मैं इस बार छठ का व्रत रखने जा रही हूं, इतना बड़ा पर्व शादी का मोहताज नहीं – अक्षरा सिंह
भोजपुरी सुपरस्टार अक्षरा सिंह इस साल से छठ व्रत की शुरुआत करने जा रही हैं . वह बताती हैं कि इस साल की शुरुआत में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वह इस व्रत को रखेंगी .
भोजपुरी सुपरस्टार अक्षरा सिंह इस साल से छठ व्रत की शुरुआत करने जा रही हैं . वह बताती हैं कि इस साल की शुरुआत में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वह इस व्रत को रखेंगी . वह यह भी कहती हैं कि जो लोग सोचते हैं कि कुंवारी लड़कियाँ यह उपवास नहीं कर सकती हैं.वो ये भूल जाते हैं कि पूजा भाव और भक्ति से होती है , बंधन से नहीं इसलिए वह इस उपवास को रखेंगी. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
मां की सीख याद रह गयी
छठ का नाम सबसे पहले लेते हुए मुझे मेरी मम्मी की मार याद आती है. 5 साल की थी उस वक़्त छठ का मतलब पता नहीं था.उस वक़्त शारदा सिन्हा जी का एक गाना था जिसमें एक लाइन थी चुगला करे चुग़ली बिलइया करे म्याऊ.पांच साल की थी उतनी समझ नहीं तो वो लाइन को सुनकर मैं दूसरे बच्चों के साथ मज़ाक बनाकर हंस रही थी। मैं एक एक लाइन गा रही थी और हंस रही थी . ये मां ने सुन लिया.मम्मी पीछे से बेलना लेकर आयी और मारने लगी कि फिर हँसोगी या नकल उतारोगी इस लाइन की.मैं बताना चाहूँगी कि मेरे पूरे शरीर में निशान आ गया था .इतनी मार पड़ी थी . दम भर मारने के बाद उन्होंने फिर मुझे उस वक़्त गाने और लाइन का महत्व क्या है ये बताया .छोटी थी तो मतलब समझा नहीं था उतना लेकिन मार की वजह से याद रह गया कि हंसना नहीं है. मतलब ये है कि भूल से भी भूल नहीं होना चाहिए.इतना बड़ा पर्व है ये हम बिहारियों का और उससे जुड़ा इमोशन उससे बड़ा है .मां की ये सीख याद रह गयी.
छठ का व्रत रखूँगी
छठ के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है .उसी इमोशन ,उसी भाव की वजह से मैं इस बार छठ पूजा का व्रत रखने जा रही हूं. अक्सर कहा जाता है कि कुंवारी लड़कियों का व्रत नहीं करती है, लेकिन मैं इस बार इस व्रत को उठाने जा रही हूं. पटना के घाट पर इस बार मैं भी आपको छठ करती हुई दिखूँगी. जो लोग यह सोचते हैं की कुंवारी लड़कियां यह पर्व नहीं कर सकती हैं. उन लोगों को मैं यही कहना चाहूंगी कि कोई भी पूजा बंधन से नहीं होती है. पूजा भाव और श्रद्धा से होती है. छठ से मेरा जुड़ाव बचपन से रहा है . इस साल के शुरू होते ही मेरा मन हो रहा था कि मुझे छठ करना है. मेरे मन में यह विचार बार-बार आ रहा था. मुझे नहीं पता कि व्रत रखने का यह भाव मेरे अंदर कहां से आया . हो सकता है कि छठी मैया खुद चाह रही हो. शायद वह खुद चाहती होगी कि मैं इस धारणा को तोडूं कि सिर्फ शादीशुदा औरतें या पूजा कर सकती है.सास देगी तो बहू उठाएगी या मां देगी तो बेटी. क्या इतना बड़ा पर्व शादी का मोहताज है. अगर मेरी श्रद्धा सूर्य भगवान में है ,तो क्या जरूरी है की शादी होगी तो ही मैं उनकी पूजा अर्चना कर पाऊंगी. वैसे अपने माध्यम से मैं यूथ को और ज्यादा इस पर्व से जोड़ना चाहूंगी.
शारदा जी ठीक हो जायें
बचपन से ही शारदा जी के गीत को सुनकर हम लोग बड़े हुए हैं. अभी बेहद तकलीफ की बात यह है कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है. इस साल अपने छत के व्रत में मैं यह दुआ भी मांगूंगी वह जल्दी से ठीक हो जाए. छठ से पहला जुड़ाव उनके गीतों की वजह से हुआ था. आज भी जब भी वो गीत आता है.वो गाना कांच ही बांस के बंहगिया मुझे लगता है कि छठ व्रत रखने वाले और छठ की महत्ता को जो भी जानते हैं. इस गीत को सुनने के बाद उनके रोंगटे जरूर खड़े हो जाते हैं. मेरा यह सबसे पसंदीदा गीत है .
जो कुछ भी हूं सूरज भगवान का आशीर्वाद है
मुझे लगता है कि मैं आज जो कुछ भी हूं वह सूरज भगवान की कृपा है. मेरी मां छठ पूजा नहीं करती हैं ,लेकिन मेरी मां रविवार का उपवास रखती हैं. जिसके बारे में कहा जाता है कि वह छठ का ही एक दूसरा रूप है क्योंकि वह भी सूर्य भगवान के लिए ही किया जाता है.अपने बच्चों के लिए किया जाता है. मेरी मां सालों से रविवार को उपवास करती आ रही हैं. उनके उपवास की शक्ति है कि मैं आज यहां तक पहुंची हूं .जिसका कोई इंडस्ट्री में दूर-दूर तक सहारा नहीं है.इसके बावजूद मैंने अपना एक मुकाम बनाया है तो वह सूर्य भगवान की ही देन है.
ठेकुआ बनाना है पसंद
छठ से जुड़े कामों में मैंने सबसे ज्यादा जिस काम को किया है. वह है ठेकुआ बनाना. वह मेरा सबसे पसंदीदा काम रहा है .मेरी बुआ और दीदी के यहां छठ पूजा होता है तो उनके घर जाकर मैं ठेकुआ बनाती थी. मैं अपने बचपन में अगल-बगल के घरों में भी जाकर ठेकुआ बनाती थी. नहाय खाय में भी मदद करती थी.वैसे मुझे खाना बनाने का शौक है, तो ये सब काम मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.
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