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Accident or Conspiracy Godhra movie के निर्देशक एम.के.शिवाक्ष का है बिहार और झारखंड से कनेक्शन .. जानिये क्या

accident or conspiracy godhra movie में लेखन,निर्देशन और एक्टिंग की जिम्मेदारी निभा रहे एम के शिवाक्ष बताते हैं कि इस फिल्म की मेकिंग उनके लिए आसान नहीं थी.

accident or conspiracy godhra movie सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है.फिल्म के निर्देशन एम. के. शिवाक्ष हैं,जिन्होंने फिल्म के निर्देशन के साथ -साथ लेखन और अभिनय में भी अपनी अहम भागीदारी निभायी हैं.वे इस फिल्म को कई दशक पुराने सपने के साकार होने जैसा करार देते हैं. जो उन्होंने बिहार और झारखंड में रहते हुए देखा था. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

गोधरा का कौन सा सच आपकी फिल्म दिखा रही है?
अब तक जो भी फिल्में बनी है वह पोस्ट गोधरा बनी हैं यानी की गुजरात दंगों पर है लेकिन उसके पहले गोधरा कांड जो हुआ था.जिसमें 59 लोगों को जिंदा जलाकर मार दिया गया था. यह फिल्म उस घटनाक्रम को सामने लेकर आती है. इस फिल्म का चैप्टर 2 और चैप्टर 3 भी आएगा. जिसमे फिल्म गोधरा कांड और उसके बाद की त्रासदी दोनों को दिखाएंगी. यह फिल्म बताती है कि दंगा हमेशा बुरा होता है, लेकिन इसके साथ ही उसकी वजह को भी सामने लाती हैं.

फिल्म के लिए आपका रिसर्च वर्क क्या था ?
गुजरात के दंगों के बाद नानावती कमीशन जो बैठी थी,जिन्होंने 6 साल का समय लिया था. जिसमें 4500 लोग विटनेस थे,50 से ज्यादा आईविटनेस थे. सबका कंफेशन था.फॉरेंसिक रिपोर्ट भी शामिल थी. उसी पर ये फिल्म बनी है और ये इतना सटीक है कि कोई भी कोर्ट या लोग उसको चैलेंज नहीं कर पाएं हैं.अब तक इसे ही फैक्ट माना गया है. गुजरात सरकार ने किसी के आधार पर लोगों को सजा भी सुनायी है. इसके साथ ही 5 सालों का मेरा खुद का रिसर्च भी है, जिसमें मैं हजारों लोगों से मिला हूं. उनके दर्द, उनके इमोशन और उनके दुख को परदे पर लाने हमने कोशिश की है. जो लोग उस साजिश से से बचकर निकले थे. उनको ट्रेन का फोबिया हो गया है. वह ट्रेन की आवाज से भी अब घबराते हैं. उनके अपने भी ट्रेन से अब डरते हैं.गुजरात दंगों पर बहुत सारी फिल्में है बहुत सारे आर्टिकल्स है लेकिन गोधरा कांड बारे में कोई बात नहीं करता है.

हाल के वर्षों में कुछ फिल्मों पर किसी एक धर्म को टारगेट करने का आरोप लगा है, आप इतनी फिल्म को इससे कितना बचा पाए हैं?
मेरी फिल्म वैसी नहीं हैं. हमने एक तरफ़ा कुछ भी नहीं दिखाया है. इसके साथ ही मैं यह भी बताऊंगा कि हमारी फिल्म आखिर में कोई फैसला सुनाती नहीं है. फैसला दर्शकों पर ही छोड़ दिया गया है कि वह सारे रिसर्च और फैक्ट्स देखकर क्या तय करते हैं.

जब आप संवेदनशील मुद्दों पर फिल्म बनाते हैं, तो फिल्म की मेकिंग आसान नहीं होती है. आपके अनुभव क्या रहे हैं?
बहुत सारी दिक्कतें आई है. पैसों से लेकर कई लोगों की धमकी तक भी मिली, लेकिन लोगों का सपोर्ट भी रहा. फिल्म की शूटिंग भी आसान नहीं थी. खासकर ट्रेन को जलाने का सीक्वेंस. सरकार से भी हमने ट्रेन के लिए अप्लाई किया था लेकिन ट्रेन में बर्निंग का सीक्वेंस फिल्माने का परमिशन नहीं था. मुंबई में भी कोई ऐसा सेट मिल नहीं पा रहा था. इसके बाद हम हैदराबाद के रामोजी राव फिल्म सिटी में गए.वहां पर हमने लंबा चौड़ा ट्रेन बनाकर शूट किया था. 21 दिनों में यह सीन पूरा शूट हुआ.कुछ हिस्सा हमने बड़ोदरा में शूट किया है. गोधरा और मुंबई में भी शूट हुआ है.

