प्रत्युषा बनर्जी मामला: सिर्फ धोखे ही नहीं इस राह में
ग्लैमर इंडस्ट्री इन दिनों प्रत्युषा बनर्जी की मौत को लेकर सकते में है. वहीं, दर्शक भी हैरान हैं. लोगों के मन में एक आम धारणा है कि यह इंडस्ट्री ही ऐसी है, जहां सब छलावा है.जबकि, दोष इंडस्ट्री का नहीं. अगर यहां धैर्य और सूझ-बूझ से कदम रखा जाये, तो मंजिल तक पहुंचने में भले […]
ग्लैमर इंडस्ट्री इन दिनों प्रत्युषा बनर्जी की मौत को लेकर सकते में है. वहीं, दर्शक भी हैरान हैं. लोगों के मन में एक आम धारणा है कि यह इंडस्ट्री ही ऐसी है, जहां सब छलावा है.जबकि, दोष इंडस्ट्री का नहीं. अगर यहां धैर्य और सूझ-बूझ से कदम रखा जाये, तो मंजिल तक पहुंचने में भले कठिनाई हो, मगर मंजिल मिलेगी जरूर. प्रत्युषा की मौत ने छोटे शहरों की लड़कियों पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं कि वे ग्लैमर इंडस्ट्री का तनाव नहीं झेल सकतीं. लेकिन, यह पूरा सच नहीं है. कुछ ऐसे ही मिथकों को तोड़ती खास रिपोर्ट.
कवर स्टोरी
अनुप्रिया अनंत
(मुंबई)
प्रत्युषा की आत्महत्या की खबर ने सबको चौंका दिया और इंडस्ट्री से बाहर बैठे लोगों ने मान लिया है कि इंडस्ट्री में यही होता है. अंदर से यह इंडस्ट्री खोखली है. दरअसल, यह पूरी हकीकत नहीं है. खास कर छोटे परदे पर गौर करें तो सिर्फ परदे के सामने नहीं, परदे के पीछे भी महिलाओं की संख्या अधिक है. अधिकतर प्रोडक्शन हाउस की संचालिका महिलाएं हैं.
स्वयं टेली क्वीन मानी जानेवाली एकता कपूर के होम प्रोडक्शन से जुड़ी कई अभिनेत्रियां उनकी अच्छी दोस्तों में शामिल हो जाती हैं और बाद में वे उन्हें ग्रूमिंग करती हैं. न सिर्फ अभिनेत्रियों को, बल्कि एकता के प्रोडक्शन में क्रिएटिव काम लड़कियां ही संभालती हैं. उन्होंने ही अपने साथ काम कर चुकी सोनाली जाफर और निवेदिता बासु को मार्गदर्शन दिया है. यहां ऑडिशन भी प्रोफेशलन तरीके से होते हैं. रश्मि प्रोडक्शन हाउस, शशि सुमित मित्तल जैसे प्रोडक्शन हाउस में भी प्रोफेशनल तरीके से ऑडिशन होते हैं और लड़कियों को मौके मिल रहे हैं. एकता कपूर इस बारे में कहती हैं कि इस क्षेत्र में आनेवाली नयी लड़कियों को कहना चाहूंगी कि यह नाइन टू फाइव का जॉब नहीं है.
बहुत क्रिएटिव काम है. आपको 24 घंटे तैयार रहना होगा. शाहरुख खान कहते हैं कि कुछ वर्षों में ही मेरे बच्चों ने समझ लिया था कि मेरा वक्त सिर्फ उनका नहीं है. सो, वे मुझसे शिकायत नहीं करते कि आप रात के तीन बजे क्यों आते हैं. वे मेरे साथ रात के वक्त भी बैठते हैं. एकता कहती हैं कि कई लड़कियां और उनके पेरेंट्स को इन बातों से परेशानी होती है और स्ट्रेस में लड़कियां दोनों तरफ सामंजस्य नहीं बिठा पातीं. यहां आपको रात में भी स्टूडियो पहुंचना पड़ सकता है. ऐसे वक्त में पेरेंट्स अगर लड़कियों पर पाबंदी लगाएं, तो परेशानी होगी ही. बॉलीवुड की कास्टिंग डायरेक्टर नंदिनी श्रीकेंत कहती हैं कि इंडस्ट्री को हउआ न बनाएं. किसी दौर में यहां अनप्रोफेशनल एटिट्यूड रहा होगा, अब नहीं है. कई लड़कियां इसलिए भी डिप्रेशन में चली जाती हैं, क्योंकि वे चकाचौंध देख कर आती हैं.
लेकिन, यह भूल जाती हैं कि यहां कैमरे के सामने काफी मेहनत, काफी वर्क लोड होता है. कई लड़कियां यह सोच कर निराश हो जाती हैं कि उन्हें लगता है कि अभिनेत्री बनने के लिए सिर्फ खूबसूरती ही एकमात्र मापदंड है. कई लड़कियों को सिर्फ लीड किरदार ही चाहिए. तो परेशानी होगी ही. अगर आप मानसिक रूप से तैयार होकर आयें तो यह इंडस्ट्री जितनी साफ-सुथरी है और आपके टैलेंट को निखारने वाली कोई इंडस्ट्री नहीं. यहां वक्त लग सकता है.
लेकिन, जिसके पास टैलेंट है, तो मौके मिलते हैं. आपको आना है तो खुद को क्रिएटिव जान कर आएं और प्रयोग के लिए तैयार रहें. आपको काम न मिले. ऐसा हो नहीं सकता. आप कभी फारिक भी बैठे हों तो उसमें भी कुछ क्रिएटिव सोचें. मायानगरी के बारे में मिथ अधिक है. अफवाहों पर ध्यान न दें.
