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छठी मइया की कृपा से मैं बन सकी मां : कल्पना पटवारी

आसाम निवासी कल्पना प्रसिद्ध पार्श्व और लोकगायिका हैं. वह भोजपुरी, हिंदी सहित कई भाषाओं में गीत गा चुकी हैं. इस बार में छठ पूजा पर मैं बिहार में ही रहूंगी, तो इस महापर्व के एक-एक पल को जिऊंगी. छठ से मेरा परिचय मुंबई के स्टूडियो में संगीत के माध्यम से हुआ. यह रिश्ता 16 वर्षों […]

आसाम निवासी कल्पना प्रसिद्ध पार्श्व और लोकगायिका हैं. वह भोजपुरी, हिंदी सहित कई भाषाओं में गीत गा चुकी हैं. इस बार में छठ पूजा पर मैं बिहार में ही रहूंगी, तो इस महापर्व के एक-एक पल को जिऊंगी. छठ से मेरा परिचय मुंबई के स्टूडियो में संगीत के माध्यम से हुआ. यह रिश्ता 16 वर्षों पुराना है. इस दौरान नाक पर से सिंदूर लगाने और छठ से जुड़े दूसरे रीति-रिवाज को जानने का मौका मिला. सूर्य पूजा करने की विश्व परंपरा रही है.
भारत में बिहार का छठ पूजा इसका परिचायक है. पिछले साल मुझे मालूम हुआ कि बिहार में मुस्लिम औरतें भी छठ पूजा करती है. यह बात सुन कर मैं बेहद इमोशनल हो गयी थी. मुझे यह जानने की उत्सुकता हुई कि आखिर इसकी वजह क्या है. पिछले कुछ समय से पूरे देश में जहां धर्म और मजहब जैसे मुद्दों को लेकर हंगामा हो रहा है, वहीं पूर्वांचल की धरती पर छठ के मामले में हिंदू-मुस्लिम एक है.
इसकी एक मूल वजह है- मातृत्व सुख प्राप्त करने की इच्छा. छठ मइया गोद भरती है, इसलिए हिंदू-मुस्लिम सभी महिलाएं इससे जुड़ती हैं, क्योंकि मातृत्व का कोई जात-धर्म नहीं होता. मैं अपने निजी अनुभव की बात करूं, तो मुझे जब प्रेग्नेंसी में दिक्कत हो रही थी, तो बिहार की कई औरतों ने मेरे लिए छठ व्रत रखा था. इसके अगले साल ही दो जुड़वां बच्चे हुए.
छठ मइया ने मुझे जो खुशी दी है, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती. मैं छठ पर्व का सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि ग्लोबली प्रचार-प्रसार करूं और ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इस पर्व के लोकगीत से जोड़ सकूं.
– उर्मिला कोरी, मुंबई

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