actress parvathy:साउथ एक्ट्रेस पार्वती की तंगलान आगामी 6 सितम्बर को हिंदी भाषा में सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है.इस फिल्म में चियान विक्रम के साथ पार्वती की जोड़ी बनी है.पार्वती इस फिल्म के लोकेशन और उससे जुड़े शूटिंग के अनुभवों को अपने कैरियर की सबसे चुनौतीपूर्ण अनुभवों में से एक करार देती हैं.उनकी इस फिल्म, कोएक्टर चियान विक्रम और बॉलीवुड फिल्मों पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
गंगमा के लुक में आने में ढाई घंटे लगते थे
फिल्म में जब से मेरा लुक आया है , लोग इसे डीग्लैमराइज्ड रोल कह रहे हैं , लेकिन यह यह एक डीग्लैमराइज़्ड भूमिका से कहीं अधिक है. सच बताऊं तो हमने सामान्य शूट की तुलना में अधिक मेकअप करना पड़ता था. मुझे हर रोज मेकअप में ढाई घंटे लगते थे. अलग तरह का मेकअप था. सनटैन को दिखाना था.मेरे शरीर पर बहुत सारे टैटू थे, उस ज़माने में महिलाएं ब्लाउज़ नहीं पहनती थीं, वे ब्लाउज़ डिज़ाइन में टैटू बनवाती थीं,तो हर दिन उस डिजाइन को बनवाना आसान नहीं होता था. वैसे मुझे अपना लुक बेहद पसंद आया क्योंकि मैं अपनी हर हाल में फेवरेट हूं.मैंने शूटिंग के वक़्त मॉनिटर भी नहीं देखा क्योंकि मुझे निर्देशक के अनुसार ही लुक और अपने काम को पूरी तरह से रखना था.फिल्म के निर्देशक इसे एकदम नेचुरल रखना चाहते थे.मेकअप ही नहीं किरदार को भी वह एकदम नेचुरल रखना चाहते थे.यही वजह है कि एक दिन उन्होंने मुझे दोपहर के दो बजे बुलाया और मुझसे खेत तक जुतवाया था.वह चाहते थे कि मैं अपने किरदार को अच्छी तरह से समझ सकूं .
गंगमा का किरदार बेहद सशक्त है
महिलाओं को अक्सर फिल्मों में एक तरीके का खूबसूरत दिखाने में ही निर्देशकों का पूरा फोकस रहता है,लेकिन तंगलान में एक अलग ही तरह की खूबसूरती को दिखाया गया है.इसके लिए मुझे निर्देशक पा रंजीत को धन्यवाद देना होगा, वह एक फाइन आर्ट्स के छात्र है और एक महिला के शरीर को अच्छी तरह से समझते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं.इस फिल्म में मैं पाँच बच्चों की मां गंगमा की भूमिका में हूं और असल जिंदगी में मैं माँ भी नहीं हूँ. इस फिल्म में मेरा जो किरदार है.वह उस टाइम पीरियड का है, जब औरतें ब्लाउज़ नहीं पहनती थी और हर तरह का काम फिर भी करती थी.कोई शर्म नहीं थी. हमारा शरीर तो हमारा शरीर है ना और इसमें हमें शर्म क्यों आती है. हमें उस शरीर पर गर्व होना चाहिए. इसलिए उस समय की महिलाओं को इस पर गर्व था क्योंकि उनके शरीर से उन्हें काम और भोजन दोनों मिलता था. मुझे यह भी एहसास हुआ कि मेरे लिए घर में रहने जैसा है.जो नेचुरल होने के साथ -साथ एम्पॉवरिंग का एहसास लिए भी था. यह फिल्म और मेरा किरदार बहुत स्वाभाविक और सशक्त है.
विक्रम सचमुच लीडर की तरह हैं
तंगवान का मतलब लीडर होता है और मैं अपने को एक्टर के बारे में यही कहूंगी। वह जितने महान एक्टर हैं , उतने ही अच्छे इंसान भी हैं. सेट पर वह सभी से उनके खाने के बारे में पूछते थे. हर किसी के काम की उनको फ़िक्र रहती थी.हमारी शूटिंग आसान नहीं थी.तेज धूप में शूटिंग करना आसान नहीं था, लेकिन विक्रम सेट का माहौल खुशनुमा रखने की पूरी कोशिश करते थे.जैसे ही आप उनसे हाथ मिलाते हैं, वो आपको वहां की एक लोकल टॉफी आपके हाथ में दे देते थे. मुझे वह टॉफी बहुत पसंद थी.
हर इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है
हेमा कमिटी पर बात करने के लिए मुझे लगता है कि बहुत लम्बा समय चाहिए लेकिन हां इतना जरूर कहूंगी कि मलयालम इंडस्ट्री ही नहीं महिलाओं के साथ हर जगह भेदभाव है. हर जगह गंदगी है और हम लड़कियों को इसे खुद ही साफ़ करना होगा। मुझे यकीन है कि बदलाव हो रहा है.हममें से हर किसी को अपने लिए खड़ा होना होगा.
बॉलीवुड से नहीं मिला ऑफर
इरफान खान के साथ क़रीब क़रीब सिंगल मेरी यादगार फिल्म थी.मैं और बॉलीवुड फिल्मों में काम करना चाहती थी,लेकिन मुझे ऑफ़र ही नहीं मिले और यही कारण है कि मैं उस फिल्म के बाद किसी भी बॉलीवुड फिल्म में नजर नहीं आयी.मुझे तो भाषा की भी दिक्कत नहीं है.मैं केंद्रीय विद्यालय में पली बढ़ी हूँ. साउथ की भाषा से पहले मुझे हिंदी लिखना पढ़ना आ गया था.इसके साथ ही बचपन में मेरे सारे दोस्त नार्थ इंडियन थे क्योंकि मैं आर्मी कैंट में रहती थी और उन सबसे हिंदी में ही बात करती थी.