Aranyak Review
वेब सीरीज- आरण्यक
निर्देशक- विनय वाइकुल
निर्माता-रमेश सिप्पी और सिद्धार्थ रॉय कपूर
कलाकार- रवीना टंडन, परमब्रत चटर्जी,आशुतोष राणा, जाकिर हुसैन,मेघना मलिक,तनीषा ,तेजस्वी देव और अन्य
प्लेटफार्म- नेटफ्लिक्स
रेटिंग-दो
90 के दशक की पॉपुलर अभिनेत्री रवीना टंडन ने आरण्यक से ओटीटी प्लेटफार्म पर अपनी शुरुआत की है. आरण्यक एक क्राइम थ्रिलर जॉनर की वेब सीरीज है लेकिन कमज़ोर लेखन की वजह से इस सीरीज से रहस्य और रोमांच गायब है जो मनोरंजन को भी नदारद कर गया है. कुलमिलाकर रवीना टंडन के ओटीटी डेब्यू वाली यह सीरीज निराश करती है.
कहानी की बात करें तो सीरीज का नाम आरण्यक है जिसका मतलब जंगल होता है. हिमाचल प्रदेश के जंगलों के बीच बसे शहर सिमोरा से कहानी शुरू होती है. वहां की पुलिस स्टेशन की एसएचओ कस्तूरी (रवीना टंडन)अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से एक साल की छुट्टी ले रही हैं और नए एसएचओ अंगद (परमब्रत) जिम्मेदारी ले रहे हैं.
पुलिस स्टेशन में पावर किसके हाथ में है किसका काम करने का ढंग सही है नए या पुराने एसएचओ के पास. यह चल ही रहा होता है कि कहानी एक हत्या के जांच की ओर मुड़ जाती है. जिसके बाद कयास लगने शुरू हो जाते हैं कि यह काम सुपरनैचुरल किलर नर तेंदुआ का है जो चंद्रग्रहण में अपना शिकार करता है.
सुपरनैचुरल जॉनर में जाने के साथ साथ कहानी में यह भी स्थापित करने की कोशिश होती रहती है कि हत्यारा सुपरनैचुरल नहीं बल्कि इंसान है. इन सब के बीच सब प्लॉट्स में राजनेताओं का अपना खेल है साथ में पुराने और नए एसएचओ की जुगलबंदी और पारिवारिक ड्रामा भी है.
कुलमिलाकर शो को एंगेजिंग और एंटरटेनिंग बनाने के लिए इस कहानी में सबकुछ डाल दिया गया है लेकिन कहानी सिवाय सिरदर्द को और कुछ नहीं बन पायी है. हर किरदार को रेप और हत्या को दोषी समझा जाता है. एक किरदार शक से बरी होता है तो दूसरा उसकी गिरफ्त में आ जाता है. आखिर में जो कातिल सामने आता है. वो सीरीज को और कमज़ोर एवं बोझिल बना गया है.
गौरतलब है कि वेब सीरीज की कहानी रिचा चड्ढा स्टारर कैंडी वेब सीरीज याद दिलाता है. किसने सेंधमारी की यह तो कहना मुश्किल होगा लेकिन कैंडी हर लिहाज से इस सीरीज से उम्दा थी.
आरण्यक के अभिनय पक्ष को देखें तो इस सीरीज का चेहरा कई परिचित और लोकप्रिय चेहरे हैं. रवीना टंडन ने इस सीरीज से अपना ओटीटी डेब्यू किया है. उन्होंने अपने किरदार पर मेहनत भी की होगी लेकिन अधपकी कहानी और कमज़ोर एवं कन्फ्यूजिंग से किरदार में उनकी मेहनत जाया हो गयी है. यह कहना गलत ना होगा. उनका किरदार एसएचओ का है लेकिन उन्हें गले की नस के बारे में पता नहीं है.
चूंकि रवीना का किरदार छोटे शहर की महिला पुलिस ऑफिसर का बताया है तो क्या उससे लेखकों को उसके कमतर दिखाने की सिनेमैटिक लिबर्टी मिल गयी थी. सीरीज देखते हुए यह सवाल कई बार जेहन में आता है. परमब्रत ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है तो युवा कलाकार तेजस्वी देव और तनीषा जोशी भी अच्छे रहे हैं. मेघना मालिक,जाकिर हुसैन और आशुतोष राणा को करने को कुछ खास नहीं था.
दूसरे पहलुओं की बात करें तो सीरीज की खामियों में इसकी भाषा भी है. जिस अंदाज़ से किरदार भाषा को बोल रहे है वह वास्तविकता के करीब कम बनावटी ज़्यादा लगता है. रवीना अंग्रेज़ी शब्दों को दोहराती हैं तो यह बात शिद्दत से महसूस होती है. संवाद अदायगी ही नहीं बल्कि संवाद भी बेहद कमजोर रह गए हैं. सीरीज का एक संवाद है कि सांप से हाथ नहीं मिलाते हैं क्योंकि उसके हाथ नहीं होते हैं. सीरीज का पोस्ट प्रोडक्शन अच्छा है. एडिटिंग पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत महसूस होती है. आखिर में इस आरण्यक से दूरी में ही समझदारी है.