bhojpuri film maddhim: भोजपुरी की पहली साइंस फिक्शन फिल्म ‘मद्धिम’इनदिनों सुर्खियों में बनी हुई है. इस फिल्म के निर्देशक विमल चंद्र पांडेय और लेखक वैभव मणि त्रिपाठी हैं. निर्देशक विमल चंद्र इससे पहले दो हिंदी फिल्में बना चुके हैं. उनकी मानें, तो वह अपनी भाषा में कुछ अलग और खास करना चाहते हैं, क्योंकि आम धारणा है कि भोजपुरी सिनेमा में ‘अश्लीलता का दूसरा नाम मनोरंजन’ है. इसलिए विमल और उनकी टीम चालू किस्म का सिनेमा भोजपुरी दर्शकों को नहीं देना चाहते थे. उनकी यही सोच फिल्म ‘मद्धिम’का आधार बनी. इस फिल्म की मेकिंग और उससे जुड़े पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
भोजपुरी में साइंस फिक्शन बनाने का लेखक वैभव मणि त्रिपाठी का था आइडिया
इस फिल्म के लेखक वैभव मणि त्रिपाठी हैं. भोजपुरी में साइंस फिक्शन फिल्म बननी चाहिए, यह उनकी ही सोच थी. दरअसल, वैभव साइंस के स्टूडेंट रहे हैं. उन्हें लगा कि भोजपुरी की जो इमेज बनी है, वह बदलनी चाहिए. वैभव ने मद्धिम फिल्म के लिए साल भर से अधिक समय तक कहानी का चुनाव किया. निर्देशक विमल पांडेय बताते हैं कि मैंने और वैभव ने 25 से अधिक कहानियां पढ़ी थी, लेकिन कोई कहानी ऐसी नहीं थी, जो लगे कि हां भोजपुरी की पहली साइंस फिक्शन कहानी का आधार बन सकती है. इसी खोज के दौरान हमने एक 60 के दशक की एक कहानी पढ़ी. ओरिजनल आइडिया वहीं से मिला, जिस पर हमलोगों ने कहानी डेवलप की. हम लोगों ने इस कहानी के छह ड्राफ्ट लिखे थे, छठवें ड्राफ्ट में आते-आते कहानी फाइनल हुई थी.
मर्डर मिस्ट्री वाली है फिल्म की कहानी, ट्रायलॉजी बनाने की तैयारी
इस फिल्म की कहानी की बात करें, तो फिल्म की शुरुआत साल 1998 से होती है. एक प्रसिद्ध साइंटिस्ट की मौत सड़क दुर्घटना में हो जाती है. उसने एक खोज की है, लेकिन लोगों तक ये आ पाता उससे पहले उसकी मौत हो जाती है. कहानी आज के दौर में आ जाती है. एक राइटर का मर्डर हुआ है. पुलिस इंस्पेक्टर इस हत्या की गुत्थी सुलझाते हुए किस तरह से उस इन्वेंशन से जुड़ते हैं और अतीत और वर्तमान के राज खुलते हैं, यही कहानी है. इस फिल्म की लंबाई 90 मिनट की है. निर्देशक विमल चंद्र पांडेय बताते हैं कि हम ट्रायलॉजी बनाना चाहते हैं. यही वजह है कि हमने फिल्म का लेंथ 50 मिनट रखा है. कहानी अलग-अलग रहेगी, पर इन तीनों फिल्मों का आधार साइंस फिक्शन रहेगा. दूसरी फिल्म की भी तैयारी शुरू हो गयी है. फिलहाल कहानी पर काम किया जा रहा है.
फिल्म में नहीं चाहिए थे भोजपुरी सिनेमा के पॉपुलर एक्टर
निर्देशक विमल चंद्र बताते हैं कि कास्टिंग के वक्त हमारे मन में यह बात एकदम क्लियर थी कि ऐसे आर्टिस्ट ढूंढे जाये, जो बहुत अच्छे हों, भोजपुरी बेल्ट से हों और बहुत अच्छी भोजपुरी बोलते हों, लेकिन हिंदी में काम कर रहे हों, क्योंकि भोजपुरी में जो लोग काम कर रहे थे, उनकी इमेज के साथ अपनी इस फिल्म को हम नहीं शुरू करना चाहते थे. ऐसे में कास्टिंग के लिए लोगों को कन्वेंस करने में बहुत दिक्कत हुई. स्क्रिप्ट सुनाने तक में हमको बहुत जूझना पड़ा था, जो आप सोच रहे हैं, वैसी भोजपुरी फिल्म नहीं है. हम कुछ अच्छा वाला कर रहे हैं. समय गया फिर धीरे-धीरे लोग जुड़े. परितोष त्रिपाठी, जो टीवी रियलिटी शो का पॉपुलर चेहरा हैं. अभिनेत्री अरुणा गिरी अच्छी भोजपुरी फिल्मों का हिस्सा रही हैं. कृष्ण गोपाल ने अमेजन प्राइम की कुछ मिनी सीरीज की है. ओम दुबे हैं, जिन्होंने दूरदर्शन पर कुछ अच्छे शोज किये हैं. राजेश तिवारी निर्देशक नीरज पांडे की फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. दूरदर्शन पर गोरा सीरियल किया है. अंशुमान हैं , जो भोजपुरी भाषी होने के बावजूद भोजपुरी फिल्मों से दूर थे. अंशुमान को कन्वेंस कर हम लोग ले आये और इस फिल्म को करने के बाद वह और भी भोजपुरी फिल्मों का हिस्सा बनने वाले हैं.
