1922 Pratikar Chauri Chaura: “1922 प्रतिकार चौरी चौरा” एक देशभक्तिपूर्ण फिल्म है, जो चौरी चौरा घटना के आसपास के ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालती है. फिल्म का उद्देश्य ब्रिटिश शासन काल की छिपी सच्चाइयों को उजागर करना है. यह फिल्म उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने का प्रयास करती है, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया, लेकिन आज कोई उन्हें जानता तक नहीं है. यह उन ब्रिटिश शासकों के पाखंड और झूठ को भी उजागर करती है, जिन्होंने घटना में शहीदों के रिकॉर्ड में हेराफेरी की थी. यह फिल्म कहीं ना कहीं चौरी चौरा क्रांति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ज्ञानवर्धक भाषण से भी प्रेरित प्रतीत होती है.
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान कई अन्याय किये गये, जिसमें भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर की चोरी भी शामिल हैं. उन्होंने भारतीयों पर भारी कर लगाया, दमनकारी नीतियां लागू कीं और स्थानीय इंडस्ट्री का दमन किया. यह फिल्म अंग्रेजों की ओर से गरीब बुनकरों के अंगूठे काटने जैसे अत्याचारों पर प्रकाश डालती है. “1922 प्रतिकार चौरी चौरा” फिल्म 30 जून को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.
चौरी चौरा कांड के दौरान, लाल गेरूआ वस्त्र पहने लगभग 4,000 प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह ब्रिटिश पुलिस के अत्याचारों के खिलाफ विरोध करने के लिए एकजुट हुआ था. ब्रिटिश पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप दो सौ से अधिक स्वयंसेवकों की मौत हो गई. जवाबी कार्रवाई में भीड़ ने थाने के अंदर 23 पुलिसकर्मियों को जला कर मार दिया था. इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने स्वयं सेवकों के रिकॉर्ड नष्ट कर दिये थे और घटना के बारे में गलत जानकारी फैलाई और कई निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया.
पंडित मदन मोहन मालवीय, जिन्हें महामना के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने 19 स्वतंत्रता सेनानियों को मौत की सजा से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने क्रांतिकारियों के लिए लड़ाई लड़ी और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानूनी लड़ाई का नेतृत्व किया. फिल्म स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को श्रद्धांजलि देती है और इसका उद्देश्य अहिंसा, शाकाहार और हिंदू धर्म की महिमा और समृद्ध संस्कृति को फिर से स्थापित करना है. फिल्म को देश की आजादी के अमृत महोत्सव के जश्न का हिस्सा माना जा रहा है.
यह फिल्म चौरी चौरा घटना की जांच के लिए द लीडर अखबार के संपादक सीवाई चिंतामणि की ओर से नियुक्त एक पत्रकार के इर्द-गिर्द घूमती है. पत्रकार इलाहाबाद से गोरखपुर की यात्रा करता है, जहां उसकी मुलाकात बाबा राघवदास से होती है, जो घटना के पीछे की जमीनी हकीकत का खुलासा करते हैं. क्रांतिकारी शराब, मछली और मांस बेचने का विरोध कर रहे थे, जिसे ब्रिटिश पुलिस ने अस्वीकार्य माना. पत्रकार को पता चला कि निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 172 को मृत्युदंड मिला. बाबा राघवदास ने हाईकोर्ट में केस लड़ने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय से मदद मांगी.