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अजय देवगन की फिल्म ‘भोला’ के पटकथा लेखक श्रीधर दुबे देवघर में, कहा- फिल्म इंडस्ट्री के लिए OTT चुनौती

श्रीधर ‘फिजिक्सवाला’ सीरीज में लीड रोल में काम कर चुके हैं. वहीं, अंकुश सिंह मूलत: उन्नाव जनपद उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. वर्ष 2007-08 में फिल्म इंडस्ट्रीज में कदम रखा. जी-5 पर रिलीज संजय गडवी की ‘ऑपरेशन परिदें’ उनकी चर्चित सीरीज है.

देवघर, विजय कुमार. डायरेक्टर व प्रोड्यूसर अजय देवगन अभिनीत बॉलीवुड की एक्शन थ्रीलर फिल्म ‘भोला’ 30 मार्च 2023 काे रिलीज होने वाली है. इस फिल्म के पटकथा लेखक श्रीधर दुबे व अंकुश सिंह ने बाबा दरबार में हाजिरी लगाकर भोला फिल्म की सफलता की कामना की. श्रीधर दुबे मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं. उन्होंने भारतेंदु नाटक अकादमी से ट्रेनिंग के बाद दिल्ली व वहां से मुंबई तक का सफर किया.

वर्ष 2005 में थियेटर से जुड़ने के बाद बतौर अभिनेता ‘शूद्र’ पहली फिल्म की, लेकिन ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ उनकी पहली रिलीज फिल्म रही. इस फिल्म में फैजल खान (नवाजउद्दीन सिद्दीकी) के दोस्त का रोल किया. गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद तिग्मांशु धुलिया के साथ फिल्म ‘यारा’ की. फिल्म ‘मसान’ में विक्की कौशल के दोस्त केके (कुंदन कश्यप) से विशेष पहचान मिली.

इसके बाद ‘हाफ गर्लफ्रेंड’, ‘मुक्काबाज’, ‘सोन चिरैयां’, ‘रात अकेली है’ जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बनायी. श्रीधर ‘फिजिक्सवाला’ सीरीज में लीड रोल में काम कर चुके हैं. वहीं, अंकुश सिंह मूलत: उन्नाव जनपद उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. वर्ष 2007-08 में फिल्म इंडस्ट्रीज में कदम रखा. जी-5 पर रिलीज संजय गडवी की ‘ऑपरेशन परिदें’ उनकी चर्चित सीरीज है.

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इन्होंने बतौर राइटर व डायरेक्टर कई लोगों को असिस्ट भी किया है. ‘प्रभात खबर’ से बातचीत में दोनों पटकथा लेखकों ने फिल्म इंड्रस्ट्रीज, ओटीटी प्लेटफॉर्म व दर्शकों के सवालों पर बेबाकी से बात की. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश.

किसी विशेष कामना के साथ देवघर में बाबा बैद्यनाथ की पूजा करने आये हैं?

डायरेक्टर, प्रोड्यूसर अजय देवगन की फिल्म ‘भोला’ 30 मार्च को रिलीज होनी है. फिल्म की सफलता के लिए मनोकामना लेकर बाबा बैद्यनाथ की पूजा-अर्चना की और बाबा का आशीर्वाद लिया.

ओटीटी के दौर में आज फिल्म और फिल्म इंडस्ट्रीज को कहां खड़ा पाते हैं?

मैंने जब फिल्म इंडस्ट्रीज को ज्वाइन किया, तो वह वीसीआर का दौर था. मैंने सिनेमा को वीसीआर के माध्यम से जाना था. गांव-गांव में वीसीआर पहुंचता था. फिर थियेटर में जाना हुआ. कॉलेज में पहुंचा, तो सिनेमा हॉल जाने लगा. 90 के दशक में भी कहा जाता था कि वीसीआर ने सिनेमा घर को खा लिया है. फिर भी आज सिनेमा अपनी जगह है. सीडी आने के बाद लोकल फिल्म व छोटी फिल्में बनने लगीं. उस वक्त भी बोला गया था कि सीडी ने सिनेमा घर को खा लिया है. आज भी सिनेमा मौजूद है. यूट्यूब आया, टेलीविजन पर डब फिल्में आयीं. फिर भी सिनेमा उद्योग खड़ा है और आगे भी रहेगा.

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फिल्म इंडस्ट्रीज के मुकाबले ओटीटी प्लेटफॉर्म को कहां पाते हैं?

