लोगों का सानिध्य मुझे भी मिलता रहा. जावेद अख्तर लाइब्रेरी के निदेशक थे. शुरू से ही मैं किताबों को देखता रहता था. वह मुझे तब से ही आकृष्ट करती थी. अन्य दूसरे मामा नाटक से जुड़े थे तो मुझे नाटक भी आकृष्ट करता था. बस मुझे इन्हीं लोगों से प्रेरणा मिली.

-क्या आपको लेखक ही बनना है ?
मैं पहले इप्टा में नाटक करता था. कुछ बेहतर करने के लिए लखनऊ चला गया और भारतेंदु नाटक अकादमी में नामांकन ले लिया. यह 1998 की बात है. 2000 तक मैं वहीं रहा. ट्रेनिंग के बाद कुछ थियेटर भी किया, लेकिन वहां सरवाइव करना बहुत मुश्किल हो रहा था. मुझे कुछ बेहतर करना था इसी सोच के साथ मैं मुंबई चला आया. लिखना शुरू से ही पसंद था. उर्दू में मैंने एमए भी किया है. कविताएं लिखने का भी शौक है.

-आपको पहला ब्रेक कैसे मिला? किसके लिए पहली बार कार्य किये ?
– मुंबई आने के बाद काफी संघर्ष करना पड़ा. नया था तो काम देने से पहले कोई भी अनुभव के बारे में पूछता था. पटना के ही निवासी प्रख्यात अभिनेता विनीत कुमार ने मेरी काफी मदद की. उन्होंने अभय तिवारी के पास भेजा. वह तब के बड़े राइटरों में शुमार थें. उनके सानिध्य में रहने के बाद मुझे जीटीवी की धारावाहिक ‘रेत’ के लिए डायलॉग राइटिंग का काम मिला. फिर उसके बाद सहारा वन पर आने वाली सीरियल ‘किट्टू सब जानती है’ के लिए काम मिला. उसी दौरान पता चला कि डॉक्टर चंद्र प्रकाश मिश्र उपनिषद गंगा के लिए को-राइटर खोज रहे हैं. मैं ज्यादा नहीं जानता था फिर भी मैं उनके पास गया. जाने से पहले उनको सैंपल स्क्रिप्ट लिखा, उनको दिखाया. इसके लिए तीन साल तक वेदांत दर्शन पढ़ा. इन सारी चीजों का मेरे ऊपर भी काफी प्रभाव पड़ा.

-एक राइटर के लिए लिखने का कार्य कितना टफ होता है? दर्शकों की उम्मीद पर वह कितना खरा उतरने की कोशिश करता है ?
– दर्शक या लोग जो भी होते हैं, उनसे हमेशा यह अपेक्षा होती है कि वह ज्ञानी होगा. जबकि हम सबकुछ नहीं जानते हैं. फिर भी उम्मीद की जाती है. भाषा पर पकड़, विचार की उम्मीद हर चीज पर नजर रखनी पड़ती है.

-आप कौन-कौन से प्रोजेक्ट पर कार्य कर चुके हैं ?
– अभी हाल ही में मैंने सावधान इंडिया व क्राइम पेट्रोल के लिए कार्य किया है. फिर विवेक बुडाकोटी की फिल्म ‘पाइड पाइपर’ के लिए लिखा. यह फिल्म फेस्टिवल में तो चुनी गयी, लेकिन रिलीज नहीं हुई. इसमें राजपाल यादव ने काम किया था. संजय सोनू की फिल्म ‘डेथ ऑन संडे’ का स्क्रीन प्ले डायलॉग भी लिख चुका हूं.

-आने वाले प्रोजेक्ट के बारे में बताएं.
– अभी एक नाटक लिख रहा हूं. एक प्रोजेक्ट भी है और साथ ही एक फिल्म पर भी काम चल रहा है. उम्मीद है जल्द ही कुछ बेहतर सुनने को मिलेगा.

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