भोजपुरी फिल्म ‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ 27 अक्तूबर से बिहार के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी. लेकिन उससे पहले हमने इस फिल्म में नजर आये स्टैंडअप कॉमेडियन रोहित सिंह मटरू से बात की. वे बड़े बेबाक हैं. बिंदास कैफियत के मालिक हैं. रील लाइफ की तरह रियल लाइफ में भी इंटरटेनर हैं. वे कहते हैं उनकी कोशिश लोगों को अपनी अदाकारी से हंसाने की होती है. हमने उनसे भोजपुरी सिनेमा के दूसरे दौर से लेकर ‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ तक के बदलाव पर भी बात की. रोहित सिंह मटरू इन दिनों कई भोजपुरी सिनेमा के अलावा थ्री इडियट फेम शरमन जोशी और एेश्वर्या दीवान के साथ हिंदी फिल्म ‘काशी’ भी कर रहे हैं. इसके निर्देशक धीरज कुमार हैं. तो पेश है रोहित सिंह मटरू हमारी बातचीत के अंश –
‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ में ऐसा क्या है, जो अन्य फिल्मों में नहीं है?
सच कहूं तो ‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ एक पारिवारिक कॉमेडी फिल्म है, जो बीते लंबे वक्त से देखने को नहीं मिली. इसलिए मैं दावा करता हूं कि लोग पूरे परिवार के साथ बैठ कर फिल्म देख सकेंगे. ड्राॅइंग रूम से निकल कर लोगों को सिनेमाघरों की ओर रुख करना चाहिए. अब भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री अपने बेस्ट की ओर बढ़ रही है. जहां कथा और भोजपुरी की आत्मा के करीब फिल्में बननी शुरू हो गयी हैं. यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा की रिकॉर्ड ब्रेकिंग फिल्म है, इसलिए सभी को सिनेमाघरों में जाकर देखना चाहिए.
आपने मनोज तिवारी मृदुल के साथ भी काम किया है और आज भी कर रहे हैं. इतने दिनों में क्या बदलाव महसूस कर रहे हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मनोज जी के समय में भोजपुरी सिनेमा फिर से पटरी पर लौटा, मगर उसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि भोजपुरी सिनेमा के लिए गलत संदेश लोगों तक गया. इसका नुकसान आज तक इंडस्ट्री उठा रही है. उस दौर में निर्माता-निर्देशक फूहड़ता और अश्लीलता परोस कर फिल्में चलाने में यकीन करने लगे थे. मगर जिस तरह से साल 2017 में फिल्में बनी हैं, वो बदलाव का संकेत देती है. रजनीश मिश्रा जैसे डायरेक्टर ने ‘मेहंदी लगा के रखना’ से यह साबित दिया कि परिवार और परिवेश की कहानियां ही लोगों को ज्यादा पसंद आती हैं. वहीं, उस दौर में अभिनेता फिल्म मेकर्स पर हावी होते थे, जो अब बदला है. अब कहानी और निर्देशक के हिसाब से अभिनेता खुद को ढालते हैं, जो बेहतर है भोजपुरी सिनेमा के लिए. साल 2018 में भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री में बेहतरीन फिल्मों का निर्माण होगा.
सुना है आपका करियर में अभिनेता अवधेश मिश्रा का योगदान अच्छा खासा रहा है?
अवधेश मिश्रा के बारे में जो कुछ भी कहूंगा, कम होगा. क्योंकि लोग भले उन्हें स्क्रीन के जरिये खलनायक के रूप में जाने, मगर वे एक बेहतरीन इंसान हैं. उनसे मेरी जान-पहचान 20-25 सालों की है, तब मैं उनका नाटक देखने जाता था. उनकी वजह से ही आज मैं सिनेमा में हूं. जहां तक उनके अभिनय की बात है, तो इस इंडस्ट्री में खलनायकी को एक मुकम्मल आयाम देने वाले वह अकेले इंसान हैं. वे एक्टिंग की यूनिवर्सिटी हैं. उन्होंने ये साबित किया है कि सिर्फ चिल्लाने से कोई विलेन नहीं बनता. उनकी एक और खास बात है कि वे प्रतिभा को पहचानने की परख रखते हैं और उसको आगे बढ़ाने में मदद भी करते हैं. मुझे लगता है वे आज जिस मुकाम पर हैं, वहां वे दस साल पहले होते. लेकिन तब गुस्सा उनका एेब था, जिस पर उन्होंने काबू पा लिया है.
भोजपुरी सिनेमा में फूहड़ता के आरोप के केंद्र में इसके गाने रहे हैं. आपके हिसाब से कितना सही है?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि लंबे समय तक इंडस्ट्री में फूहड़ता रही है. लोगों ने सिर्फ गानों में मांसल प्रस्तुति दी. डबल मीनिंग संवाद लिखे. मगर ‘मेहंदी लगा के रखना’ और ‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ के बाद अब ऐसे मेकर्स को भी आभास हो गया कि गाने भी वही पसंद किये जायेंगे, जो कर्णप्रिय हों. अभद्र गाने कुछ सेंकेंड ही ठहरते हैं. आज तो वे लोग भी दबी जुबान से स्वीकारने लगे हैं कि फिल्म तभी चलेगी, जब उसका कंटेंट मजबूत होगा.
‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ में खेसारीलाल यादव के साथ पहली बार नजर आ रहे हैं?
हां, उनके साथ ये मेरी पहली फिल्म है. आज तक मैंने भोजपुरी के सभी बड़े स्टार के साथ काम किया था. खेसारीलाल के साथ अब कर रहा हूं. वे यारों के यार हैं. सबसे बड़ी बात जो उनको औरों से अलग करती है कि वे काम के प्रति काफी डेडिकेटेड हैं. सुबह चार बजे से उठ कर अपनी दिनचर्या शुरू कर देते हैं. अभी मैंने उनके साथ ‘मैं सेहरा बांध के आउंगा’ के अलावा ‘डमरू’ और ‘दीवानापन’ की है. इस दौरान उनकी प्रतिबद्धता देख कर दंग रह गया. उनमें एक और चीज बेहद खास है, वो है वे निर्देशक के काम में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. खेसारीलाल की इन खूबियों से इंडस्ट्री में आने वाले नये लोगों को भी सीखना चाहिए.