amitabh bachchan के साथ एक विज्ञापन फिल्म में स्क्रीन शेयर कर चुके बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले शशि वर्मा के लिए प्रसिद्ध शायर दुष्यंत कुमार की यह लाइनें “कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो” बिलकुल सटीक बैठती हैं..शशि वर्मा अभिनेता के तौर पर अमिताभ बच्चन ही नहीं आलिया भट्ट ,अनिल कपूर और आयुष्मान खुराना जैसे कई बड़े नामों के साथ स्क्रीन शेयर कर चुके हैं. निर्देशक और लेखक के तौर उनका नाम कई डॉक्यूमेंट्रीज,विज्ञापन फिल्मों और शो से जुड़ता रहता है,जो यह साबित करता है कि मेहनत और लगन से कुछ भी पाना असंभव नहीं है. निर्देशक,लेखक और अभिनेता शशि वर्मा भी इसी फलसफे में यकीन रखते हुए कहते हैं कि अब तक की जर्नी मेरी बहुत कमाल की रही है. मुझे पता है कि बहुत लोगों ने बहुत कम उम्र में ही मुझसे कई गुना बड़ी सफलता हासिल है,लेकिन मेरे लिए सफलता के मायने बहुत अलग है. मैं जहां से आता हूं.वहां से यहां तक का सफर तय कर लेना भी अपने आप में बहुत बड़ी बात है.बाकी तो मुझे भी अपने जीवन के उस शुक्रवार का इंतजार है. जब मेरा काम सभी में रिकॉग्नाइज हो जाए. उर्मिला कोरी से उन्होंने अब तक की जर्नी , संघर्ष, सफलता और आनेवाले प्रोजेक्ट्स के बारे में बात की.बातचीत के प्रमुख अंश
मुंबई में रहने के लिए सारे टैलेंट बेचें
सन 2001 में मुंबई निर्देशक बनने के लिए आया था.इसी बारिश के मौसम में आए थे. जब हम यहां आए थे तो क्राफ्ट सीखने के लिए आए थे और पूरी तैयारी के साथ आए थे. मैं वाया दिल्ली मुंबई पहुंचा था. दिल्ली में मैंने थिएटर किया था. एडिटिंग सीखी थी. मैं जब मुंबई आया तो मानसिक तौर पर इस बात को तैयार था कि मुझे डायरेक्टर बनना है. अभिनय कभी भी मेरी लिस्ट में नहीं था.क्योंकि मैं जानता था कि मैं अभिनय में स्ट्रगल अफोर्ड नहीं कर पाऊंगा. दरअसल फिल्मों में असिस्टेंट को पैसे मिलते हैं. जिससे मैं मुंबई में टिक सकता था. उस वक्त असिस्टेंट के तौर हमको 100 से 200 रुपए रोज के मिलते थे. मैं रोज बहाना भी ढूंढ लेता था कि डायरेक्टर के पास पहुंच जाओ.दूसरा उसमें खाना भी फ्री का मिल जाता था. मुंबई में मैं इसलिए भी टिक पाया क्योंकि मेरी ज़रूरतें बहुत कम थी.जब मैं मुंबई आया तो शुरूआती दो महीने सायन मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में रहा क्योंकि मेरे मौसेरे भाई वहां पढ़ाई करते थे.उसके बाद मैंने मुंबई के गुरु तेग बहादुर में 50 रुपए रोजाना किराये पर घर लिया .मैं जानता था कि मुंबई में रहना जरुरी है जुहू या लोखंडवाला में नहीं. ट्रेन का पास बना लिया था. दो से तीन ट्रेन बदलकर अंधेरी पहुंचता था. उसके बाद पैदल ही जाता था.धीरे-धीरे ईश्वर की दया से कि मेरी आवाज अच्छी थी तो मुझे वॉइस ओवर का काम भी मिला. मैंने ऐसे कर कर के सारे डिपार्टमेंट में काम किया है या फिर यह कह सकते हैं कि मैं अपने सारे टैलेंट बेचे हैं,जो मुझे यहां रहने के लिए सपोर्ट कर सके.
