rajpal yadav: थिएटर, टीवी से लेकर फिल्मों तक में अपने अभिनय क्षमता का लोहा मनवाने वाले एक्टर और कॉमेडियन राजपाल यादव इस साल इंडस्ट्री में 25 साल पूरे कर चुके हैं. राजपाल यादव अपनी इस जर्नी पर कहते हैं कि मुझे सफलता में कभी भी उड़ने की जरूरत नहीं पड़ी, न ही विफलता में घबराने की. सफलता और असफलता को मैं अपने गले में हार बनाकर पहनता हूं. राजपाल के अबतक के फिल्मी सफर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
‘शूल’ की शूटिंग के दौरान मालूम पड़ा मेरी भी पहचान है’
अब तक के अपने एक्टिंग करियर में मैं काफी उतार-चढ़ाव से गुजरा हूं. मुझे लगता है कि जब आप किसी ऐसे प्रोफेशन से जुड़ना चाहते हैं, तो आपको संघर्ष से शिकायत नहीं होनी चाहिए. मुझे भी नहीं थी, इसलिए लगा रहा. कभी नहीं लगा कि वापस घर चला जाऊं. मैंने अन्नोन स्ट्रगलर से वेलनोन बिगनर का सफर तय किया. तब जाकर मुझे सफलता मिली. ये बात सभी को पता है. वैसे पहली बार मुझे मेरी पहचान का एहसास फिल्म शूट के सेट पर ही हो गया था. बिहार में फिल्म ‘शूल’ के कुछ सीन्स की शूटिंग हुई थी. मनोज वाजपेयी जी और रवीना जी के साथ मैं भी गया था. बहुत भीड़ उमड़ी थी. मुझे याद है कि मनोज जी और रवीना जी के बाद लोगों ने यह भी चिल्लाना शुरू कर दिया कि अरे नवरंगियां भी आया है. दरअसल, फिल्म में आने से पहले मैंने टीवी शो ‘मुंगेरी का भाई नवरंगी’ की थी. भीड़ मुझे उसी नाम से बुला रही थी. समझ आ गया कि मेरी भी एक पहचान है.
फिल्म चुप चुप के में सबसे मुश्किल सीन
मैं उन चुनिंदा एक्टर्स में से हूं, जिन्होंने बहुत ही अलग-अलग तरह के किरदार किये हैं. मेरे किये गये कॉमेडी किरदारों में भी आपको विविधता देखने को मिलेगी. सबसे मुश्किल सीन की बात करूं, तो शाहिद कपूर के साथ मेरी फिल्म थी-‘चुपके चुप के.’ उसमें एक सीन था, जिसमें मेरे किरदार को मालूम पड़ता है कि शाहिद कपूर गूंगा-बहरा नहीं है. उस सीन में मुझे एक्टिंग के लगभग सभी रसों को दर्शाना था. प्रियदर्शन सर ने यही कहकर मुझे उस सीन के बारे में समझाया था. सच कहूं, तो समझ नहीं आया था, लेकिन फिर भी कर लिया. आश्चर्य की बात है कि पहला ही टेक ओके हो गया था. अभी आप मुझसे बोलेंगी, तो मैं वह सीन नहीं कर पाऊंगा. वो बस मैंने वही किया था. अब वैसे एक्सप्रेशन नहीं दे पाऊंगा.
ऐसे ही डायलॉग बोलना पसंद नहीं है
अपने अभिनय के सफर में बचपन से अब तक जो भी किरदार किये हैं, मैं आपको सब बता सकता हूं. मुझे सब कुछ याद रहता है. मुझे दिक्कत तब होती है, जब हम किसी इवेंट में गये हैं और लोग कहते हैं कि आप अपने उसे आइकॉनिक किरदार का वो वाला डायलॉग बोलिये. किसी भी प्रकार के डायलॉग को बोलने के लिए एक माहौल होता है. करोड़ों रुपये खर्च कर सेट पर उसके लिए सेटअप तैयार होता है. ऐसे ही डायलॉग बोल नहीं दिया जाता है. एक्टिंग एक प्रोसेस का नाम है. मुझे लगता है कि हम एक्टर हैं और हमने एक्टिंग कर दी. अब हम चाहते हैं कि वह डायलॉग दर्शक अपने घर-घर में बोलें, क्योंकि एक एक्टर के तौर पर हम यही तो हमेशा चाहते हैं. मुझे लगता है कि मेरे जितने आइकॉनिक किरदार हैं, वे सोशल मीडिया पर काफी वायरल हैं. मुझे उनको देखकर बड़ी खुशी होती है.
