ऐसी फिल्म बनाने के लिए सेंसर बोर्ड ने थैंक्स कहा

जॉन अब्राहम दोस्ताना, फोर्स, रेस टू और शूटआउट ऐट वडाला जैसी फिल्मों में अपनी बॉडी और एक्शन के लिए वाहवाही बटोर चुके अभिनेता जॉन अब्राहम अपनी फिल्म मद्रास कैफे को अब तक की अपनी फिल्मों से अलग मानते हैं. क्योंकि इस फिल्म में वह स्टार के तौर पर नहीं, बल्कि किरदार के तौर पर परिभाषित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 22, 2013 1:46 PM

जॉन अब्राहम

दोस्ताना, फोर्स, रेस टू और शूटआउट ऐट वडाला जैसी फिल्मों में अपनी बॉडी और एक्शन के लिए वाहवाही बटोर चुके अभिनेता जॉन अब्राहम अपनी फिल्म मद्रास कैफे को अब तक की अपनी फिल्मों से अलग मानते हैं. क्योंकि इस फिल्म में वह स्टार के तौर पर नहीं, बल्कि किरदार के तौर पर परिभाषित किये गये हैं. जॉन को उम्मीद है कि जीनियस निर्देशक शूजीत सरकार और उनकी यह जुगलबंदी लोगों को जरूर पसंद आयेगी. उनकी इस फिल्म और उससे जुड़े विवाद पर उनसे हुई उर्मिला कोरी की बातचीत के प्रमुख अंश..

निर्देशक शूजीत का कहना है कि इस फिल्म में जॉन एक आम आदमी की तरह हैं. एक स्टार को आम आदमी बनने में कितनी परेशानियां उठानी पड़ीं.

पहले तो यह कि मैं एक आम आदमी की तरह ही हूं. मैं मीडिल क्लास परिवार से हूं. इसलिए मेरे परिवार के लिए एक रुपये का मतलब 100 पैसे हैं. मैं फिजूल खर्च पसंद नहीं करता और हर चीज का हिसाब रखता हूं. शूजीत सरकार ने जब मुझे यह फिल्म ऑफर की तो सबसे पहला उनका वाक्य यही था कि प्लीज जॉन की तरह मत दिखना. अगर आप ट्रेन से उतर रहे हों और हम बैक शॉट लें तो आप ट्रेन की भीड़ में खड़े लोगों की तरह ही लगें. इसलिए वर्कआउट न करें और खाना नॉर्मल खाएं. इसको बनाने में चुनौतियां थीं, क्योंकि एक अच्छी कहानी को रियलिस्टिक पेश करना था.

आप मद्रास कैफे में अपने किरदार और कहानी को किस तरह से परिभाषित करेंगे.

यह एक पॉलिटिकल थ्रीलर फिल्म है. इसमें 90 के दशक के शुरुआती दौर में घटी महत्वपूर्ण घटना शामिल है. एक हत्या जिसने देश में खलबली मचायी थी. इसमें मैं मेजर विक्रम सिंह के किरदार में हूं, जिसे कोवर्ट ऑपरेशन के लिए आइबी ने श्रीलंका भेजा था. मेजर की जर्नी है यह फिल्म.

क्या वजह रही जो आपने इसी विषय पर फिल्म बनाने की सोची?

कश्मीर, बांग्लादेश और पाकिस्तान इन सब पर अब तक बहुत कुछ कहा सुना जा चुका है, लेकिन तमिल और श्रीलंका के बीच के रिश्ते को आज भी बहुत कम लोग जानते हैं. उस राजनीति घटना ने देश को झकझोर दिया था. युवा पीढ़ी तो हमारे देश के कई महान नेताओं से अनजान है. अगर उन्हें कुछ पता है तो सिर्फ बम ब्लास्ट के बारे में. इसके लिए हमारी सरकार भी दोषी है. हमारे देश में इतिहास 1947 तक ही पाठय़क्रमों में सिमटा है, जबकि अमेरिका में 9-11 अब पाठय़क्रम का हिस्सा बन चुका है. युवा पीढ़ी को जागरुक करने के इरादे से मैंने इस फिल्म का चुनाव किया. सिर्फ सड़क पर भीड़ बन कर किसी प्रदर्शन या आंदोलन से जुड़ जाना युवा पीढ़ी का कर्तव्य नहीं है. उसे लड़ाइयों की नुमाइंदगी करने की हिम्मत लानी होगी. निजी तौर पर मैं पॉलिटिकल थ्रीलर फिल्में पसंद करता हूं.

इस फिल्म को लेकर श्रीलंका से लेकर तमिलनाडु तक विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं. आप इस बार क्या कहना चाहेंगे?

यह फिल्म किसी की गलत छवि को नहीं दिखाती है. इस विषय पर निर्देशक शूजीत सरकार ने सात साल तक रिसर्च किया है. जो सही है वही दिखाया गया है किसी को भावना आहत नहीं होगी. यही वजह है कि मैं इस फिल्म को तमिल तेलुगू भाषा में भी रिलीज कर रहा हूं, ताकि वह इस फिल्म को और अच्छी तरह से समङो. मैं एक और बात शेयर करना चाहूंगा कि इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने यू ए सर्टिफिकेट देते हुए यह कहा है कि थैंक्स ऐसी फिल्म बनाने के लिए.

आपका प्रशंसक ज्यादातर युवा पीढ़ी है जो आपकी हीरोइक लुक और बॉडी को देखना पसंद करती है. क्या ऐसा नहीं कि यह फिल्म उन्हें निराश करेगी?