निर्देशन सीखने के लिए मार्केटिंग भी की
मैं शुरुआत में लेख टंडन जी का असिस्टेंट था. लगान फिल्म आने के बाद एक सॉफ्टवेयर लॉन्च हुआ था.लगान वह फिल्म थी,जिसमें प्री प्रोडक्शन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ था. एक कंपनी थी.जो यह प्री प्रोडक्शन सॉफ्टवेयर बेचती थी.मैं उसमें उन लोगों का मीडिया कंसलटेंट बन गया . उसकी मार्केटिंग करनी थी. इसकी मार्केटिंग वही बंदा कर सकता था, जिसको सिनेमा और उससे जुड़ी तकनीकी चीज की समझ हो. मुझे एडिटिंग , राइटिंग ,एक्टिंग से लेकर निर्देशन सभी की समझ थी.मैंने सॉफ्टवेयर बेचना शुरू कर दिया.उस दौरान में तमाम दिग्गज निर्देशकों से मिला. कुछ समय राहुल रवैल जी के साथ भी रहा. बालाजी टेलीफिल्म्स में मैंने निर्देशक पार्थो घोष के साथ मिलकर वह सॉफ्टवेयर शुरू करवाया.इस दौरान मुझे सेट पर रहने का बहुत मौका मिला जिससे मुझे खुद भी बहुत सारा प्रैक्टिकल नॉलेज फिल्म मेकिंग का आया.मेरे एक मित्र थे एफटीआई के नारायण.फिर मैंने उनके साथ एक प्रोजेक्ट किया. अभी वह एफटीआई में एडिटिंग के डीन हैं. जब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि अब मुझे काम आ गया है,तो मैं खुद की अपनी एक शॉर्ट फिल्म टच बनाई, जो काफी जगह सराही गयी.फिर मेरे निर्देशन में कुछ ना कुछ काम करना गया.
एक्टिंग बाय चांस हो गया
मैं निर्देशन ही करना चाहता था.एक्टिंग बायचांस हो गया.मैं फिल्म शोरगुल निर्देशित कर रहा था. निर्माता से थोड़ी बहुत अनबन के बाद उन्होंने मेरा नाम क्रिएटिव डायरेक्टर की लिस्ट में डाल दिया था. जब आप इंडस्ट्री में नए होते हैं, तो इस तरह की घटनाएं आम है. इसी फिल्म में मैंने पहली बार अभिनय भी किया था. दरअसल मेरा वाला रोल एक बड़े अभिनेता करने वाले थे,लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने बहुत पैसे मांग लिए. उस वक्त सभी लोगों ने कहा कि दादा आप ही कर लीजिए.इतना अच्छा नरेट करते हैं. जिसके बाद मैंने एक्टिंग कर लिया. फिल्म अच्छी बनी थी,लेकिन सलमान खान की फिल्म के साथ रिलीज हुई थी. जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा था हालांकि फिल्म को टीवी और ओटीटी पर पसंद किया गया था. इस फिल्म से मेरे अभिनय की दुकान चल पड़ी थी.
बच्चन साहब के साथ स्क्रीन शेयर करना दिव्य अनुभव था
अभिनय की दुकान चल पड़ने में मैं फिल्मों ,वेब सीरीज के साथ कई विज्ञापन फिल्मों का हिस्सा लगातार बनता गया. जिसमें फिल्म बाला, गुंजन सक्सेना, वेब सीरीज ये काली काली आँखें , पंचायत जैसे नाम बहुत खास रहे हैं. मैंने विज्ञापन फिल्में सबसे ज्यादा की हैं. अब तक मैं 150 से अधिक विज्ञापन फिल्में कर चुका हूं.मेरा एक विज्ञापन बच्चन साहब के साथ था.मैं उस अनुभव को दिव्य करार दूंगा. उस वक्त मुझे विज्ञापन फिल्मों में ठीक-ठाक से मिल जाते थे. उस विज्ञापन फिल्म को मैंने आधी प्राइस पर किया क्योंकि मैं बच्चन साहब के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना चाहता था. बच्चन साहब जिस तरह से अपने को एक्टर को कंफर्ट फील करवाते हैं. वह मिसाल है. (हंसते हुए )मैं उनके साथ एक्टिंग करते हुए नर्वस नहीं हुआ था.इस बात से मैं खुद से ही इम्प्रेस हो गया था.
पढाई में औसत था एक्स्ट्रा करिकुलम में था अव्वल
मैं हमेशा से पढ़ाई में औसत था और एक्स्ट्रा करिकुलम में सबसे आगे था. इसी ने मुझे थिएटर से जोड़ा.मुझे जैसे ही रंगकर्म की समझ हुई कि 10 लोगों के सामने परफॉर्म करना टैलेंट है, जिसमे तुरंत आपको लोगों का रिस्पांस भी मिल जाता है.इससे मुझे एक अलग ही किक मिलता था.मेरे नाम से कई नाटक हाउसफुल रहते थे. पटना में पढाई करने के बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढाई की.जेएनयू भी गया, वहां पूरा पढ़ नहीं पाया,लेकिन रंगकर्म की पारंपरिक शिक्षा वहीं से मिली थी. मैंने दिल्ली के श्रीराम सेंटर से 2 साल का डिप्लोमा भी किया है, लेकिन जो असल समझ क्राफ्ट की होती है कि क्या कैसे कहना है. वह मुझे जेएनयू ने दी है. मेरे गुरुदेव वागेश झा रहे हैं.वह बहुत बड़े रंगकर्मी रहे हैं. उनको पता नहीं मुझ में क्या दिखा था. उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया.अगर आज कोई बच्चा मुझसे वर्कशॉप में एक्टिंग सीखता है, तो वह खुद मुझसे कहता है कि यह बात मुझे नाटक अकादमी और एक्टिंग स्कूल में भी नहीं सिखाई गई थी.मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरे गुरुदेव और जीवन के अनुभवों ने मुझे सिखाया है. वैसे मेरे फिल्मों में करियर बनाने के फैंसले का मेरे बाबूजी ने हमेशा ही सपोर्ट किया. मेरे पिताजी इंजीनियर थे, लेकिन उन्होंने मुझ पर कभी दबाव नहीं डाला और मेरे बड़े भाई का भी बहुत सपोर्ट रहा कि तुम्हे जो अच्छा लगता है. तुम वही करो.
