90 के दशक का जानामाना चेहरा अक्षय खन्ना एक बार फिर बॉलीवुड में सक्रीय हो गये हैं. इनदिनों वह फिल्म ‘मॉम’ को लेकर सुर्ख़ियों में हैं. फिल्मों से ब्रेक उन्होंने निजी जिंदगी की वजह से लिया है जिसके बारे में वह अब बात नहीं करना चाहते हैं. लेकिन वह यह ज़रूर कहते हैं कि अब वह पूरी तरह से अपने कैरियर पर फोकस करेंगे. चार साल के लंबे अंतराल के बाद उन्होंने फिल्म ‘ढिसूम’ से वापसी की. फिल्म में वरुण धवन, जॉन अब्राहम और जैकलीन फर्नांडीज मुख्य भूमिका में थे. इसके बाद वे हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘मॉम’ में नजर आये. फिल्म में चर्चित अभिनेत्री श्रीदेवी नजर आई थीं. हाल ही में उन्होंने प्रभात खबर.कॉम की संवाददाता उर्मिला कोरी से बातचीत की.
‘मॉम’ फिल्म से जुड़ा अब तक का अनुभव कितना ख़ास रहा है
दस बारह दिन पहले मैंने पूरी फिल्म देखी और मुझे वह बहुत पसंद आई. जितने लोग भी फ़िल्म से जुड़े हैं. मैं उनके लिए एक बात ही कह सकता हूँ कि इज़्ज़त देने वाली फिल्म है. सिर्फ बॉक्स आफिस कलेक्शन नहीं बल्कि लोगों का दिल भी ये फ़िल्म जीतेगी. मैं इस फ़िल्म का हिस्सा हूं इसलिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि ये हकीकत है.
इस फ़िल्म की कौन सी बातें आपको अपील कर गयी थी ?
कोई एक बात तो नहीं है कई बाते हैं. मेरे जैसा अभिनेता का श्रीदेवी जैसे टैलेंटिड अभिनेत्री के साथ काम करना बहुत बड़ी वजह थी. वैसे तो किसी भी फ़िल्म के लिए सबसे अहम किरदार और स्क्रिप्ट होता है. इस फ़िल्म में श्रीदेवी का साथ केक पर आइसिंग की तरह है. बोनी का होना भी वजह बना. बोनी कपूर के भाई अनिल मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं. बोनी के बारे में मैंने बहुत सुन रखा था लेकिन उनके साथ मैंने कभी काम नहीं किया था. इस फिल्म के दौरान समझा क्यों उनका इतना नाम है.
इस फ़िल्म के निर्देशक रवि की यह पहली फ़िल्म है ?
मैं रवि को नहीं जानता था इससे पहले कभी भी नहीं मिला था. यह उसकी पहली फ़िल्म है लेकिन एड वर्ल्ड में उसका 20 साल का अनुभव है. उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिखी है जिसमें बहुत ही परिपक्वता और गहराई थी. मैंने सोचा जब श्रीदेवी इस निर्देशक के साथ काम करना चाहती हैं. बोनी कपूर ने फ़िल्म के निर्देशन के लिए चुना है तो सही ही होगा. मैंने उनके निर्णय पर ही अपना निर्णय लिया और वह सही भी साबित हुआ. मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि रवि के रूप में इंडस्ट्री को एक जबरदस्त निर्देशक मिल ग़या है. इस फिल्म की पूरी टीम बहुत टैलेंटेड लोगों की है. सिर्फ फ़िल्म ही नहीं हर पेशे में यह होता है. जब आप अच्छे लोगों के साथ काम करते हैं तो काम अच्छा होता है. आप बहुत कुछ सीखते भी हैं. सीखना ऐसी चीज़ है कई बार आप सोच कर नहीं सीखते हैं लेकिन आप सीख लेते हैं और कई सालों बाद आपको याद आता हो कि अरे मैंने ये बात तो वहां से सीखी थी.
इस फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दकी भी हैं क्या आपने उनकी कोई फिल्म देखी है ?
मैंने उनकी फिल्में नहीं देखी है हां आमिर खान की फ़िल्म तलाश में मैंने उनका थोड़ा बहुत काम देखा है.