सेकेंड लीड रोल से परेशानी
एक और बड़ी वजह इगो भी है. अगर किसी कलाकार ने लीड किया है तो वह सेकेंड लीड के लिए तैयार नहीं होता. ऐसे में फिर न तो उसे सेकेंड लीड मिलता है और न ही लीड. सो, जरूरत है कि जैसे मौके मिलें, आप करते जाएं. आप तनाव मुक्त रहेंगे. अभिनेत्री साक्षी तंवर जो एक छोटे शहर से ही इस दुनिया में आयीं, मानती हैं कि उनके पास रंगरूप अभिनेत्रियों-सा नहीं था.
आम दिखती थीं. लेकिन, उन्होंने तय किया था कि वे बड़े मौके मिले न मिले, वे छोटे किरदारों से शुरुआत करेंगी. याद हो कि धारावाहिक कुंटुंब में वे छोटे-से किरदार में नजर आयी थीं. बादमें कई सालों बाद उन्हें पार्वती भाभी के रूप में पहचान मिली.
छोटे शहर की लड़कियों में होती है संघर्ष की क्षमता
प्रत्युषा की मौत के बाद से लगातार छोेटे शहर की लड़कियों की नाकामयाबी की फेहरिस्त अंगरेजी अखबारों में नजर आ रही है. बातें हो रही हैं कि छोटे शहर की लड़कियां ग्लैमर इंडस्ट्री की शोहरत को हजम नहीं कर पातीं. ऐसी खबरें छोटे शहर की लड़कियों को हताश कर रही हैं. इस बारे में खुद कंगना रनौट कहती हैं कि यह खबर उनके लिए भी सदमे से कम नहीं. बकौल कंगना वे खुद छोटे शहर से हैं और उन्होंने यहां काफी मेहनत से जगह बनायी है.
उन्हें भी ऐसी बातें सुननी पड़ी हैं कि छोटे शहर की लड़कियों के वश की बात नहीं ग्लैमर इंडस्ट्री. लेकिन, प्रियंका चोपड़ा तो लोकल से ग्लोबल हो गयी हैं. फिर भी लोग छोटे शहर को क्यों दोष दे रहे. कंगना मानती हैं कि चूंकि वह छोटे शहर से थीं, इसलिए उनमें बचपन से ही संघर्ष करने की क्षमता रही है. इसलिए उन्होंने वापस जाना स्वीकार नहीं किया. अभिनेत्री द्वियांका त्रिपाठी भोपाल से हैं और वह मानती हैं कि छोटे शहर को यूं बदनाम करना उचित नहीं. इसे छोटे शहर की लड़कियों का मनोबल टूटेगा. छोटे शहर की लड़कियां अधिक जमीन से जुड़ी रहती हैं और यथार्थ में जीती हैं. वे कम संसाधन में भी समझौता कर सकती हैं.
लेट नाइट पार्टी का सच
युवा एक्टर टाइगर श्राॅफ ने अलग ही रुख इख्तियार किया है. वे पार्टियों से दूर रहते हैं. वे मार्शल आर्ट, डांस व इस तरह की विधाओं को ही एंजॉय करते. टाइगर मानते हैं कि यह भी मिथक है कि फिल्मी पार्टियों में दोस्त बनते हैं और यह इस पेशे की जरूरत है. वे मानते हैं कि आपका काम बेस्ट हो, तो काम मिलेगा ही, फिर छोटा परदा हो या बड़ा परदा. दरअसल, ऐसी पार्टियों में सिर्फ दो पल का साथ होता है. किसी की चाहत होती है कि वे कामयाब लोगों के इर्द-गिर्द घूमें और फिर शॉर्ट कर्ट अपना कर एक्टिंग में एंट्री लें. लेखक निरंजन बताते हैं कि जिम और कई पब्लिक प्लेसेज पर भी लोग उन्हें घेर लेते हैं. पार्टी में ऐसे गेट क्रैशर की भरमार होती है, जिन्हें न्योता भी नहीं मिला होता. वे सूट-बूट में नजर आते हैं और उन्हें वैसी ही हताश, निराश लड़कियों की तलाश होती है, जिन्हें सहारे की जरूरत है. वे उनका सहारा बनने का झूठा ढोंग रचते हैं, फिर उन्हें इस्तेमाल करते हैं.
किसी को रोल मॉडल न मानें
सिमर, इशिता, अंगूरी भाभी, तुलसी, पार्वती, गोपी बहू ये रील लाइफ किरदार जब लड़कियों की रीयल लाइफ किरदार बनती हैं, तो परेशानी का सबब बनता है. वे मान बैठती हैं कि जब ये कर सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं. इस बारे में एकता कपूर कहती हैं कि किसी से प्रेरित होना सही है, पर अपना आदर्श न बना लें. खुद की कमियों और खूबियों को पहचानने की कोशिश करें. किसी को फॉलो करने के लिए इस क्षेत्र को न चुनें. आदर्श बनाते वक्त सिर्फ उनके लुक या कामयाबी को फॉलो न करें, बल्कि उनकी संघर्ष की कहानी के बारे में भी जानें और उस आधार पर खुद को तैयार करें.
जो हुआ वह बड़ा हादसा है. बेहद दुखद है. मैं बस यह कहना चाहूंगा कि अपने रील लाइफ इमेज को रीयल लाइफ पर हावी न होने दें. रीयल लाइफ में खुद को हमेशा सुपर स्टार्स मान कर न चलें. जो भी मेरे फैन हैं, वह मेरी फिल्मी इमेज के फैन हैं. वे मेरा रीयल लाइफ देखेंगे, तो शायद उन्हें मुझ पर तरस आये. मेरी कोशिश होती है कि मैं जमीन से जुड़ा रहूं. स्टारडम को इतना सीरियसली लेना बिल्कुल सही नहीं है.