दिल्ली में पट्रोल पंप में काम किया तो मुंबई में शूटिंग सेट पर झाड़ू भी लगाया
अब तक की जर्नी में संघर्ष भी खूब रहा है.दिल्ली में पढाई करते हुए मैंने पेट्रोल पंप में पेट्रोल भरने का भी काम किया है.यह भी एक अलग ही कहानी है. मैंने किसी से उधार मांग कर अपने एक सीनियर दोस्त को पैसा दिया था.उन्हें अपना मेस का 5 हज़ार बिल क्लियर करना था.वह पैसा लौटा नहीं पा रहे थे क्योंकि उनके पैसे चोरी हो गए थे.मेरे पास कोई और चारा नहीं था. मैंने एक महीने की मोहलत और मांग ली और एक महीने तक पेट्रोल पंप में पेट्रोल भरने का काम किया, जिसमें 6 हजार मिले थे.5 हजार मैंने वापस कर दिए. जब मैं वह काम कर रहा था,तो तुम मुझे लगा था कि जब मैं यह कर सकता हूं तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. संघर्ष की आदत थी,तो मुंबई में भी संघर्ष करते हुए हार नहीं मानीं,जब मैं असिस्टेंट था तो मैंने सेट पर झाड़ू तक लगाया है.लोगों ने अलग-अलग तरह से शोषण किया है. सेट के निर्देशक ये ले आ.वह ले आ.भाग कर वहां चला जा.निर्देशकों की घर की सब्जियां तक लाया हूं. उस वक़्त इन सबके बारे सोचता भी नहीं था. मुझे बस यह था कि मुझे काम सीखना है. और सच कहूं तो मेरी वह सारी मेहनत रंग लाई है. मैंने क्राफ्ट को बखूबी जाना और सीखा है.ये भी हो सकता है कि ईश्वर ने शायद जो भी दिया है इसी संघर्ष को देखते हुए दिया है.मैं डिजर्व तो बहुत कुछ करता हूं , लेकिन उम्मीद है देर सवेर वह भी मिल जाएगा.
डिप्रेशन में सुबह शराब के साथ होने लगी थी
ज़िन्दगी में उतार चढ़ाव सभी के आते हैं. एक बुरा वक़्त मैंने भी देखा था.जिसने कुछ समय के लिए मुझे भी तोड़ दिया था.साल 2006 में मैं मुंबई से वापस दिल्ली लौट गया था.दरअसल मैं वीएफएक्स की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाला था.लाइव वीएफएक्स की मैं पढ़ाई करने वाला था. उस समय फिल्मों में वह नया – नया आया था. कनाडा के कॉलेज में सिलेक्शन हो गया था. मुझे 60% स्कॉलरशिप मिली थी 40% पैसे जमा करने थे. जिसके लिए मुझे 6 लाख लाख भरने थे. उसमें मेरा रहना खाना भी शामिल था. एक लाख इंतजाम हो गया था.बाकी के पांच लाख के लिए बिहार के लगभग हर बैंक से मैंने एजुकेशन लोन मांगा था, लेकिन सभी ने रिजेक्ट कर दिया. वह मेरा डिप्रेशन का दौर था.मेरे पिताजी ने कहा था कि मैं घर गिरवी रख देता हूं लेकिन मैंने कहा नहीं बाबूजी यह नहीं करना है.इसके बाद मैं मुंबई से दिल्ली आ गया.इतना ज्यादा परेशान था कि मैं सुबह उठने के साथ ही दारू पीने लगता था.दिन भर शराब के नशे में ही रहता था.कुछ वक़्त बीता.मेरे गुरु और भाई वागेश झा को यह सब मालूम हुआ. वह फिर से मेरी जिंदगी मेंआए . उन्होंने मुझे कहा कि तुम अपनी कंपनी बनाओ फिर उन्होंने मुझे एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का काम दिया.वह कंपनी फिर चल पड़ी.इसी बीच मेरा विवाह हो गया. बच्चे भी. जीवन अच्छा चल रहा था. फिर मैंने महसूस किया कि मैं यह काम करने के लिए नहीं हूं.मुझे तो हमेशा से सिनेमा ही बनाना था. मैंने तय कर लिया कि मुझे मुंबई ही रहना है. मैं अपनी पत्नी मनीषा का बहुत शुक्रगुजार हूं.वह एक हिंदुस्तानी क्लासिकल सिंगर है.दिल्ली में वह पढ़ाती थी और गाती थी,लेकिन उन्होंने अपने को पीछे लेकर मुझे मुंबई आने के लिए सपोर्ट किया. दिल्ली से सब कुछ खत्म कर कर हम मुंबई आ गए . इस बार मुंबई में यह तय करके आया था कि अब यहां से खाली हाथ नहीं लौटूंगा. जिद तो थी और मैं अपने टैलेंट को भी पहचानता था कि मैं औसत लोगों से अच्छा कर सकता हूं.चाहे मैं लिखूं तो या अभिनय करूं या फिर निर्देशन करूं.आज मुंबई में हमारा अपना खुद का घर है.गाडी भी है.
