Bihar और झारखंड जैसे छोटे शहरों से हर दिन बड़ी तादाद में ट्रेन में भरकर लोग मुंबई की राह पकड़ते हैं, ताकि वह अपने एक्टर बनने के सपने को पूरा कर सकें. एक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए ऐसा ही कुछ बिहार के गया के रहने वाले अमित भरद्वाज ने 17 साल पहले किया था.इनदिनों वह भीमा सीरियल में मेवा की भूमिका को निभा रहे हैं. अमित मानते हैं कि उन्हें अभी अपनी पहचान बनाने के लिए लंबा सफर तय करना है, लेकिन उन्हें यकीन है कि वह सही रास्ते पर है और देर सवेर उन्हें मंजिल मिल जाएगी. बिहार से मुंबई तक की जर्नी और संघर्ष पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
ऑडिशन के जरिए भीमा शो से जुड़ा
मेरे एक दोस्त से मुझे मालूम पड़ा की एक नॉर्थ इंडिया बेस्ड एक शो आ रहा है. कास्टिंग के बारे में पता किया तो मालूम पड़ा कि रंजन और लोकेश इसमें है. उनको अपनी प्रोफाइल भेजी. इसके बाद उन्होंने मुझे मेरा ऑडिशन मांगा. ऑडिशन के जरिए फिर मुझे चुन लिया गया. सीरियल की कहानी यूपी बेस्ड है और मैं बिहार से हूं तो मुझे भाषा पर ज्यादा काम नहीं करना पड़ा. कहानी का सेटअप गवई है और मैं खुद भी गांव से आता हूं तो इसमें भी आसानी हुई.शो मूल रूप से एक बच्ची की कहानी है, जिसे तेजस्विनी रही है. वह बहुत ही टैलेंटेड बच्ची है.
थिएटर से जुड़ने के लिए दसवीं में फर्स्ट क्लास से पास हुआ
अभिनय से जुड़ाव के बारे में बात करूं तो मैं बचपन से ही एक अलग सपनों की दुनिया में रहता था. यही वजह है कि जब मैं सातवीं क्लास में गया, तो मुझे लगा कि मैं एक्टिंग कर सकता हूं.( हंसते हुए )दरअसल मैं बचपन में झूठ बहुत ही अच्छे से बोलता था.वो एक्टिंग ही होती थी, तो उससे मुझे लगा कि मैं एक्टिंग कर सकता हूं. अब एक्टर बनना था तो मुझे पता था कि मुझे अपनी एक्टिंग को मांजना पड़ेगा.न्यूज पेपर में कई एक्टर्स का इंटरव्यू पढ़ने के बाद मालूम पड़ा कि थिएटर करना सही फैसला होगा. गिरिडीह में थिएटर नहीं था. थिएटर के लिए पटना आना था. जानता था कि घर वालों को ऐसे बोलेगा तो वह नहीं मानेंगे इसके लिए मुझे दसवीं में फर्स्ट आना होगा ताकि मैं पढ़ाई का बहाना करके पटना जा सकूं. मैं दसवीं में फर्स्ट आ भी गया. उससे पहले मैं कभी भी पढ़ाई फर्स्ट नहीं आया था. वह अभिनय के लिए मेरा जूनून ही था.उसके बाद मैं पटना पहुंच गया और थिएटर से जुड़ गया. 2004 से 2007 तक मैंने लगातार थिएटर किया.यहां आने के बाद भी मैं थिएटर करने के लिए साल में एक बार पटना चला ही जाता हूं.
एक्टिंग का सुनकर घरवालों नें पटना से पैकअप करवा दिया
थिएटर से जुड़ने वाली बात को मैंने बहुत समय बाद अपनी फैमिली को बताया था.वैसे मेरे घर वालों को एक बार मेरे थिएटर में एक्टिंग का पता चल गया था तो मेरा पटना से पैकअप हो गया था.मुझे फिर गया मेरे घर पर बुला लिया गया था. उसके बाद फिर मैंने एक महीने बाद अपनी मम्मी को कहा कि गलती हो गई.मैं पढ़ाई पर ध्यान दूंगा.मुझे पटना जाने दो.मैं इंजीनियरिंग का फॉर्म वहां जाकर भरूंगा और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दूंगा .पटना में पहुंचा और फिर कुछ महीनो के अंतराल के बाद मैं फिर से थिएटर से जुड़ गया.
