अब अजय के निर्देशन में फिर से फिल्म करना है चाहती हैं काजोल
II उर्मिला कोरी II अभिनेत्री काजोल दो दशक बाद फ़िल्म ‘वीआईपी 2’ से किसी साउथ फिल्म का हिस्सा बनी है. यह फ़िल्म हिंदी भाषा में भी रिलीज होगी. काजोल कहती हैं कि पिछले कुछ समय से सिनेमा क्षेत्रीयता के दायरे से ऊपर उठ गया है और ‘बाहुबली’ की सफलता इस बात को और पुख्ता कर […]
II उर्मिला कोरी II
अभिनेत्री काजोल दो दशक बाद फ़िल्म ‘वीआईपी 2’ से किसी साउथ फिल्म का हिस्सा बनी है. यह फ़िल्म हिंदी भाषा में भी रिलीज होगी. काजोल कहती हैं कि पिछले कुछ समय से सिनेमा क्षेत्रीयता के दायरे से ऊपर उठ गया है और ‘बाहुबली’ की सफलता इस बात को और पुख्ता कर जाती है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
फिल्म की स्क्रिप्ट खास- किसी फिल्म को ना कहना मेरे लिए ज्यादा आसान है. हां बोलना ज्यादा टफ होता है. लकी हूं कि मैं इस मुकाम पर हूं कि मुङो काम करने की जरुरत वैसे नहीं है. अगर करना है तो अपने शौक से करना है. शौक के लिए करना है. यही वजह है कि मैं अच्छी फिल्में करना चाहती हूं. एक साल फिल्में नहीं की तो एक कर ही लेती हूं. मेरे साथ ऐसा नहीं है. मैं अपने घर में बच्चों के साथ बहुत खुश मेरी जिंदगी खाली नहीं है. मैं बहुत बिजी हूं. मुझसे किसी फिल्म के लिए हां कहलवाना बहुत बहुत मुश्किल है. ‘वीआईपी 2’ की स्क्रिप्ट मुझे बहुत बहुत पसंद आई थी. मेरा किरदार भी बहुत अच्छा है. तमिल में डब करने को लेकर थोड़ी असमंजस में थी लेकिन जब धनुष और सौंदर्या ने कहा कि मेरे 50 प्रतिशत संवाद अंग्रेज़ी में है और बाकी के 50 में जो भाषा में भी बोलूं वो डबिंग कर लेंगे तो मुझे थोड़ी राहत हुई. तमिल नहीं आती अंग्रेज़ी थोड़ी बहुत बोल लेती हूं. जिसके बाद लगा कि फ़िल्म कर लूंगी.
चुनौतियां थी- इस फिल्म से जुडी जो सबसे बड़ी चुनौती थी वो भाषा की ही थी लेकिन आखिरकर एक एक्ट्रेस हूं चुनौतियों से भाग नहीं सकती. सौंदर्या और धनुष ने भरोसा दिलाया था कि वह तमिल भाषा में मेरी मदद करेंगे. पहले दो दिन तो सेट पर ऐसा लग रहा था जैसे या तो मेरे बोर्ड के एग्जाम है या मैं डिलीवरी करने वाली हूं. शूटिंग शुरू होने से पहली वाली रात को स्क्रिप्ट पढ़ रही थी तो समझ नहीं आ रहा था कि कहां कोमा देना है कहाँ फुल स्टॉप. कुलमिलाकर समझ ही नहीं आ रहा था कि कहां पर रुकना है. हां तीसरे दिन से थोड़ा रिद्म मिला कि कैसे क्या बोलना है. मैंने पहले दिन की जो शूटिंग की थी उसे दो तीन शेड्यूल के बाद रीशूट करने को कहा क्योंकि मुझे पता था कि जिस तरह से वह सीन होना था मैंने उसे वैसे नहीं शूट किया था.
‘बाहुबली’ ने दूरियों को खत्म कर दिया – साउथ फिल्म इंडस्ट्री से जो भी दूरिया थी वो खत्म हो गयी है. इसमें फिल्म ‘बाहुबली’ का विशेष योगदान है. बाहुबली ने साबित किया है जो हम अंतर मानते थे कि यह साउथ इंडस्ट्री है और यह बॉलीवुड, उसे खत्म किया है. साउथ इंडस्ट्री रही नहीं है. उसका एक जॉनर है, अब ऐसा हो गया है. डिजिटल वर्ल्ड भी काफी बदल गया है. टीवी पर सभी डब वाली फिल्में आती हैं. नेटफिल्क्स बोल एमेजन बोल दो. कोई अलग चैनल बोल दो. सभी में अलग अलग तरह की पिक्चरें हैं. अब नॉर्थ ऑडियंस सिर्फ हिंदी फिल्में ही देखेंगी ऐसा नहीं है. अब वो डब मराठी फिल्म भी देखेगी. डब मलयालम फिल्म भी देखेगी. डब स्पाइडर मैन पूरा देश देख रहा है. मैंने सात साल पहले टाटा स्काई पर गुजराती भाषा में स्पाइडरमैन देखी थी. उसके बाद तो मेरा तो नजरिया ही बदल गया कि स्पाइडरमैन गुजराती में आ सकती है तो दुनिया ही बदल सकती है.