फ़िल्म मेकिंग में किस तरह का बदलाव पाते हैं
सच कहूं तो तो फिल्ममेकिंग का बेस नहीं बदला है और वह आनेवाले समय में भी नहीं बदलेगा. सिर्फ टेक्निक और टेक्नोलॉजी ही बदलती है वरना फिल्ममेकिंग का प्रोसेस तो वही ही होता है. हां मार्केटिंग फ़िल्म के धंधे की सबसे बड़ी जरूरत हो गयी है. अब एंटरटेनमेंट के इतने ज़रिए हो गए हैं. इतनी मारामारी है कि आपको अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करनी होगी. अगर आप मार्केटिंग नहीं करेंगे तो फिर आपकी फ़िल्म कितनी भी अच्छी क्यों न हो आपने कितनी भी अच्छी एक्टिंग क्यों न की हो. दर्शकों को पता नहीं होगा तो फिर कोई फायदा नहीं है. मार्केटिंग से आप दर्शकों का ध्यान अपनी फिल्म के लिए खींच लेते हैं.
आप खुद को एंटरटेन करने के लिए क्या करते हैं
मैं किताबें खूब पढ़ता हूँ. फिल्में देखता हूँ. टीवी देखता हूँ और वेब सीरीज को भी एन्जॉय करता हूं.
क्या आपको मौका मिला तो आप टीवी पर काम करेंगे ?
हां क्यों नहीं क्योंकि अब माध्यम मायने नहीं रखता है. अब कैटेगरी नहीं रह गयी है कि ये बड़ा पर्दा है या ये छोटा. अब तो वेब सीरीज भी दर्शकों को खूब भा रहे हैं. खास बात यह है कि दर्शकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो थिएटर,टीवी या कंप्यूटर पर नहीं बल्कि मोबाइल पर फिल्में देख रहा है. आनेवाले 10 या 15 सालों में इनकी संख्या ज़बरदस्त बढ़ने वाली है.
हाल ही में बॉर्डर फ़िल्म को 20 साल पूरे हुए हैं. उस फिल्म से जुड़ी कुछ खास मेमोरी ?
वह मेरे करियर की बहुत खास फ़िल्म थी. उस वक़्त मैं सिर्फ 19 साल का था. मेरे सामने सनी देओल, सुनील शेट्टी, कुलभूषण खरबंदा, पुनीत इस्सार, जैकी श्रॉफ जैसे अभिनेता था. मैं जे पी दत्ता साहब का शुक्रगुज़ार हूं जो उन्होंने इन् दिग्गजों के सामने मुझे इतना पावरफुल रोल दिया. मैं हिमालय पुत्र और बॉर्डर साथ कर रहा था. दोनों फिल्में कहीं न कहीं मेरी पहली फ़िल्म थी.
आपने अपने कैरियर में काफी उतार चढ़ाव देखे हैं ?
मैं एक आर्टिस्ट हूं.जिस तरह से एक पेंटर पेंटिंग बनाता है वैसे ही मैं भी बनाता हूँ. मेरी कोई पेंटिंग बिक गयी मतलब फ़िल्म हिट हो गयी. कोई नहीं बिकी मतलब फ़िल्म नहीं चली. मैं एक आर्टिस्ट हूं. मेरा काम है पेंटिंग करना. मेरी पेंटिंग बिकेगी या नहीं. ये मुझ पर नहीं है. सफलता और असफलता दोनों आएगी. दोनों को किनारे रखकर आगे बढ़ना मेरे हाथ में है. मैं वही कर रहा हूँ. असफलता की ही परेशानी नही है. कई बार सफलता के भी बहुत साइड इफेक्ट्स होते हैं. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं. जो सफलता को सफलतापूर्वक हैंडल कर पाते हैं. मैं तो बोलता हूं दोनों पर झाड़ू मारो. बस काम करने पर फोकस करना चाहिए.
इंडस्ट्री में हाल ही में नेपोटिज्म पर काफी कुछ कहा ग़या है ?
मैं सबसे पहले पूछना चाहूंगा कि एक आदमी को स्टार बनाता कौन है. फ़िल्म इंडस्ट्री नहीं बनाता है. आम आदमी बनाते हैं. फ़िल्म इंडस्ट्री तो हज़ार फेश को लांच करती है बनाता कौन है उन्हें स्टार दर्शक. वो लड़का फ़िल्म इंडस्ट्री का हो या कहीं का भी हो सकता है. पूछना है तो आप आम आदमी से पूछिए कि आपने विनोद खन्ना या ऋषि कपूर के बेटे को क्यों चुना. दूसरे नए चेहरों को क्यों नहीं. जहां तक फायदे की बात है तो इस इंडस्ट्री की नहीं सभी इंडस्ट्री की बात है. एक कारपेंटर का बेटा भी जब कारपेंटर बनता है तो कारपेंटर अपने ग्राहकों के मिलाता है. पहला काम उसे मिल भी जाए लेकिन दूसरा काम उसे उसकी प्रतिभा से ही मिलेगा. ऐसा हमारे साथ भी है.