Andaman Review
फ़िल्म- अंडमान
निर्देशक- स्मिता सिंह
निर्माता-8 पिलर्स मोशन पिक्चर्स
कलाकार- आनंद राज , जय शंकर पांडेय, अमरीश बॉबी, अमृता पाल और अन्य
रेटिंग -तीन
ओटीटी प्लेटफार्म पर कोरोना काल पर अब तक कई एंथोलॉजी फिल्में और वेब सीरीज आ चुकी है. नवोदित निर्देशिका स्मिता सिंह की फ़िल्म अंडमान भी कोरोना काल के दौरान की कहानी है लेकिन उनकी कहानी का बैकड्रॉप अभावों से ग्रसित एक गाँव के क्वारंटीन सेंटर की है जो अब तक अछूता रहा है. कुलमिलाकर फ़िल्म की कहानी,कलाकारों के स्वभाविक अभिनय और बेहतरीन निर्देशन की वजह से यह फ़िल्म बहुत सहज ढंग से सिस्टम का स्याह चेहरा दिखा जाती है.
कहानी अभिमन्यु प्रताप (आनंद राज) की है जो पढ़ने में हमेशा टॉपर रहा है. सभी को लगता था कि वह आईएएस ऑफिसर आसानी से बन जाएगा लेकिन लगातार वह आईएएस की परीक्षा में असफल हो रहा है जिससे पिता नाराज़ हो गए हैं और प्रेमिका ने तो किसी और से शादी की रचा डाली. अभिमन्यु निराश होकर आत्महत्या का भी प्रयास करता है लेकिन उसमें भी असफल रह जाता है तो पंचायत सचिव की नौकरी को स्वीकार कर नए तरीके से ज़िन्दगी जीने का फैसला करता है. उसकी नौकरी अभावों से ग्रसित अंडमान गाँव में उसे पहुंचा देती है.
शहर से इस गांव की दूरी सिर्फ 5 किलोमीटर है लेकिन बीच में नदी है जिस पर प्रशासन को कभी भी ब्रिज बनाने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई और गांव वालों की सभी परेशानी का हल ब्रिज है. नाव से ही लोग इस पार से उस पार उतरते हैं अगर नाव नहीं तो अंडमान पहुंचने में 65 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है. अभिमन्यु नौकरी से जुड़ते ही उस नदी पर ब्रिज बनाने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखता है और कहानी में कोरोना की एंट्री हो जाती है.
अभिमन्यु को क्वारंटीन सेन्टर को संभालने की जिम्मेदारी मिल जाती है. यह जिम्मेदारी आसान नहीं है क्योंकि हमारा सिस्टम ही पूरा भ्रष्ट है जो कोरोना वायरस से ज़्यादा खतरनाक हैं. छूत अछूत, धर्म जाति, बाहुबलियों की मनमानी इन सबसे अभिमन्यु को लड़ना होगा क्या वो कामयाब होगा और साथ ही क्या वह आईएएस बनने में कामयाब होगा और अंडमान गाँव को शहर से ब्रीज से जोड़ पाएगा. इसके लिए आपको यह फ़िल्म देखनी होगी.
इस प्रेरणादायी सोशल ड्रामा में एक गाँव का क्वारंटीन सेन्टर किस तरह की परेशानियों को जूझ रहा होगा. इसकी बहुत ही करीबी तस्वीर यह फ़िल्म दिखाती है.कहानी के सब प्लॉट्स भी रोचक हैं. कोरोना काल में महिलाओं पर कामकाज का बोझ किस तरह से दुगुना हो गया था लेकिन परिवार में उनके बढ़े काम को लेकर कोई सम्मान नहीं था. इस मुद्दे को अनिता भाभी के किरदार के ज़रिए फ़िल्म में बखूबी जोड़ा गया है. अलग अलग मानवीय पहलुओं को इस फ़िल्म से जोड़ा गया है।सब प्लॉट्स की एक कहानी एक ऐसे शादीशुदा जोड़े की भी है।व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर भी यह फ़िल्म तंज कसती है. फ़िल्म का ट्रीटमेंट बहुत ही हल्के फुल्का रखा गया है. जिस वजह से यह फ़िल्म शुरुआत से अंत तक बांधे रखती है. खामियों की बात करें तो सेकेंड हाफ में कहानी थोड़ी कमज़ोर हो गयी है. फ़िल्म का फिल्मी अंत भी थोड़ा अखरता है.
अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म के कलाकार भले ही लोकप्रिय चेहरे ना हो लेकिन उन्होंने दिल जीतने वाला अभिनय किया है. इस फ़िल्म के लेखक आनंद राज फ़िल्म के लीड एक्टर भी हैं. उन्होंने अपनी लेखनी के साथ साथ अपने अभिनय में भी छाप छोड़ी है. सपोर्टिंग कास्ट ने भी बहुत सधा हुआ अभिनय किया है जिस वजह से हर एक्टर अपने किरदार में पूरी तरह से रचा बसा नज़र आया है जो फ़िल्म को औऱ एंगेजिंग बनाता है. संजय मिश्रा और राजेश तैलंग भी इस फ़िल्म में अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं. संजय मिश्रा वाला दृश्य फ़िल्म के यादगार दृश्यों में से एक है. फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.संवाद अच्छे बन पड़े हैं.