नयी दिल्ली : प्रतिबंधित वृत्तचित्र ‘इंडियाज डॉटर’ दिल्ली में दिखाने पर केतन दीक्षित ने अपने खिलाफ चल रही कार्यवाही और जांच पर रोक लगाने की मांग की है. केतन का कहना है कि उसे गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया और हिरासत में रखा गया जो संविधान के तहत मिले उसके अधिकारों का उल्लंघन है. केतन के खिलाफ मामला 12 मार्च को दर्ज किया गया था.
न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह की पीठ के समक्ष पेश अपने आग्रह में केतन ने अपनी गिरफ्तारी को भी चुनौती दी है. उसने कहा है कि ‘अनावश्यक उत्पीडन’ के लिए उसे क्षतिपूर्ति राशि दी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में कहा,’ यह उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के लिए अनुकूल मामला है. याचिकाकर्ता (केतन) के खिलाफ झूठी और अनर्गल प्राथमिकी दर्ज की गई और अवैध तरीके से उसे हिरासत में लिया गया तथा दिल्ली पुलिस के हाथों अनावश्यक रुप से उसका उत्पीडन हुआ.’
वकील ने कहा,’ न्याय के हित में यह जरुरी है कि प्राथमिकी रद्द की जाए क्योंकि याचिकाकर्ता ने जो कुछ भी किया वह समाज की बेहतरी और जागरुकता के लिए था.’ फिल्म निर्माता लेजली उडविन द्वारा बनाया गया यह वृत्तचित्र 16 दिसंबर 2012 को 23 साल की एक छात्रा के साथ दिल्ली में चलती हुई एक बस में सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या की घटना पर आधारित था. यह वृत्तचित्र आठ मार्च को आगरा के समीप अवालखेडा गांव में दिखाया गया.
अपील में कहा गया है कि वृत्तचित्र के प्रसारण के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूछताछ के लिए केतन को तलब किया. उसके लैपटॉप, पेन ड्राइव तथा प्रोजेक्टर को जब्त कर लिया गया और पांच घंटे बाद केतन को छोड दिया गया.चार दिन के बाद, दिल्ली के रविदास कैंप में यह फिल्म दिखाई गई. सामूहिक बलात्कार एवं हत्या की घटना के पांच दोषियों में से तीन के घर रविदास कैंप में ही हैं. मामले में तत्काल प्राथमिकी दर्ज की गई. पुलिस ने केतन के खिलाफ आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा करना) और 228ए (पीडित की पहचान का खुलासा करना) के तहत मामला दर्ज किया.
जमानत पर रिहा हुए केतन ने प्राथमिकी को चुनौती देते हुए कहा है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने तीन मार्च को एक परामर्श जारी किया था कि सभी निजी सैटेलाइट और समसामयिक खबरों वाले टीवी चैनल इस वृत्तचित्र का प्रसारण न करें. याचिका के अनुसार, इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने भी एक अपील की और निचली अदालत से मीडिया को वृत्तचित्र का प्रसारण या प्रकाशन करने से रोकने के लिए एक आदेश हासिल कर लिया.
केतन के अनुसार, कुछ लोगों के साथ वृत्तचित्र देख रहे एक निजी व्यक्ति को ‘मीडिया’ नहीं कहा जा सकता. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि फिल्म दिखाते समय किसी भी जगह या समय पर पीडित की पहचान का उसने खुलासा नहीं किया. उसने आरोप लगाया है कि आज की तारीख तक पुलिस ने उसे प्राथमिकी की प्रति नहीं दी और न ही उसकी गिरफ्तारी और हिरासत में रखे जाने का कारण बताया.
याचिका में कहा गया है कि 13 मार्च को उसके पिता से कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराए गए जिनकी प्रति अब तक उन्हें नहीं दी गई है. इसके बाद उसे रिहा कर दिया गया. गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस आयुक्त और आर के पुरम पुलिस थाने के थाना प्रभारी के खिलाफ आदेश की मांग करते हुए याचिका में कहा गया है कि प्राथमिक को लेकर अभियोजन में कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा क्योंकि उसके खिलाफ अपराध का कोई तत्व नहीं है.
इस वृत्त चित्र पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि इसमें में एक बलात्कारी को दिखाया गया है जो साक्षात्कार में किसी भी प्रकार का पछतावा जाहिर नहीं करता. इस साक्षात्कार और वृत्तचित्र की अन्य सामग्री से लोगों का गुस्सा बढने लगा था. हालांकि बीबीसी ने इसका प्रसारण किया था.