मुंबई की वह ट्रेन मेरे लिए ही लेट हुई थी
एक बार अपने दोस्तों के साथ अपनी कजिन के गृह प्रवेश के लिए मुंबई आया था. यह वापस पटना आकर पढ़ाई करने के दौरान की बात हैं.हम चार लोग आए थे.उसमें से एक लड़का यहीं पर रुक गया था. हम तीन वापस फिर से पटना चले गए थे,लेकिन पटना में हमारा मन नहीं लग रहा था. महीना नहीं बीता था कि मेरे दोस्तों ने कहा कि हम वहीं जाएंगे. मेरा मन तो था, लेकिन घर वालों का डर भी लग रहा था. छठ के बाद मेरे दोस्तों का मुंबई जाने का प्लान बन गया. मैं घरवालों के डर से नहीं जा रहा था, लेकिन दोस्तों को छोड़ने स्टेशन पर गया. इत्तेफाक से ट्रेन 5 घंटे लेट थी.मुझे लगता है कि वह मेरे लिए ही लेट हुई थी क्योंकि प्लेटफार्म पर इंतजार करते हुए.मेरा भी मन बन गया. वापस रूम पर गया और सामान बांधकर मैं भी ट्रेन में चढ़ गया. ट्रेन बहुत लेट थी इसलिए बहुत सारे पैसेंजर ने अपने टिकट कैंसिल कर दी थी. जिस वजह से ट्रेन में टीटी के साथ थोड़ी बहुत सेटिंग के बाद मुझे भी स्लीपर में सीट मिल गई. 2007 की दिसंबर में मैं मुंबई पहुंचा और फिर यहां से मेरा सफर शुरू हुआ.
कॉफी शॉप में काम किया
शुरुआत में जब मैं मुंबई आया घर वालों से बात हुई थी,तो उनसे कहा कि जो पटना में पैसे आप पढ़ने के लिए भिजवाते थे. कुछ महीनो के लिए यहां पर भी वह भिजवा दिया करें, तो घर वाले मेरे 3000 रुपए महीने भेजते थे,लेकिन फिर मुझे खुद से लगने लगा कि मैं घर वालों की मर्जी के खिलाफ आया हूं,तो मुझे खुद ही अपना खर्च उठाना चाहिए. मैंने कॉस्टा कॉफ़ी शॉप में नौकरी कस्टमर रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी की. 6 महीने तक तकरीबन किया होगा.मैं नाइट शिफ्ट में यह काम करता था,लेकिन सच कहूं तो हेक्टिक काम होता था फिर सुबह ऑडिशन के लिए नहीं जा पता था. मेरे बड़े भाई को जब यह बात मालूम पड़ी. उसने सहस्त्र सीमा बल ज्वाइन किया था. उसने फिर मेरी आर्थिक तौर पर बहुत मदद की. बिहार से जो हम चार दोस्त आए थे हम चारों ही मुंबई के मीरा रोड में रहते थे. वहीं से ट्रेन और बस के जरिये संघर्ष करते थे. फिर मैं दो-तीन सालों बाद चार बंगला में शिफ्ट हुआ और अभी मैं वर्सोवा हुआ में अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहता हूं. हम चारों दोस्त में से मैं और सिर्फ एक मेरा और दोस्त है,जो इंडस्ट्री में सक्रिय है.
15 दिन असिस्टेंट डायरेक्टर का काम करता और 15 दिन एक्टिंग में ऑडिशन देता था
एक्टर के तौर पर मुझे पहला काम बहुत जल्दी मिल गया था, लेकिन वह एक कैमियो रोल था. अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो में अनुपम श्याम के साथ मेरा किरदार था हालांकि एक बड़े रोल के लिए मेरा ऑडिशन लिया गया था,लेकिन अचानक से फिर मुझे छोटा रोल दे दिया गया. उसके बाद कुछ ज्यादा काम नहीं मिल रहा था,तो मैं असिस्टेंट के तौर पर सीरियल में काम करना शुरू कर दिया,लेकिन एक्टिंग के लिए मैं कोशिश करता रहता था.मैंने पहले ही प्रोडक्शन हाउस को बोल दिया था कि मैं 15 दिन ही उनके साथ काम करूंगा और 15 दिन एक्टिंग में स्ट्रगल करूंगा.