फिल्म में लेखक,निर्देशक के साथ आप अभिनेता भी हैं सब कुछ मैनेज करना कितना मुश्किल था?
सच कहूं तो एक्टिंग मुझे करना पड़ा क्योंकि मैं 5 साल से इस फिल्म के रिसर्च में था. मैंने बहुत सारे लोगों के ऑडिशन लिए थे लेकिन वह इस किरदार के इमोशंस को ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे थे. कई बड़े एक्टर्स को भी अप्रोच किया, जिनकी इमेज हैं कि वह सच के लिए लड़ते हैं. उन्होने भी मेरी फिल्म को मना कर दिया.एक ने तो तीन महीने तक स्क्रिप्ट रखी थी लेकिन उसके बाद अचानक से शूटिंग डेट्स नजदीक आने पर फिल्म को मना कर दिया था, जिसके बाद मुझे फिल्म में एक्टिंग भी करनी पड़ी.

बिहार से मुंबई की जर्नी कब शुरू हुई थी ?
मेरा बिहार ही नहीं बल्कि झारखंड में भी है. बिहार में पटना में मेरा परिवार रहता है और रांची में भी, इसलिए मैं खुद को दोनों जगह का मानता हूं. मैंने अपनी शुरुआत डांसर के तौर पर की थी. मैं डांसिंग सीखने के साथ-साथ सीखाने भी लगा था. पटना के साथ – साथ रांची में भी मेरे स्टूडेंट्स थे. अपने आगे के सपने को पूरा करने के लिए मैं मुंबई आ गया और यहां भी मैं डांस सीखाने लगा.

आपकी डांस में रूचि कैसे हुई थी?
मेरे पापा हारमोनियम सहित कई इंस्ट्रूमेंट बजा लेते हैं. भजन भी अच्छा गा लेते हैं,लेकिन उन्होंने मुझे सिखाया नहीं.हमारे यहां रामलीला होता था ,तो पापा उसका डायरेक्शन करते थे, लेकिन हमें उससे भी दूर रखते थे. उनका सिर्फ यही कहना होता था कि पढ़ाई करो, लेकिन उनका डीएनए मुझ में भी था तो मैं भी और अपने आप इस तरफ खिंच गया

क्या हमेशा से डायरेक्टर ही बना था?
हां डायरेक्शन नहीं आना था लेकिन मुझे पता था कि अचानक फिल्म डायरेक्शन में नहीं जा सकता मुझे इसके लिए रास्ता बनाना पड़ेगा. जिस वजह से मैंने डांस शुरू किया. 2009 में मैंने बिहार छोड़ दिया था.2009 से 2013 तक दिल्ली रहा। वहां डांस सीखाता था. उसके बाद मुंबई आ गया.2006 से ही मेरा संघर्ष चल रहा हैं.डांसिंग ने मेरी जरूरत को पूरा कर दिया जिस वजह से मैं मुंबई में खाने और रहने की दिक्कत से बहुत ज्यादा परेशान नहीं हुआ. मुझे अगर डांस नहीं आता तो इस महंगे शहर में शायद ही मैं सरवाइव कर पाता था.चार बंगला में एक फिल्मी टेक करके अकादमी थी, जो एक्टिंग सिखाती थी. उसकी फीस तकरीबन एक लाख रुपये थी. मैं वहां पर बात की और कहा कि मैं डांसर हूं, उन्होंने कहा कि आप हमारे स्टूडेंट को डांस सिखाओ बदले में हम आपकी एक्टिंग फीस माफ कर देंगे.मतलब मैंने अपनी डांसिंग से ही एक्टिंग किया फिर फिल्मों में अस्सिस्टेंट का काम किया। कुछ म्यूजिक वीडियोज भी निर्देशित किये। गोधरा मेरी रिलीज होने वाली पहली फिल्म है लेकिन मैं इससे पहले दो फिल्में और बन चुका हूं. मेरी पिछली दोनों फिल्में शूट हो चुकी है लेकिन अभी रिलीज नहीं हुई हैं.

आपकी फॅमिली का क्या रिस्पॉन्स है?
जब आप बिहार से आते हैं ,तो आपकी फैमिली यही कहती है कि तू पढ़ लिख लेता तो ज्यादा अच्छा होता था.मम्मी पापा को तो इस फील्ड के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं हैं. पापा किसान हैं और मां हाउसवाइफ.मेरे बड़े भाई पटना हाई कोर्ट में वकील हैं तो वह जरूर कहते रहते हैं कि पढाई करता तो ज्यादा अच्छा होता था.

मुंबई में एक दशक पूरा हो चुका है ,संघर्ष कितना कम हो गया है ?
अभी मैं मुंबई के लोखंडवाला में रेंट पर रहता हूं ,इतने सालों में मेहनत से कुछ पाया है लेकिन मुंबई की ख़ास बात ये है कि जब तक आप एक बड़ा मुकाम नहीं बना लेते हैं.आपको संघर्ष करते रहना पड़ता है. हर दूसरे हफ्ते आपको कोई ना कोई दिक्कत हो ही जाती है. अभी भी चल ही रहा है लेकिन पीछे नहीं जाना है. मुझे यही करना है. घर जाकर ऐसा कोई बिजनेस भी नहीं है कि उसे करुं. वहां भी जाकर संघर्ष करना है,तो मुंबई में कम से कम अपने सपनों को पीछा करते हुए संघर्ष करूं तो ज्यादा बेहतर रहेगा.


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