नहीं करेगी. मद्रास कैफे ड्रॉक्यूमेंट्री फिल्म नहीं है. यह एक एंटरटेनिंग फिल्म है. मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि मेरी फिल्म को शुक्रवार, शनिवार और रविवार भले ही ज्यादा दर्शक न मिले लेकिन सोमवार को हमें दर्शक जरूर मिल जायेंगे. मैं यहां आनंद गांधी की फिल्म शिप ऑफ थिशियस का उदाहरण देना चाहूंगा. फिल्म गिन कर कुछ थिएटरों में लगी होगी. लेकिन उस फिल्म की चर्चा सभी ओर है.

आप पॉलिटिकल थ्रीलर फिल्में पसंद करते हैं. देश की पॉलिटिक्स पर आप कितना ध्यान देते हैं.

मैं बहुत ही जागरुक नागरिक हूं. फिल्में करता हूं लेकिन घर जाकर सो नहीं जाता. मैं अखबार, किताबों और समाचार चैनलों के माध्यम से हर राजनीतिक गतिविधियों के बारे में खुद को अपटेड रखता हूं. भले ही मैं राजनीति को पसंद नहीं करता और किसी भी पार्टी या उसके विचार को नहीं मानता, लेकिन देश की राजनीति में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी जरूर रखता हूं.

देश की ऐसी कौन सी समस्या है जो आपको सबसे ज्यादा परेशान करती है?

कहां से शुरू करूं. बताने लगूं तो यह इंटरव्यू पांच दिन लंबा चलेगा. मुझे लगता है कि कश्मीर मुद्दे से बड़ा नक्सलवाद का मुद्दा है. हमारी सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. खास कर युवा पीढ़ी को मुझे लगता है कि हमारी युवा पीढ़ी में राजनीतिक जागरुकता की बहुत कमी है.

विक्की डोनर के बाद आपको लगता है कि मद्रास कैफे भी आपकी झोली में अवॉर्डस भर देगी.

मद्रास कैफे के बारे में यही कह सकता हूं यह एक अलग तरह का सिनेमा है. मैंने विक्की डोनर अवॉर्ड के लिए नहीं बनायी थी. स्टोरी काफी अलग थी इसलिए लगा कि लोगों तक जाना चाहिए, इसलिए बनायी. मद्रास कैफे से भी इसलिए जुड़ा.

निर्माता और अभिनेता के तौर पर क्या अवॉर्डस आपको प्रोत्साहित नहीं करते हैं?

मैं नेशनल अवॉर्ड की इज्जत करता हूं. विक्की डोनर के लिए जब मिला था, तब बहुत खुशी हुई थी, लेकिन अवॉर्डस मेरे लिए मायने नहीं रखते हैं.

आप अब निर्माता भी बन गये हैं, अभिनय और निर्माण में से किसे सबसे अधिक एंज्वॉय करते हैं?

मुझे एक्टर के तौर पर सबसे ज्यादा मजा आता है. वैसे मैं जिस तरह से डायरेक्टर-एक्टर हूं, उसी तरह से डायरेक्टर प्रोड्यूसर भी हूं.

आपको अभिनेता के तौर पर इंडस्ट्री अब भी सीरियस नहीं लेती. क्या यही वजह है कि आप खुद ऐसी फिल्में बनाना चाहते हैं जो अभिनेता के तौर पर कुछ अलग करने का आपको मौका दे?

हां बुरा लगता है, जब मेरी कोई फिल्म अच्छी नहीं चलती और फिल्म क्रिटिक्स मेरे लिए लिख देते हैं कि मैं खत्म हो गया हूं. मीडिया के साथ परेशानी यह है कि वह पुरानी बातों को भूलती नहीं है. आज भी मेरे बारे में लिखा जाता है कि मैं एक्टिंग नहीं कर सकता हूं, क्योंकि मैं मॉडल हूं. पता नहीं क्यों हर फिल्म में मुझे साबित करने की जरूरत पड़ती है कि मैं एक्टिंग कर सकता हूं. मैं फिल्मों का निर्माण अपने लिए नहीं करता हूं. जो कहानी मुझे अच्छी लगती है, लोगों तक उसे पहुंचाने के लिए बनाता हूं. अगर अपने लिए फिल्म बनाता तो विक्की डोनर में आयुष्मान की जगह मैं खुद होता.

मद्रास कैफे जैसी रियालिस्टिक फिल्में क्या अब अभिनेता के तौर पर आपकी प्राथमिकता है?

ऐसा नहीं है. मैंने अपने कैरियर के शुरुआती दौर में ही वॉटर और काबुल एक्सप्रेस जैसी फिल्में की थी. वॉटर एकेडमी अवॉर्ड में शामिल हुई थी. उस दौरान स्टीफन स्पीलबर्ग ने फिल्म में मेरे अभिनय की तारीफ की थी. वैसे एक्टर के तौर पर मैं हर तरह की फिल्में और अलग-अलग किरदार को जीना चाहता हूं. जल्द ही मैं दोस्ताना के सीक्वल में दिखूंगा. इसके अलावा निशिकांत कामत की एक फिल्म कर रहा हूं, जिसमें फोर्स से दस गुना एक्शन और बॉडी बिल्डिंग नजर आयेगा.

आखिर में एक खास बात जो जॉन के बारे में उनके प्रशंसक नहीं जानते हैं?

ऐसी कई बाते हैं, खास कर मेरी ऑनस्क्रीन बॉडी शो को देख कर सभी को लगता है कि मैं कहीं भी किसी के सामने कपड़े बदल सकता हूं. ऐसा कई बार फिल्मों की शूटिंग के दौरान हुआ है, लेकिन सच कहूं तो मैं बहुत शर्मिला हूं. इसके साथ ही मेरी बॉडी पर भी बहुत चर्चा होती है, लेकिन मैंने आज तक किसी को एक मुक्का तक नहीं मारा है. मैं लड़ाई झगड़े से दूर ही रहता हूं.

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