एक्टिंग में शार्ट फिल्म से लेकर वेब सीरीज है रिलीज को तैयार
एक्टिंग की बात करूं तो आगामी 9 अगस्त को लाइफ की हिल गयी एक सीरीज आ रही है.उसके एक एपिसोड में भी दिखूंगा.वेब सीरीज ये काली – काली आँखें के दूसरे सीजन का भी हिस्सा हूं .नितिन चंद्रा की शार्ट फिल्म बिदा में भी इनदिनों नजर आ रहा हूं. इस शॉर्ट फिल्म को मैंने मैथिली, मगही और भोजपुरी तीनों लैंग्वेज में डब किया है.मुझे बिहार की सारी भाषाएं आती हैं.वैसे बिहारी होने के नाते ही मैंने फिल्म बिदा की ताकि मेरा भी कुछ योगदान अपने भाषा अपनी संस्कृति के लिए हो सके.
निर्देशन में बनी वेब सीरीज की रिलीज का है इन्तजार
मेरी वेब सीरीज एके 47 बनकर तैयार है. जल्द ही एक बड़े ओटीटी प्लेटफार्म पर इसकी रिलीज की घोषणा होगी. यह सीरीज ९० के दशक के माफिया और बिहार की उस वक़्त की राजनीति पर आधारित है. रविकिशन , शेखर सुमन, अनुरिता झा इसका हिस्सा हैं. मुझे लगता है कि ये सीरीज आ जाए,तो मेरे जीवन में चीजें बेहतर हो सकती हैं.इस वेब सीरीज में मैंने डायरेक्शन , लेखन के साथ अभिनय भी किया है. एक और वेब सीरीज की शूटिंग अक्टूबर महीने से शुरू करने वाला हूं. मौजूदा समय की बात करूं तो दो सीरीज डायरेक्ट कर रहा हूं. एक है भारत स्टार्ट अप यात्रा, जिसे रिचा अनिरुद्ध एंकर कर रही हैं. यह एक ट्रैवलॉग है.जिसमें हम कानपुर और पटना जैसे शहरों में जाते हैं. शहर को भी जानते हैं और ऐसे स्टार्टअप एंटरप्रेन्योर से बात करते हैं ,जिन्होंने वहां रहकर अपनी खास जगह बनायी .दूसरी है ब्रांड ऑफ़ पर्पस जिसे मैं अमेजॉन वेब सर्विस के लिए बना रहा हूं. जिसमें वैसे ब्रांड को कैटर कर रहे हैं, जो सोसाइटी में प्रभाव ड़ालते हैं.
सभी से कहूंगा तैयारी के साथ आइए और संघर्ष के लिए भी रहें तैयार
जो लोग बिहार, झारखंड से आते हैं और सोचते हैं कि रातों-रात स्टारडम मिल जाएगा या जो लोग मुझे फोन करके कहते रहते की भैया मुझसे भी एक्टिंग करवा लीजिए मुझे भी कहीं फिट करवा दीजिए.उन सब को यही कहूंगा कि सबका एक तरीका होता है. अगर सब कुछ मेरे ही हाथ में होता तो प्रतीक्षा के बगल मेरा भी बंगला होता था. मैं कहूंगा तैयारी के साथ आइए. यह परफॉर्मेस ओरिएंटेड सेक्टर है. आप अच्छा काम करते हैं आपको काम मिलेगा. अपनी तरफ से मैं गाइड भी कर दूंगा, लेकिन संघर्ष के लिए भी आपको खुद को तैयार रखना होगा.