bhojpuri:नेशनल अवार्ड विनिंग निर्देशक नितिन चंद्रा की फिल्म करियट्ठी आगामी 31 जनवरी को भारत सरकार के ओटीटी प्लेटफार्म वेव पर स्ट्रीम करने जा रही है. इस फिल्म से अभिनेत्री अन्नूप्रिया अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने जा रही है. खास बात है कि अनुप्रिया ने अभिनय की बारीकी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से सीखी है. भोजपुरी फिल्म से उनकी शुरुआत और अब तक के सफर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
इस तरह समस्तीपुर से एनएसडी पहुंची
मैं बिहार के समस्तीपुर माधुरी चौक रोड़ नंबर दस की रहने वाली हूं. मेरे पिता रेलवे के टेलीकॉम डिपार्टमेंट में हैं.रेलवे कॉलोनी में ही मेरा जन्म और परवरिश हुई है.मेरी ग्रेजुएशन तक की पढाई समस्तीपुर में ही हुई है.आर्ट की शुरुआत सिंगिंग से हुई है.मेरे पूरे खानदान में दूर -दूर तक आर्ट में कोई नहीं था. मेरे माता पिता साईं बाबा के भक्त रहे हैं, तो होश संभालते हुए मैंने घर में भजन और कीर्तन का माहौल देखा, तो मैं भी बचपन में ही सिंगिंग से जुड़ गयी. अच्छा गाती थी,तो एक शिक्षक के कहने पर घर वाले ने संगीत की क्लासिकल ट्रेनिंग करवा दी और मैं भी म्यूजिक को बहुत एन्जॉय करती थी. उसके बाद मैं समस्तीपुर में स्टेज में परफॉर्म करने लगी थी. उस दौरान दर्शकों से इंट्रैक्ट करना मैंने सीखा. भोजपुरी सिंगिंग रियलिटी शो सुर संग्राम का भी हिस्सा रही हूं. उसके बाद मैं समस्तीपुर से पटना एम ए करने के लिए चली गयी.वहां पर एक सर का फेयरवेल था. फेयरवेल के लिए मैंने एक घंटे का प्रोग्राम बनाया था.जिसमें गाना, नाचना और एक्टिंग सबकुछ शामिल था. जिसे सभी ने बहुत पसंद किया था.वहां मेरी प्रोफेसर अनुराधा सिंह जी ने मुझे कहा कि तुम्हे नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा जाना चाहिए. यहां पर जो तुमने सबकुछ मिलाकर किया.उसे थिएटर कहते हैं और एनएसडी से बड़ा उसके लिए कोई प्लेटफार्म नहीं है, लेकिन एएसडी ऐसे नहीं जा पाओगे. उसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी. मैं भी यही तो चाहती थी लेकिन प्लेटफार्म का मुझे पता नहीं था. जिसके बाद मैंने एनएसडी की तैयारी शुरू कर दी. मैंने पटना के प्रेमचंद्र अक्षालय और कालिदास रंगालय में दो साल जमकर थिएटर किया.2016 से 2018 तक किया.उसके बाद मेरी पहली ही कोशिश में एनएसडी हो गया. पूरे देश से उस वक़्त 26 स्टूडेंट्स का ही चयन होता था. अब तो 32 स्टूडेंट्स हो गए हैं और एनएसडी अब इंटरनेशनल भी हो गया है. हमारे वक़्त में पूरे देश से 26 बच्चों का चयन होता है. एनएसडी का अनुभव मैजिकल था. मेरा पूरा व्यक्तित्व और सोच बदल गयी. हमारा बैच 2018 से 2021 तक था, लेकिन लॉक डाउन की वजह से 2023 के जून में हमारा कोर्स खत्म हुआ.
और करियट्ठी का ऑफर आया
एनएसडी से पास होने के बाद मैं चिल्ड्रन थिएटर कर रही थी. मुंबई जाने से पहले पैसे भी चाहिए थे.अगस्त में सोशल मीडिया के जरिये मुझे यह फिल्म ऑफर हुई. भोजपुरी फिल्म को लेकर जो भी सुना है.अश्लील ही सुना था, तो थोड़ा अटपटा लगा था, लेकिन जब मुझे मालूम पड़ा कि नितिन और नीतू मैम की यह फिल्म होगी. जिन्होंने भोजपुरी को पहला नेशनल अवार्ड दिलाया है, तो मैंने तुरंत फिल्म को हां कह दिया और जब फिल्म की स्क्रिप्ट जब पढ़ी तो मुझे लगा कि ये तो मेरी ही बायोपिक है. फिल्म जब आप देखेंगी तो आपको समझ आएगा कि मैं ऐसा क्यों बोल रही हूं. फिल्म में शादी के पार्ट को छोड़ दें तो पूरी मेरी ही कहानी है.काली माई, कोयला, झांवा, करियट्ठी इन शब्दों का लोग मेरे लिए भी जमकर इस्तेमाल करते थे. मेरे चचेरे भाई बहन काला मिठ्ठा कहकर बुलाते थे. यह शब्द मेरे कान में अभी भी गूंजता है.शुरुआत में मैं पारिवारिक समारोह में इस वजह से जाने से बचती थी कि सभी केवल मेरे रंग का मजाक बनाएंगे.मैंने कभी किसी को जवाब मुंह से नहीं दिया. बस भगवान से यही प्रार्थना की कि भगवान मुझे इतनी तरक्की देना कि उससे सबको जवाब मिले.हालांकि उस दौरान यानी समस्तीपुर में मेरे मम्मी ,पापा और भाई बहन मेरे सपोर्ट सिस्टम थे. पटना में मुझे रंगभेद को लेकर बहुत कम ताने सुनने मिले थे. अच्छे अनुभव ज्यादा रहे हैं तो मैं उसे बुरा नहीं कहूंगी. एनएसडी ने तो मुझे मेरे रंग से प्यार करवा दिया कि हॉलीवुड में भी इस रंग की मांग है.