ओटीटी हमारे लिए चैलेंज है. यह हमें एक साथ कई मौका भी देता है. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर शाहरुख खान हों, पंकज त्रिपाठी हों, श्रीधर दुबे हो या कोई और, सब बराबर हैं. इसमें राइटर के लिए बड़ा स्कोप है. वहीं, सिनेमा के लिए काफी स्कोप बढ़ गया है, क्योंकि जब कोई नया कंपटीटर आता है, तो आप बड़ा आकार ले सकते हैं. सिनेमा हमेशा रहा है और रहेगा. मायने बदलेगा, पिक्चर का तरीका बदलेगा, बड़ी फिल्में बनेंगी.

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर क्षेत्रीय कलाकारों को कितना मौका मिलेगा?

सिनेमा व ओटीटी प्लेटफाॅर्म पर क्षेत्रीय कलाकारों को शुरू से ही मौका मिलता रहा है. सिनेमा में पहले स्थापित कलाकार अच्छे रोल अपने पास रखते थे. बाकी रोल क्षेत्रीय कलाकारों को दे दिया जाता था. ओटीटी आने से एक फायदा यह हुआ कि जो क्षेत्रीय कलाकार हैं, उनकी क्षमता निर्माता देख पा रहे हैं. किस रोल में कौन से कलाकार फिट हैं, उन्हें ही रोल मिलता है. निश्चित रूप से ओटीटी ने यह अवसर दिया है. इसे नकारा नहीं जा सकता. स्थापित कलाकार भी ओटीटी पर आने लगे हैं.

ओटीटी पर कलाकारों के करियर को कैसे देखते हैं?

स्थापित कलाकार मनोज बाजपेई, पंकज त्रिपाठी ही नहीं, बल्कि ओटीटी पर बिहार सहित विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय कलाकार भी स्टार बन गये हैं. उनकी फिल्में ओटीटी पर बिकने लगी हैं. मेरा सिनेमा इंटरनेशनल हुआ है. नेटफ्लिक्स वर्ल्डवाइड है. इसे कोई भी देख सकता है. हमारा सिरीज, डिजिटल सैटेलाइट का वैल्यू बढ़ रहा है. ओटीटी ने अच्छा कर दिया कि आप बेहतर कंटेंट दोगे, तो चलेगा.

पिछले एक वर्ष में कई फिल्में फ्लॉप रही हैं, इसे किस रूप में देखते हैं?

कोविड संक्रमण बड़ा कारण है. कोविड के दौर में जनता ने वर्ल्डवाइड कंटेंट देख लिया है. हिंदी, डब, सब टाइटल आदि भाषाओं में देख लिया है. जनता भी अब अपग्रेड हो गयी है. इसलिए सिनेमा अभी पीछे है.

ओटीटी का भविष्य क्या है?

ओटीटी कलाकरों के लिए बेहतर प्लेटफॉर्म है, लेकिन ओटीटी ने भी कंटेंट के मामले में अपने को संभाला नहीं, तो उसका भी पतन हो जायेगा. ओटीटी बड़ा मौका है. जब घाट-घाट का पानी बदल रहा है, तो कहानी भी बदल रहे हैं. इस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है.

फिल्म इंडस्ट्रीज को राज्य व केंद्र सरकार कितना मदद कर रही है?

झारखंड-बिहार में सब्सिडी की बातें चल रहीं हैं. अब सभी को पता चल गया है कि शूटिंग स्टूडियो में नहीं, बल्कि रीयल लोकेशन में हाे रही है. सिनेमा को इससे दो तरीके से फायदे हैं. एक तो जिस शहर में शूटिंग होती है, वहां के लोगों से सीधे संवाद होता है. दूसरी ओर, जो लोग शूटिंग देखते हैं, उन्हें फिल्में रिलीज होने का इंतजार रहता है.

फिल्म इंडस्ट्रीज को भारत सरकार से क्या उम्मीदें हैं?

मेरा व्यक्तिगत विचार है कि फिल्म इंडस्ट्रीज बड़ा उद्योग है. बहुत लोगों की रोजी-रोटी इससे चलती है. देश के कोने-कोने से लोग सपना लेकर मुंबई पहुंचते हैं. हमारी समस्याओं को सुनने के लिए भी एक मंत्रालय होना जरूरी है, ताकि फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी अपनी बातों को खुलकर रख सकें.

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