ऐड फिल्मों के लिए भी शक्ल देखकर ना बोल दिया जाता था
१५ दिन एक्टिंग में स्ट्रगल के दौरान मेरे जितने भी मेरे साथी कलाकार थे. उनको जब भी ऑडिशन के लिए बुलाया जाता था ,तो मैं भी उनके साथ चला जाता था. हालांकि अक्सर नॉट फिट सुनकर चला आता था.एड फिल्मों के लिए ऑडिशन के लिए जाता था पहले तो कास्टिंग वाले कहते कि ये ऐड फिल्मों के लिए कास्टिंग है . मैं जवाब में बोलता कि क्या उनको एक्टर नहीं चाहिए. वे बोलते कि चाहिए लेकिन अप मार्केट शक्ल वाले लोग चाहिए,लेकिन कोशिश मैं जारी रखी. 2012 के बाद मैंने तय कर लिया कि मैं पूरी तरह से एक्टिंग में ही फोकस करूंगा. उसके बाद मैं सावधान इंडिया,सीआईडी जैसे शोज में कैमियो करता रहा.2015 के बाद चीज अच्छी हुई. रामदेव सीरियल में एक अच्छी भूमिका की. एमएक्स प्लेयर फिल्म में मजमा उसमें भी मेरा काम अच्छा था. पिछले साल जहानाबाद वेब सीरीज में भी दिखा था और क्राइम आजकल शो का भी हिस्सा रहा.
पैसों के चक्कर में इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स छोड़ने का रहेगा अफसोस
मुझे कई बार टीवी और फिल्मों में रिप्लेस कर दिया गया है .उनका मुझे अफसोस नहीं है ,लेकिन मुझे एक इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के हाथ से निकलने का बहुत ही अफसोस है. हॉलीवुड फिल्म चार्लीस एंजेल की लूसी का किरदार करने वाली एक्ट्रेस का प्रोजेक्ट था. मैं इस फिल्म के लिए फाइनल हो चुका था लेकिन पैसे नहीं अच्छे थे. मुझे एक टीवी का ऑफर आया. टीवी में अच्छे पैसे मिलते है.जरूरतों की वजह से लगा कि पहले पैसे कुछ काम लिया जाए फिर इंटरनेशनल प्रोजेक्ट करूंगा. मैंने टीवी शो को हां कह दिया ,लेकिन ऐन मौके पर मुझे टीवी के उस शो से रिप्लेस कर दिया गया था.दोनों प्रोजेक्ट मेरे हाथ से निकल गए थे. वह समय मेरे लिए बहुत ही मुश्किल था.
कुछ ना कुछ अच्छा कर ही लूंगा
मेरी पत्नी और दो बच्चें हैं.सभी ये जानते हैं कि मैं इंडस्ट्री नहीं छोड़ूँगा.मुंबई के अब तक संघर्ष में परिवार वालों ने कई बार बोला कि आ जाओ वापस. छोटा मोटा दुकान ही शुरू कर लो,लेकिन मैं साफ बोल देता था कि इतना समय एक्टिंग की दे चुका हूं कि अब वापस आना नामुमकिन है .अब उन्होंने बोलना भी बंद कर दिया है .वैसे अपने भविष्य लेकर आश्वस्त हूँ कि कुछ ना कुछ कर लूंगा. अब तो प्रोडक्शन हाउससेज के चक्कर नहीं लगाना नहीं पड़ते है. कास्टिंग एजेंसी मालूम है . आपको वहीं चक्कर लगाना है .वैसे कई बार हालात बहुत बुरे भी हो जाते हैं फिर सोचता हूं कि क्या सोचकर मुंबई आया था .हिम्मत जुटायी थी तभी ना फैसला लिया था ,तो उस हिम्मत पर विश्वास करना होगा और उस फैसले को सही बनाने के लिए मेहनत करते रहना है .