8 Years Of Pink: बॉलीवुड की एक दमदार फिल्म जिसने समाज को आईना दिखाया, फिल्म के ये दमदार डायलॉग्स आपको हिला कर रख देंगे

अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की फिल्म ने समाज की उस सोच को दर्शाया है जो लड़कियों की आजादी पर सवाल उठाती है. इस फिल्म के डायलॉग्स आज भी चर्चा में हैं.

By Sahil Sharma | September 16, 2024 5:58 PM

समाज में बदलाव की ओर बढ़ते फिल्ममेकर्स

8 Years Of Pink: आजकल के फिल्ममेकर्स कुछ ऐसी कहानियां लेकर आ रहे हैं जो समाज के हालातों को बखूबी दर्शाती हैं. अब वे ज्यादा ड्रामा के बजाय समाज की सच्चाई को दिखाना चाहते हैं. ऐसी ही एक फिल्म है पिंक, जिसे शूजीत सरकार ने डायरेक्ट किया और इसमें अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू जैसे दमदार एक्टर्स हैं.

पिंक की कोर्टरूम डायलॉग्स: एक सच्चाई का आईना

अमिताभ बच्चन का फिल्म में कोर्टरूम डायलॉग्स ऐसा है, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देता है. खासकर आज की पीढ़ी के लिए ये फिल्म और इसके डायलॉग्स एक आईना है, जो उन्हें सिखाता है कि न केवल समाज की सोच बदली जाए, बल्कि महिलाओं के प्रति हमारे बिहेवियर में भी बदलाव हो. इस फिल्म के डायलॉग्स इतने दमदार हैं कि इन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 

‘ना’ का मतलब सिर्फ ‘ना’ होता है

फिल्म का सबसे फेमस डायलॉग है, “ना सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि अपने आप में एक पूरा सेंटेंस है. इसे किसी तरह के क्लैरिटी की जरूरत नहीं होती. ना का मतलब सिर्फ ना होता है.” ये डायलॉग सुनने में जितना सिंपल है, उतना ही गहरा भी है.

8 years of pink

समाज की सोच पर वार

फिल्म में एक और दमदार डायलॉग है, “हमारे यहां घड़ी की सुई लड़की का कैरेक्टर डिसाइड करती है.” इसका मतलब है कि अगर लड़की देर रात तक बाहर रहती है, तो समाज उसके कैरेक्टर पर सवाल उठाता है. 

लड़कियों की इंडिपेंडेंस पर सवाल

एक और डायलॉग जो हमें सोचने पर मजबूर करता है: “शहर में लड़कियों को अकेले नहीं रहना चाहिए. लड़के रह सकते हैं, पर लड़कियां नहीं. अकेली, इंडिपेंडेंट लड़कियां लड़कों को कन्फ्यूज कर देती हैं.” यह डायलॉग समाज की उस सोच पर हमला करता है, जो लड़कियों की स्वतंत्रता को संदेह की नज़र से देखती है.

फिल्म का महत्व

‘पिंक’ जैसी फिल्में सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए नहीं होतीं. ये हमें समाज की हकीकत से रूबरू कराती हैं और हमें यह सिखाती हैं कि हमें अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है. यह फिल्म खासकर युवाओं के लिए एक सबक है कि महिलाओं की ‘ना’ का मतलब हमेशा ‘ना’ होता है, और इसे हर कोई समझना चाहिए.

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