Exclusive: भोजपुरी अभिनेत्री स्मृति सिन्हा बोलीं- छठ के बरतिया के अर्घ्य देने वाले सीन की शूटिंग के वक्त…

भोजपुरी अभिनेत्री स्मृति सिन्हा ने कहा, इस साल मेरी छठ पर आधारित फ़िल्म छठ के बरतिया भी रिलीज हुई हैं,जिसे लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं, जिस वजह से यह छठ मेरे लिये और भी ज़्यादा ख़ास हो गया है. इस फ़िल्म की शूटिंग १२ से १३ दिनों में हुई है.

By कोरी | November 19, 2023 6:34 AM

भोजपुरी फिल्मों की पॉपुलर अभिनेत्री स्मृति सिन्हा की भोजपुरी फिल्म छठ के बरतिया हाल ही में रिलीज हुई है. यह फिल्म महापर्व छठ पूजा पर आधारित है. स्मृति सिन्हा की मानें तो फिल्म को हां कहने की सबसे बड़ी वजह यही थी कि फिल्म छठ पूजा पर आधारित है. वह बताती हैं कि यह पहला मौका था जब मुझे छठ पर आधारित कोई फ़िल्म मिली थी और छठ पूजा एक बिहारी के लिए त्यौहार नहीं बल्कि इमोशन का नाम है. यह बात किसी से छिपी नहीं है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.


यह छठ और खास बन गया है

इस साल मेरी छठ पर आधारित फ़िल्म छठ के बरतिया भी रिलीज हुई हैं,जिसे लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं, जिस वजह से यह छठ मेरे लिये और भी ज़्यादा ख़ास हो गया है. इस फ़िल्म की शूटिंग १२ से १३ दिनों में हुई है. वो दिन मेरे लिये बहुत ख़ास थे क्योंकि छठ पूजा से जुड़ी हर परम्परा को फिर से जीने का मौक़ा मिला. हमने बहुत भक्तिमय तरीके से इस फिल्म की शूटिंग की है।फिल्म में छठ के गाने को गाते हुए इमोशनल भी हो गयी थी. इस फिल्म में अर्घ्य देने वाले सीन की शूटिंग में मैं छह घंटे लगातार पानी में खड़ी थी. मैं चाहती थी कि मैं पूरी तरह से उस सीन के साथ न्याय करू. यूपी में फिल्म की शूटिंग हुई है. घाट वाले सीन में मैं पूरे समय घाट पर ही रहती थी. मैं हर पल को बस संजोना चाहती थी.


मुंबई में छठ मनाऊंगी

अब घर में छठ नहीं होता है ,तो छठ पूजा पर बिहार आना नहीं हो पाता है. मुंबई से ही मैं छठी माई को प्रणाम कर लेती हूं. जिस दिन कद्दू भात बनाया जाता है. उस दिन नियम से कद्दू भात बनाती और खाती हूं. शाम और सुबह के अर्ध्य के वक़्त नियम से सूरज देवता को प्रणाम कर आशीर्वाद लेती हूं. हालांकि गुड के ठकुआ और कचवनिया को बहुत मिस करती हूं.


छठ की खास यादें

छठ से जुड़ी कई ख़ास यादें हैं. जो इस दिन बहुत याद याद आती हैं बचपन में छठ पूजा पर गेहूं को सुखाने की ज़िम्मेदारी हम बच्चों को ही मिलती थी. एक भी चिड़िया दाना ना खाए. एक दो बार ऐसा भी हुआ कि हम खेल में इतने व्यस्त हो गए कि चिड़िया ने खा लिया फिर हमारी जमकर क्लास लगी थी. ठेकुआ बनाने में भी मदद करते थे. पर पर जाना बहुत पसंद था. वहां पर शाम और सुबह के बाद जो आतिशबाजी का नज़ारा होता था. उसकी यादें अभी भी मेरी आंखों में है.

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