बोलीं पौलमी दास – लोग कहते हैं तुम खूबसूरत तो हो लेकिन…
कई शोज और रियलिटी शो का हिस्सा रही पौलमी दास जल्द ही धारावाहिक ‘कार्तिक पूर्णिमा’ में नज़र आनेवाली हैं. शो में पौलमी एक ऐसी लड़की के किरदार में है जिसका रंग सांवला है. पौलमी कहती हैं कि जो मेरा रंग है वही पर्दे पर नज़र आ रहा है. बहुत पक्का है. वो किसी पर आसानी […]
कई शोज और रियलिटी शो का हिस्सा रही पौलमी दास जल्द ही धारावाहिक ‘कार्तिक पूर्णिमा’ में नज़र आनेवाली हैं. शो में पौलमी एक ऐसी लड़की के किरदार में है जिसका रंग सांवला है. पौलमी कहती हैं कि जो मेरा रंग है वही पर्दे पर नज़र आ रहा है. बहुत पक्का है. वो किसी पर आसानी से नहीं चढ़ेगा. मैंने प्रोडक्शन टीम को साफ कह दिया था कि मुझे इससे ज़्यादा डार्क ना किया जाए और ना ही गोरा. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत….
किस तरह से शो से जुड़ना हुआ ?
मुझे प्रोडक्शन हाउस से कॉल आया कि ऐसा ऐसा एक शो आ रहा है और हम सांवली लड़की को उसके लिए कास्ट करना चाहते हैं ताकि किरदार से ज़्यादा से ज़्यादा रिलेट कर सकूं. मैंने जाकर ऑडिशन दिया और मैं शो से जुड़ गयी.
अपने किरदार के लिए क्या सीखना पड़ा ?
बहुत सीखना और भूलना पड़ा. 23 साल की लड़की है लेकिन उसमें मैच्योरिटी 30 साल वाली होगी. पूर्णिमा बहुत देशी है जबकि मैं अर्बन हूं. पूर्णिमा का किरदार बहुत प्यारा है. वो मेरे अंदर जल्द ही आ ही गया.
किस तरह से आप शो से रिलेट करती हैं ?
मैं पूर्णिमा से इस तरह से रिलेट करती हूं कि वो खुद को किसी से अलग नहीं समझती है चूंकि उसका रंग साँवला है. जिस तरह से एक गोरी लड़की अपनी लाइफ जीती है.उसकी लाइफ भी वैसी ही है. मैं भी अपने आप को वैसा रखती हूं. यही वजह है कि मुझे अभी तक अपने कैरियर में कोई स्ट्रगल नहीं करना पड़ा है. मुझे पता है कि कुछ कुछ चीज़ें है. जहां मैं फिट बैठती हूं जिसमें नहीं बैठती हूं वो नहीं करती हूं. मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है. मैं खुद को अलग से नहीं मानती हूं. जैसे कि लोग कहते हैं कि तुम खूबसूरत तो हो लेकिन. मैं खुद पर वो लेकिन हावी नहीं होने देती हूं. मैं बोलती हूं कि मैं खूबसूरत हूं और सांवली हूं लेकिन मैं सांवली हूं नहीं बोलती हूं.
आपने सांवले रंग की वजह से रिजेक्शन भी झेले होंगे ?
रिजेक्शन को आप उस तरह से लेंगे तो आपको बुरा फील होगा. आप नहीं लेंगे तो नहीं होगा. जैसा हमारे इंडस्ट्री में लोग बोलते हैं कि हमें नार्थ इंडियन लुक चाहिए।वो साफ नहीं बोलेंगे कि गोरी चाहिए।घुमा फिराकर बोलेंगे कि नार्थ इंडियन चाहिए. मैं फिर उनको पूछती हूं कि नार्थ इंडियन लुक होता क्या है. वही ना जिसके फीचर शार्प हो. जो मेरे हैं. लंबी हो. वो भी मैं हूं. फिर वो बोलते हैं कि नहीं हमें ना थोड़ा सा वो गोरी चाहिए. मैं उनको बोलती हूं कि साफ बोलो गोरी स्किन चाहिए ये नार्थ इंडियन लुक क्यों बोलते हैं. साफ बोलिए आपकी ज़रूरत क्या है मुझे ये सब बातें ना तो अपना अपमान लगती हैं ना ही हार. मैं जैसी हूं उसमें बहुत खुश हूं. मैं खुद को किसी से कमतर नहीं मानती हूं.
आप हमेशा से ऐसी ही सशक्त सोच रखती आयी हैं ?
इसमें मेरे मां बाबा का बहुत बड़ा योगदान है. मैं ऐसे परिवार में बढ़ी हुई हूं जहां मुझे कभी नहीं कहा गया है कि तुम सुंदर हो लेकिन सांवली हो. मेरी माँ हमेशा मुझसे कहती थी कि मेरी बेटी साँवली और खूबसूरत है. आपका पालन पोषण बहुत मायने रखता है. मुझे याद है कि एक बार मेरी एक दूर की चाची ने मुझसे कहा कि तेरी शादी में बहुत दिक्कत आएगी. मैं बहुत छोटी थी छह या सात साल की. मुझे लगा कि क्या कोई मेडिकल इश्यूज है मुझमें जो वो ऐसा बोल रही हैं तो मेरे पापा ने कहा कि चाची को मेंटल इशू है इसलिए वो ऐसा बोल रही है. पापा ने कहा कि आप जो पैदा होने के बाद चीज़ अचीव करते हैं वो आपकी है. मम्मी पापा की वजह से मैं ऐसी हूं. मैं चाहती हूं कि भारत के हर माता पिता ऐसे ही हो जो बेटी के काले रंग को लेकर हौवा ना बनाए.उसे कमतर ना दर्शाए.
लड़की का रंग आज भी मुद्दा है जो आज से दशकों पहले था ?
वैसा तो नहीं है थोड़ी स्थिति बदली है. किसी एक को खड़ा होना होगा. यही सोच फिर पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है. अगर अभी के जनरेशन में ये सोच ना आगे बढ़ने दिया जाए तो आनेवाली पीढियां इससे बच सकती हैं. हम 2020 में पहुच गए हैं. लड़कियां लड़कों के कदम से कदम मिलाकर चाँद पर पहुच गयी हैं लेकिन अभी भी लड़कियों के रंग रूप से उनको जज किया जा रहा है. हम लड़कियों को खड़ा होना होगा बोलना होगा बहुत हो गया. हम कैसे हैं. किस तरह के इंसान हैं ये बात मायने रखती है. मैंने बाहर के देशों में काम किया है. अमेरिका और यूरोप कंट्रीज में आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वहां पर मुझे मॉडलिंग के लिए मेरे रंग की वजह से बुलाया जाता था. जब विदेशों में नहीं है तो हमारे देश में क्यों. हमारे देश में तो 75 प्रतिशत महिलाएं साँवली ही हैं. विदेशों में मॉडलिंग के लिए भारत से ज़्यादातर सांवली मॉडल ही जाती हैं गोरी मॉडल नहीं. लक्ष्मी मेनन और आशिका इसका बेहतरीन उदहारण हैं. मैं कहती हूं कि पांच साल बाद ऐसे शोज बनाने की ज़रूरत ही ना हो लोगों की मेंटेलिटी बदल जाए.