कमलेश ने कहा- टॉम अल्टर के साथ काम करना मेरे लिए यादगार रहा

बिहार के कमलेश मिश्र की पहचान जहां उनकी अवॉर्ड विनिंग शॉर्ट फिल्म ‘किताब’ को लेकर है, वहीं ‘सेव द चिल्ड्रेन’ मुहिम के लिए ‘बेटी बचाओ’ का नारा देने वाले के रूप में भी है. कई डॉक्यूमेंट्री को बनाने वाले कमलेश छोटे पर्दे के लिए भी कार्य कर चुके हैं. पेश है कमलेश मिश्रा की सुजीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2019 10:36 AM

बिहार के कमलेश मिश्र की पहचान जहां उनकी अवॉर्ड विनिंग शॉर्ट फिल्म ‘किताब’ को लेकर है, वहीं ‘सेव द चिल्ड्रेन’ मुहिम के लिए ‘बेटी बचाओ’ का नारा देने वाले के रूप में भी है. कई डॉक्यूमेंट्री को बनाने वाले कमलेश छोटे पर्दे के लिए भी कार्य कर चुके हैं. पेश है कमलेश मिश्रा की सुजीत कुमार से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-सबसे पहले अपने बारे में बताएं.?
मेरा जन्म गोपालगंज के हथुआ स्थित सिंगहा गांव में हुआ था. करीब पांच साल तक मैं स्कूल नहीं गया. पढ़ाई शुरू हुई तो राजेंद्र कॉलेज छपरा से बीए की स्टडी पूरी करने के बाद रूकी. अब सवाल यह था कि आगे क्या करना है? बड़े भाई ने कहा, कुछ भी करना, लेकिन बड़ा करना. आइएएस बनने का ख्याल आया और तैयारी के लिए दिल्ली चला आया. दो बार यूपीएससी में इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन अंतिम रूप से सफल नहीं हुआ. फिर मेरा पत्रकारिता की तरफ झुकाव हो गया. टाइम्स ग्रुप में नौकरी भी की. फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी जुड़ा, लेकिन टीवी पत्रकारिता से मन बहुत जल्द उचट गया.

-छोटे पर्दे के प्रति रुचि कैसे बनी? आपको पहला मौका कैसे मिला?
पत्रकारिता के दौरान ही सिनेमा के प्रति मेरी रुचि बढ़ने लगी थी. 2000 में दूरदर्शन के लिए ‘ये हुई न बात’ धारावाहिक को निर्देशित करने का मुझे मौका मिला. आइपीएस किरण बेदी उस धारावाहिक के विषय वस्तु से इतनी प्रभावित हुईं कि वे अपनी स्वेच्छा से उसकी एंकरिंग भी करने लगीं. धारावाहिक गजब की हिट हुई. फिर दूरदर्शन और दूसरे चैनलों के लिए कई डॉक्यूमेंटरी, एड फिल्म, टेलीफिल्मस को लिखने और निर्देशित करने का मौका मिला. 2003 में ‘रहिमन पानी’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनायी. जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सम्मानित किया. 2006 में ‘सेव द गर्ल’ चाइल्ड मूवेमेंट के लिए ‘बेटी बचाओ’ का नारा लिखा. आज यह देश का सबसे लोकप्रिय नारा है. हर जगह पढ़ कर मन को अच्छा लगता है.

-आइएएस बनने का सपना था, पत्रकार बन गये. तो आप फिल्मों से कैसे जुड़े?
मेरे एक मित्र हैं अनुज शर्मा. उनकी फिल्म का मुंबई में मुहूर्त था. उसी में शामिल होने के लिए मैं वहां गया था. यह बात 2007 की है. वहां एक आदमी से मेरी मुलाकात हुई. बातों के दौरान ही मैंने वन लाइनर सुनाया, उसका जवाब था वक्त मिला तो इस विषय पर हमलोग जरूर साथ काम करेंगे. करीब एक माह बाद उसी आदमी का कॉल आया, आपके वन लाइनर पर फिल्म बनायेंगे. मैंने मैत्रेयी पुष्पा की बहुचर्चित उपन्यास ‘इदन्नमम पर परिंदे’ नाम से फिल्म की स्क्रीप्ट सुनायी. करीब फिल्म की एक्ट्रेस नेहा लीड ऐक्टर थीं. दुर्भाग्यवश फिल्म रुक गयी. वापस दिल्ली आया और 2008 में खुद की कंपनी की शुरुआत की. कई चैनलों के लिए मैंने प्रोग्राम बनाया. इतना करने के बाद भी फिल्म बनाने की कसक दिल में थी.

-टॉम अल्टर से आपकी मुलाकात कैसे हुई? काम करने के लिए वे कैसे तैयार हुए?
सुलभ इंटरनेशनल के लिए एक म्यूजिक वीडियो बनाना था. इसी क्रम में ‘टॉम अल्टर’ से मेरी मुलाकात हुई. उनको मैंने अपनी लघु फिल्म किताब की कहानी सुनायी. उन्हें स्क्रिप्ट भा गयी. मसूरी में फिल्म शूट हुई. किताब पिछले सात माह में 30 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखायी जा चुकी है और दर्जनों सम्मान प्राप्त कर चुकी है. इस बात का सुकून है कि टॉम ने अपनी अंतिम फिल्म मेरे साथ शूट किया. फिल्म का चयन और पुरस्कृत होना गर्वित और संतुष्ट करता है. ऐसा ही कुछ संजीदा और सार्थक करने की पहल में लगा हूं.

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