एक एक्टर के लिए भाषा महत्वपूर्ण- मैं हिंदी में सबसे ज्यादा सहज होती हूं. यही वजह है कि मैंने दूसरी भाषा में ज्यादा फिल्में नहीं की है. ‘वीआईपी’ फिल्म के दौरान भी बहुत मुश्किलें आयी. हिंदी, मराठी,बंगाली और पंजाबी एक ही तरह की भाषा है. अगर समझ लेते हो तो लेकिन साउथ की भाषा तमिल तेलुगु और मलयालम में उनमे बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि घंटी बज रही है मंदिर में क्योंकि कुछ समझ नहीं आता है. पहले दो दिन ये भी सोच रही थी कि मुझसे गाली भी बुलवा लेंगे तो मुङो समझ नहीं आएगा. मैं तो भजन की तरह बोलती जाऊंगी. दूसरी भाषा की फिल्म में आपको सामने वाले एक्टर के एक्सप्रेशन से समझना होता है कि वह अच्छी चीज बोल रहा है या बुरी.
अब बॉलीवुड भी प्रोफेशनल – अक्सर कहा जाता है कि साउथ इंडस्ट्री बॉलीवुड के मुकाबले ज्यादा प्रोफेशनल हैं. मैं भी इस बात को मानती हूँ कि वो लोग हमेशा से ही बहुत प्रोफेशनल रहे हैं. कट टू कट रहते हैं. ये काम इस समय करना है. वो समय तो वो हमेशा ही मैनेज करते हैं. बॉलीवुड में पहले ऐसा नहीं था लेकिन अब यह भी प्रोफेशनल हो ग़या है. बाउंड स्क्रिप्ट यहां भी अब है. फिल्में समय पर शुरू होती हैं. कुछ पिक्चरें होंगी जहां स्टार लेट से आते होंगे वरना ज़्यादातर लोग समय पर होते हैं. यंग लोग जो भी हैं एक्टर, तकनीशियन, डायरेक्टर सभी काफी प्रोफेशनल हैं.
बच्चे हमेशा बच्चे ही रहेंगे – आपके बच्चे अब बड़े हो गए हैं क्या अब आप ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहेंगी. मैं यह सवाल सुनती रहती हूँ. जितना आप बोल लो. बच्चे बड़े होने के बाद मां का रोल कम हो जाता है जिम्मेदारिया घट जाती है. सरासर झूठ है. अगर आप मां हो तो जिंदगी भर अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ कर रहे होते हो. दादी-नानी नाम बदल जाते हैं लेकिन जिम्मेदारी वही रहती है. एक सीक्रेट है किसी को बताना मत सभी बच्चे अपनी मां को बाई बने देखते रहना चाहते हैं. उनका बस चले तो मेरी मां पोट्टी धोती रहे जिंदगी भर.भले ही वह पच्चीस या तीस के हो जाएं. बच्चे हमेशा मां के लिए बच्चे ही रहते हैं. मैं खुद भी मेरा बस चले तो मैं अपनी मां के गोद में सो जाऊं और कहूं कि मुङो गले लगा लो. मुङो सुला दो तो ये कभी खत्म न होने वाला जिम्मेदारी है. हां मैं काम करना चाहती हूं और 25 साल काम करना चाहती हूं. एक ही या दो सीन क्यों न हो लेकिन मैं अच्छी फिल्म करूं.
अजय के निर्देशन में काम करने की खवाइश- इंडस्ट्री में पच्चीस साल हो गए हैं अगर मेरे विशलिस्ट की बात करें तो मेरी तो ख्वाहिश हैं कि मैं अजय के निर्देशन में फिर से काम करूँ क्योंकि अजय देवगन बहुत अच्छे निर्देशक है. मैं तो हमेशा उसे बोलती रहती हूं कि कब दे रहा है रोल. सोचती हूं कि रोज बोलने से शायद बात बन जाए. अजय की अच्छी बात है कि वह एक्टर भी हैं. वो भी वर्किग एक्टर तो वह एक एक्टर के प्वाईंट को भी बखूबी समझते हैं. वह फाइन थिकिंग एक्टर हैं. वह क्या चाहते हैं. उसे पता है वह समझाने में भी माहिर है. समय और बजट में भी उन्हें महारत हासिल है. निर्देशन इन्ही सब चीजों को मेल है.
नेपोटिज्म अजीब शब्द – इंडस्ट्री में इन दिनों नेपोटिज्म पर जमकर वाद विवाद हो रहे हैं क्यों हो रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा है. हाँ अजीब शब्द है. सुनकर बहुत अजीब लगता है. बच्चे हमेशा अपने माता पिता की तरह ही बनना चाहते हैं. वकील के बच्चे वकील ही बनते हैं, डॉक्टर के डॉक्टर बनते है. यह मनुष्य का स्वभाव है तो इंडस्ट्री में ऐसा है तो क्या हुआ. आप फिल्म की सफलता और स्टार की सफलता पर गौर कीजिएय जो भी सफल हुए हैं. वह अपनी प्रतिभा और मेहनत की बल पर हुए हैं परिवार की वजह से नहीं. कई ऐसे सुपरस्टार्स हैं जो आउटसाइडर्स हैं .ऐसे में मुङो समझ नहीं आ रहा है कि इतना विवाद क्यों रहा है.
निशा बच्ची है- स्टार के बच्चों पर मीडिया की पैनी निगाह होती है. निशा की भी शिकायत रहती है कि ये लोग मुङो अकेला क्यों नहीं छोड़ते हैं. मैं यही कहूंगी कि निशा बहुत छोटी है. 14 साल की बच्ची है. मैं नहीं चाहती कि अजय, मेरी या मीडिया की तरफ से अंजाने में उस पर दबाव पड़े कुछ बनने का. वह खुद तय करे कि उसे क्या करना है. एक्टिंग करना है या और कुछ तो उसे उसके स्पेस में रहने दिया जाए.