फिलहाल लागत वसूल नहीं कर पायेंगे
मद्धिम फिल्म इनदिनों मूवी संत ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम कर रही है. यह एक नॉन एक्सक्लूसिव रिलीज है, जिसमें दर्शक पैसे देकर इस फिल्म को देख रहे हैं. इन पैसों में कुछ परसेंटेज निर्माता को दिये जाते हैं और कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म को.आमतौर पर एक्सक्लूसिव डील में ही लागत निकालने की पूरी संभावना होती है, क्योंकि ओटीटी निर्माता को पूरे पैसे दे देता है. उसके बाद ही फिल्म ओटीटी पर आती है और फिर फिल्म उसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रहती है. इस फिल्म की टीम की मानें, तो अभी लागत वसूल नहीं हुई है. फिलहाल कई दूसरे ओटीटी चैनलों से भी बात चल रही है. निर्देशक विमल बताते हैं कि भारत के बाहर के देशों से भी हमें अच्छा खासा रिस्पांस मिल रहा है. कनाडा, फिलाडेल्फिया, रोमानिया से हमें लगातार अच्छा फीडबैक मिल रहा है.
कम बजट के चलते मुंबई के मडआइलैंड को गोरखपुर बनाना पड़ा
निर्देशक विमल चंद्र बताते हैं कि जब तक भोजपुरी फिल्मों का चेहरा नहीं बदलता है, तब तक चीजें आसान नहीं होंगी. यही वजह है कि हमें बहुत कम बजट अपनी इस फिल्म के लिए मिला हुआ. ये कह सकते हैं कि बहुत कम बजट में हमें बनाना पड़ा. हमने वर्कशॉप बहुत की थी. 10-12 दिन सिर्फ हमारा वर्कशॉप ही चला था, ताकि सेट पर हमारा समय बर्बाद ना हो और हम क्वालिटी वाला काम भी दे सके. शूटिंग 12 दिनों में पूरी हुई है. फिल्म की शूटिंग मुंबई में हुई है. हम गोरखपुर चाहते थे. हमारी कहानी भी गोरखपुर की ही है, लेकिन मुंबई से सभी कलाकारों को लेकर जाना-आना और रहने का इंतजाम करना, इन सबसे हमारी फिल्म का बजट बढ़ रहा था. तब तय हुआ कि मुंबई में ही शूट होगा. मुंबई के मडआइलैंड को गोरखपुर बनाना पड़ा और ज्यादातर शूटिंग उसमें भी इनडोर ही हुई है. यह एक साइंस फिक्शन फिल्म है. इसमें वीएफएक्स का बजट अच्छा खासा था. इसमें एक शीशा है, जिसमें कुछ समय के बाद चेहरे दिखायी पड़ते हैं. इसके लिए हमें स्क्रिप्ट के लेवल से ही वीएफएक्स को जोड़ना था, क्योंकि उसके हिसाब से ही हमें सीन को डिजाइन करना था. कम बजट में भी मैंने इस पहलू के साथ न्याय करने की कोशिश की है.
फिल्म को केवी प्रोडक्शन का मिला साथ
निर्देशक विमल कुमार शिकायती लहजे में कहते हैं कि पुष्पा-2 के ट्रेलर लॉन्च में इतनी भयानक भीड़ जुटी थी, लेकिन जब कोई फिल्म भोजपुरी में कुछ अलग करना चाहता है, तो फिर वहां के फाइनेंसर, डिस्ट्रीब्यूटर से लेकर निर्माता तक कोई उसको प्रमोट नहीं करता है. उनका कहना होता है कि दर्शक कुछ अलग नहीं देखेगा. हमारी फिल्म के साथ भी वही हुआ. हमने बहुत लोगों को फिल्म को प्रोड्यूस करने के लिए संपर्क किया, लेकिन आधे लोगों का कहना था कि भोजपुरी में कौन साइंस फिक्शन देखेगा. कोई अश्लीलता का फॉर्मेट तोड़ना ही नहीं चाहता है. हालांकि, केवी प्रोडक्शन ने हमारी सोच को समझते हुए फिल्म को सपोर्ट किया. केवी प्रोडक्शन की निर्माती रांची से हैं और हम सभी की तरह वह भी अपनी माटी और अपनी भाषा के सिनेमा में कुछ अच्छा देखना चाहती थीं.
पंकज त्रिपाठी को काफी पसंद आयी है फिल्म
फिल्म के निर्देशक बताते हैं कि हमारी कोशिश बिहार, यूपी और झारखंड के कॉलेज में यह फिल्म दिखाने की है. साथ ही भोजपुरी भाषी एक्टर्स को भी हम यह फिल्म दिखाना चाहते हैं. पंकज त्रिपाठी जी को हाल ही में यह फिल्म दिखायी गयी थी. उन्हें फिल्म पसंद आयी है. मनोज बाजपेयी से भी संपर्क किया गया है कि वह फिल्म देखें और अपना फीडबैक दें और लोगों से भी बातचीत चल रही है.