फिल्म मेकिंग में एक्टर का है स्थान पांचवा
फिल्म मेकिंग में मैं एक्टिंग को पांचवा मुख्य पहलू मानता हूं. फ्री के हीरोगिरी से आप सिनेमा को कंफ्यूज करके बता सकते हो कि आप ही सब कुछ हो, लेकिन ऐसा नहीं है. किसी फिल्म को बनाने में सबसे अहमियत एक लेखक की होती है. दूसरा जिसने स्क्रीनप्ले, डायलॉग लिखा. तीसरा डायरेक्टर और फिर चौथा प्रोड्यूसर. पैसा खुदा नहीं है, लेकिन खुदा की कसम पैसा खुदा से कम भी नहीं है. जो भी सोच है लिखावट है. वह पर्दे पर पैसे की वजह से ही आ पायेगी. फिल्म मेकिंग में चौथा महत्वपूर्ण आधार प्रोड्यूसर का है. जब पैसा मिल गया तो, फिर यह सवाल आता है कि यह रोल कौन करेगा? उसके बाद आता है एक्टर. थिएटर में एक्टर को देखकर तालियां पड़ती हैं, तो यह सुनकर वो खुद को खुदा मानने लगते हैं कि हमारे बिना फिल्में नहीं चलेंगी, लेकिन ऐसा नहीं है.
अपने आप को कभी कमतर नहीं समझा
मेरे अंदर कभी भी ईर्ष्या या हीन भावना नहीं रही है. मैं अपने आसपास सभी लोगों के लिए अच्छा होने पर तालियां बजाता हूं. मुझे लगता है यही वजह है कि भगवान ने भी बचपन से मेरे लिए स्टेडियम बनाकर रखा है और मैंने जमकर तालियां बटोरी है. बताना चाहूंगा कि मैं खुद को बहुत खूबसूरत भी मानता हूं. सबसे लंबा भी. मैंने अपने आपको कभी भी कमतर नहीं माना. जब मैं कबड्डी खेलता था, तो कितने भी बड़े हाइट के लोग क्यों न हो. मुझे कप्तान नहीं बनाया जाता, तो मैं कबड्डी खेलता नहीं था. हाइट को देखकर लगता था कि क्या ही कर लेगा. पता नहीं था कि कबड्डी या कोई भी खेल खेलने के लिए ताकत के साथ-साथ दिमाग भी चाहिए. टाइमिंग दिखाइए. वैसे ही मैंने जिंदगी को भी जिया है.
इंडस्ट्री में काम की कभी कमी नहीं रही
सच बताऊं, तो काम की कमी कभी नहीं रही है. काम तो आपके चारों तरफ घूमता है, लेकिन उसके लिए चुनाव बहुत जरूरी है, जो आपको भी संतुष्टि दे और जो आपको देख रहा है उसको भी. जब ओटीटी शुरू हुआ था, तो मुझे लगा था कि मेरा रिटायरमेंट अब आ गया है, क्योंकि उस वक्त जो कंटेंट वहां चल रहा था, मैं उसको नहीं कर सकता था. मुझे लगा मेरा समय खत्म हो गया. संघर्ष के दिनों में घर चलाने के लिए कुछ काम न चाहते हुए भी किये हैं, लेकिन जब से पहचान मिली है, तब से किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि मुझे गलत लाइन बुला ले और अच्छी लाइन बोलने से मैंने कभी छोड़ी नहीं. चाहे ज्यादा पैसे न मिले हो. ऊपर वाले की मेहरबानी से अच्छा काम मैं अभी भी कर रहा हूं.
अपनी ऑटोबायोग्राफी में सच को सामने लाऊंगा
मैं अपनी ऑटोबायोग्राफी के बारे में सोच रहा हूं. उसका नाम स्वीट बचपन तो स्वीट 55 होगा. मैंने इस वर्ष अपना 53वां साल पूरा कर लिया है. मैंने बायोग्राफी पर काम करना शुरू कर दिया है. मुझे लगता है कि जब मैं 55 साल का होऊंगा, तब उसको रिलीज करूंगा. बायोग्राफी इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि मेरी लाइफ में काफी मुश्किलें रही हैं. हमको कोई जानता ही नहीं है ठीक से. अलग-अलग कहानियां सुनने को मिलती है. दरअसल, राजपाल यादव तिहरा चरित्र जीते हैं. एक व्यक्तिगत है, एक व्यक्तित्व है और एक व्यापार है और इन तीनों के साथ व्यवहार है. एक्टर के अलावा पिता, पुत्र, पति, भाई के अलावा दूसरे रिश्तों में कैसा हूं, यह मेरी बायोग्राफी के जरिये आपको जानने को मिलेगा. इसके अलावा मुझे लेकर बहुत-सी बातें भी सुनने को मिलती हैं. कभी कोई दावा करता है कि मैं इंडस्ट्री छोड़कर जा रहा था, तो उसने मुझे काम दिलवाया. अरे आप खुद स्ट्रगलर थे. आप मुझे क्या काम दिलवायेंगे? मैं अपने करियर में राम गोपाल वर्मा और प्रियदर्शन का शुक्रगुजार हूं. मैं इन सब बातों की सच्चाई भी अपनी बायोग्राफी में लाना चाहूंगा.
अभी पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त…
मैं बहुत ईमानदारी से कहूंगा कि मैंने अब तक अपना केवल दस प्रतिशत ही उपयोग किया है. अभी बहुत कुछ बाकी है. मैं अब तक उन सभी प्लेटफॉर्म और निर्देशकों के लिए बहुत आभारी हूं. जिनके साथ मैं काम कर पाया हूं. मैं बॉलीवुड को उस हर चीज के लिए धन्यवाद देता हूं, जो उसने मुझे दी है. बॉलीवुड को एक एक्टर के तौर पर अभी बहुत कुछ और देना बाकी है, तो पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त…