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दूरदर्शन के 60 साल : जब विषय सामग्री ही होती थी अहम

मुंबई : इसी महीने अपनी स्थापना के 60 साल पूरे करने वाले दूरदर्शन का सफर श्वेत श्याम प्रसारण से शुरू हुआ था जो आगे चलकर रंगीन होने के बाद डिजिटिल हो गया छह दशक के इस शानदार दौर में ‘महाभारत’, ‘रामायण’ जैसे सार्वजनिक प्रसारक के कई कार्यक्रमों ने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान बनाए. दूरदर्शन पर […]

मुंबई : इसी महीने अपनी स्थापना के 60 साल पूरे करने वाले दूरदर्शन का सफर श्वेत श्याम प्रसारण से शुरू हुआ था जो आगे चलकर रंगीन होने के बाद डिजिटिल हो गया छह दशक के इस शानदार दौर में ‘महाभारत’, ‘रामायण’ जैसे सार्वजनिक प्रसारक के कई कार्यक्रमों ने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान बनाए. दूरदर्शन पर आने वाले ‘‘महाभारत” जैसे कार्यक्रमों की लोकप्रियता का यह आलम था कि उसके प्रसारण के वक्त लोग अपने टीवी सेटों से चिपक जाते और सड़कों पर वाहनों की संख्या कम हो जाती.

उल्लेखनीय है कि दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में इतनी विविधता होती थी कि मानव जीवन से संबंधित लगभग हर क्षेत्र इसमें समाहित होता था. उस दौर में सिर्फ एक ही टीवी चैनल होता था और भारत में रंगीन प्रसारण की शुरूआत 1980 के दशक में हुयी.

हर रविवार को शाम में एक हिंदी फीचर फिल्म का प्रसारण होता। कई धारावाहिक सप्ताह में सिर्फ एक बार प्रसारित होते. वह ऐसा दौर था जब हर घर में टीवी सेट नहीं होता था और लोग अपने पड़ोसियों के यहां जाकर भी टीवी देखा करते थे. दूरदर्शन का वो जलवा भले ही नहीं रह गया हो लेकिन नेटफ्लिक्स या हॉटस्टार पर बिताए गए समय ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘उड़ान’, ‘जंगल बुक’ जैसे कार्यक्रमों से जुडी यादों (नॉस्टेलजिया) का स्थान नहीं ले सकते.

फिल्म स्टार शाहरुख खान ने दूरदर्शन के धारावाहिक ‘फौजी’ से अपने अभिनय सफर की शुरूआत की थी. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रसिद्ध कृति ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया” पर आधारित शो का भी प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया था जिसका निर्माण श्याम बेनेगल ने किया था. उस दौर के लोग अब भी भीष्म साहनी की ‘तमस’, आर के नारायण की ‘मालगुडी डेज’ को नहीं भूल पाते.

वह ऐसा दौर था जब लोग अपना कार्यक्रम अपने पसंदीदा कार्यक्रम के अनुसार तय करते और बच्चे टीवी देखने के लोभ से होमवर्क समय से पहले ही पूरा कर लेते. दूरदर्शन पर प्रसारित सांस्कृतिक पत्रिका ‘सुरभि’ की सह-प्रस्तोता रेणुका शहाने के अनुसार उस दौर के कार्यक्रम बेहतर और अधिक प्रगतिशील होते थे.

रेणुका ने पीटीआई से कहा, ‘मैंने दशकों से टीवी की बदल रही दुनिया देखी है मुझे लगता है कि हमें गर्व है कि हम उस दौर का हिस्सा थे. विषय वस्तु बहुत अच्छा था… अभी तक यह नौकरशाही की चीज नहीं बनी थी. शुरुआत में यह एक सृजनात्मक स्थान था. क्योंकि यह शैशवास्था में था, सरकार सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को इससे जोड़ना चाहती चाहती थी. उस समय कई फिल्म निर्माताओं ने टीवी पर अपनी छाप छोड़ी और अपनी विरासत छोड़ी.’

उद्योग से जड़े कई लोगों का कहना है कि निजी चैनलों की बहुलता, संसाधनों में भारी वृद्धि और दर्शकों की भारी संख्या ने सार्थक सामग्री के मकसद को पूरा नहीं किया. वास्तव में हर किसी तक पहुंचने के प्रयास में मनोरंजन के रूप में जो कुछ भी परोसा जाता है वह अवास्तविक और अक्सर प्रतिगामी है.

1980 के दशक में प्रसारित ‘ये जो है जिंदगी’ में काम कर चुकीं वरिष्ठ अभिनेत्री फरीदा जलाल ने भारतीय टेलीविजन चैनलों की मौजूदा स्थिति पर अफसोस जताते हुए कहा कि उस दौरान की प्रगतिशील व नवोन्मेषी भावना खो गई.

उन्होंने कहा, ‘काश, वे दिन फिर आते. उन्होंने ‘ये जो है जिंदगी’ और ‘खानदान’ जैसे बेहतरीन कार्यक्रम बनाए. ये कार्यक्रम हर किसी के लिए थे. आज, यह नागिन, जादू-मंत्र और तुच्छ चीजों के बारे में … कोई गहराई नहीं है.” दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम ‘शांति’ से प्रसिद्ध हुयीं मंदिरा बेदी ने कहा कि दूरदर्शन के कारण उनका जीवन बन गया. उल्लेखनीय है कि दूरदर्शन की शुरूआत 15 सितंबर 1959 को हुयी थी. यह शुरूआत प्रयोग के तौर पर हुयी थी और 1965 में इसकी सेवा प्रारंभ हुयी जब इसके सिग्नल लोगों के घरों तक पहुंचने लगे.

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