करियट्ठी के लिए भोजपुरी भाषा सीखी
जैसा की सभी को पता है कि समस्तीपुर यानी हमारे यहां मैथिलि बोली जाती है और ये फिल्म भोजपुरी भाषा में है, तो मुझे वो सीखना पड़ा. मुझे जब यह फिल्म मिली तो नितिन ने कहा कि आपको एकदम सही टोन के साथ बिहारी बोलनी है. उसमे किसी भी तरह की गलती नहीं चलेगी.मैं उस वक्त दिल्ली में ही थी. पता किया कि कोई वहां से है क्या ?मालूम पड़ा कि एनएसडी में फर्स्ट ईयर में छपरा से पंकज नाम के एक लड़के का सिलेक्शन हुआ है.आमतौर पर लोग कहते हैं कि चार कोस में भाषा, टोन और पानी बदल जाती है. मैं लकी थी कि मुझे सीखाने के लिए छपरा का ही बंदा मिला. एक महीने मेरी ट्रेनिंग हुई.ऑनलाइन ज़ूम पर रात के तीन बजे तक हमारी क्लासेज होती थी क्योंकि सब काम खत्म करके वहीँ टाइम मिलता था. पंकज मुझे टास्क भी देता था कि आपको अगले दिन ये डायलॉग इस टोन के साथ बोलना है. मेरी मेहनत रंग लायी.
इस साल दो तीन प्रोजेक्ट्स में दिखूंगी
मैं बॉलीवुड, हॉलीवुड सभी में काम करना चाहूंगी और अपनी भाषा के सीरियस सिनेमा से भी समय समय पर जुड़ना चाहूंगी. फूहड़ता से दूर रहूंगी.पैसों के लिए कुछ भी नहीं करुँगी .अभी मैंने एक पंजाबी फिल्म नीरू बाजवा के साथ एक फिल्म की है. जो 9 मई को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. नेटफ्लिक्स के लिए भी एक सीरीज है. मराठी के लिए भी एक काम है. धीरे -धीरे चीजें मिलती जा रही हैं. इनके साथ मैं थिएटर भी कर रही हूं. मेरा काम दो तीन बाहर आ जाए. उसके बाद मैं दिल्ली से मुंबई शिफ्ट होउंगी.
माता पिता ने लीग से हटकर चलने की परवरिश और हिम्मत दी है
मैं हमेशा से अलग रही हूं. मैंने शुरुआत से ही अलग फैसले किये हैं. उसके लिए मेरे माता पिता को श्रेय जाता है. जिन्होंने हम पर कोई बंदिश नहीं लगायी. मेरे ज्यादातर लड़के दोस्त रहे हैं. घर पर हम बहुत सारा जैमिंग सेशन करते थे. जो समाज को बहुत खटकता था. मैं स्कूटी चलाती थी. बाल छोटे रखती थी. मैं लोगों को स्कूटी में लिफ्ट देती थी, इनसे भी कई लोगों को बहुत दिक्कत होती थी, लेकिन मेरे माता पिता को हमेशा अपने परवरिश पर भरोसा रहा है.उन्होंने हम बच्चों को लीग से चलने की हिम्मत दी है.हम तीन बहनें और एक भाई हैं. मैं सबसे बड़ी बहन हूं. मेरी छोटी बहन बिहार वुमन टीम की योगा टीचर है. भाई अमित सत्यम क्रिकेटर हैं.बिहार अंडर 23 के लिए वह खेलता है.अलग करने की इस लीग में एक्टिंग को चुनना और एनएसडी करना ही नहीं था बल्कि एनएसडी के लिए फेलोशिप भी मैंने अलग की थी.एनएसडी के तरफ से फ़ेलोशिप दी जाती है.जो 26 से 8 लोगों को ही मिलती है. एग्जाम इसके लिए भी होता है.मैंने टॉपिक लिया था,जो बच्चे छोटी उम्र में क्राइम करते हैं और बाल सुधार गृह भेज दिए जाते हैं. उनको थिएटर किस तरह से डेवेलपमेंट में मदद कर सकता है. मुझे स्कालरशिप मिली तो लोगों ने कहा कि वह जगह रिस्की होगी क्योंकि वहां सभी लड़के ही होंगे लेकिन मैंने कहा मैं मैनेज कर लुंगी और मैंने पिछले साल ही स्कालरशिप खत्म किया.
छोटे शहर की लड़कियों से अपील
मैं छोटे शहर से हूं. मैं इस बात को अच्छी तरह से समझती हूं कि हमारे लिए सपना देखना और उसे पूरा करने के लिए वहां से निकलना भर ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मैं यही सबसे कहूंगी कि लीग से हटकर सपने देखने में डरो नहीं, जो तुम्हे कमतर बता रहे हैं.उनसे भिड़ने में वक़्त मत बर्बाद करो. अपने सपनों के पीछे भागो और विपरीत परिस्थितयों से लड़ो. कामयाबी मिलने के बाद जो लोग तुम्हें नीचा दिखा रहे हैं.वही तारीफें करते हुए थकेंगे नहीं.