एक्टर रवि शेखर ने कहा- थिएटर ही है एक्टिंग की असली पाठशाला

थिएटर में जहां दर्शक निर्देशक की भूमिका में होते हैं, वहीं सीरियल या फिल्मों में एक ही निर्देशक होता है. एक्टिंग की असली पाठशाला थिएटर ही होता है, जो बिना रिटेक के काम करने की सीख देता है. यह कहना है अभिनय की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे अभिनेता रवि शेखर सिन्हा का. सुजीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 21, 2019 9:17 AM

थिएटर में जहां दर्शक निर्देशक की भूमिका में होते हैं, वहीं सीरियल या फिल्मों में एक ही निर्देशक होता है. एक्टिंग की असली पाठशाला थिएटर ही होता है, जो बिना रिटेक के काम करने की सीख देता है. यह कहना है अभिनय की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे अभिनेता रवि शेखर सिन्हा का. सुजीत कुमार से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-सबसे पहले अपने बारे में बताएं.
मैं मूलरूप से पटना के सिपारा का रहने वाला हूं. पिताजी सरकारी कर्मी रह चुके हैं जबकि मां हाउसवाइफ हैं. सरकारी नौकरी में रहने के कारण पिताजी की पोस्टिंग बिहार के कई जिलों में होती रही. जिस कारण मेरी स्कूलिंग पूर्णिया से हुई वहीं कॉलेज की पढ़ाई भागलपुर से हुई.

-आप पढ़ाई में ठीक थे फिर अभिनय की तरफ कैसे रुझान चला गया?
मुझे बचपन से ही गाना गाने का बहुत शौक था. जूनियर किशोर कुमार के नाम से फेमस था. पिता जी की जहां-जहां पोस्टिंग होती थी, वहां जाने पर जिस स्कूल में नामांकन होता था. वहां के कल्चरल प्रोग्राम में जरूर हिस्सा लेता था. कॉलेज लाइफ तक ऐसे ही होता रहा. इसी बीच में भागलपुर में कॉलेज के दिनों में एक नाटक किया. जिसमें मुझे भगत सिंह का रोल करने को मिला. उस रोल से मुझे बहुत सराहना मिली. चूंकि उस दौरान गाना भी गाता था तो मन में कहीं न कहीं सिंगर बनने का भी शौक था. बस यही शौक मुझे मुंबई खींच लाया.

-मुंबई में आने के साथ कैसा अनुभव रहा? मायानगरी में तो हर रोज बड़ी संख्या में लोग आते हैं.
यह सही है. जब मुंबई आया तो किसी तरह की कोई सेटिंग नहीं हुई. हर रोज निराशा हाथ लगती थी. किसी से कोई मदद नहीं मिल रही थी. न जाने कितने म्यूजिक डायरेक्टर से मिलने का प्रयास किया. हर जगह असफलता हाथ लगती थी. स्ट्रगल के दिनों में ही मुझे एक दोस्त मिला. उनके सलाह व सहयोग से 2002 में मुंबई में इस्कान थिएटर को ज्वॉइन किया. इसमें रोल मिलना शुरू किया. इसमें कृष्ण भगवान का रोल करने को मिला. रोल को सराहना मिली और मैंने करीब 90 प्ले में कृष्ण का रोल किया. इसके अलावा सामाजिक प्ले भी साथ में करता रहा.

-जब थिएटर में काम कर रहे थे तो पहला ब्रेक कैसे मिला?
जब मैं प्ले कर रहा था तो उसी दौरान रामानंद सागर एक टेलीफिल्म की पहल कर रहे थे. उसमें मुझे क्रांतिकारी रामदास का रोल मिला. यह 2002 अंत की बात है. वह रोल सागर जी को पसंद आया. फिर वह डीडी वन के लिए आंखें सीरियल बना रहे थे. इसमें मुझे पुलिसवाले का रोल मिला. इसी दौरान सहारा टीवी पर चाचा चौधरी सीरियल में 90 अलग-अलग रोल करने को मिला. इसमें चाचा चौधरी का रोल रघुवीर यादव निभा रहे थे. ये सारी चीजें नोटिस में आने लगी और कई अवॉर्ड भी मिले.

-ब्रेक मिलने के बाद का सफर कैसा रहा? सारी चीजें ट्रैक पर कैसे आयीं?
इन सबके बाद मुझे डीडी, सोनी चैनल, कलर्स, लाइफ ओके जैसे चैनलों पर आने वाले सीरियल में काम मिलना शुरू हुआ. जीटीवी पर यहां मैं घर घर खेली, वो रहने वाली महलों की में पुलिसवाला, बाल गणेश में गणेश जी को शिक्षा देने वाला ऋषि, सावधान इंडिया में पुलिसवाला के अलावा कई सीरियल में काम किया. जब चीजें ट्रैक पर आयीं तो पैसा आने लगा.

-आने वाले कौन-कौन से प्रोजेक्ट हैं?
फिल्म डेथ ऑन संडे में इवेंट मैनेजर के मजेदार रोल में हूं. इसके अलावा सावधान इंडिया तो कर ही रहा हूं. सब टीवी पर एक सीरियल आने वाला है. शगुन टीवी के लिए काम कर रहा हूं. गाने का शौक है तो अपना एल्बम लाने के लिए भी तैयारी कर रहा हूं.

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