#NawazuddinSiddiqui ने ”बाबूमोशाय बंदूकबाज” को लेकर खोले कई दिलचस्प राज, पढ़ें पूरा इंटरव्यू
बॉलीवुड में अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी खास नाम बन चुके हैं. रोल चाहे कोई भी हो वह अपने परफॉरमेंस से लुभा जाते हैं. नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पिछले कुछ समय से अपनी फिल्म ‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’ को लेकर सुर्ख़ियों में है. अपनी इस फिल्म को वह देशी जेम्स बॉन्ड की फिल्म करार देते हैं. फिल्म पहले से ही चर्चा […]
बॉलीवुड में अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी खास नाम बन चुके हैं. रोल चाहे कोई भी हो वह अपने परफॉरमेंस से लुभा जाते हैं. नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पिछले कुछ समय से अपनी फिल्म ‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’ को लेकर सुर्ख़ियों में है. अपनी इस फिल्म को वह देशी जेम्स बॉन्ड की फिल्म करार देते हैं. फिल्म पहले से ही चर्चा में थी लेकिन जब सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म में 48 कट्स लगाने को कहा था तो फिल्म एकबार सुर्खियों में आ गई थी. फिल्म इंटीमेट सीन्स को लेकर खूब चर्चाओं में हैं. फिल्म में नवाज के साथ-साथ बिदिता बाग भी नजर आयेंगी. हाल ही में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी इस फिल्म पर और उससे जुडी कंट्रोवर्सी पर बातचीत की.
नवाज़ इससे पहले भी आपने टाइटल रोल किया है क्या शीर्षक भूमिका निभाने से ज़्यादा जिम्मेदारी होती है ?
मैं इस तरह से किसी फिल्म को नहीं लेता हूँ. मेरे लिए किरदार अहम है. उसका किरदार का टाइटल से जुड़ा होना या न होना मेरे लिए मायने ही नहीं रखता है. मुझे कोई किरदार मिला है उसे कितनी ईमानदारी के साथ निभा सकता हूँ. मेरी कोशिश बस वही होती है. मैं तो फ़िल्म के टिकट खिड़की के चलने या न चलने को भी पर भी ध्यान नहीं देता हूँ क्योंकि बॉक्स आफिस का मेरे करियर और मेरे परफॉर्मेंस पर असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि मुझे पता है कि मुझे काम मिलता रहेगा. एक या दो फिल्में फ्लॉप हो जाने से मुझे फिल्में मिलना बंद नहीं होंगी. ऐसा नहीं हैं क्योंकि मैं खालिस अपने अभिनय की वजह से किसी फिल्म से जुड़ता हूं.
इस फ़िल्म की तुलना ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से हो रही है ?
विजुवली जो इमेजेस हैं, रस्टिक लुक और गन इस वजह से आपको लग रहा है लेकिन दोनों फिल्में एक दूसरे से बहुत अलग हैं।किरदार में ही जमीन आसमान का अंतर था. वासेपुर का फैजल बहुत इमोशनल था रिश्तों को बहुत अहमियत देता था बन्दूकबाज़ का बाबू बेशर्म है. उसके लिए कोई रिश्ता पैसे से बड़ा नहीं है. आज इधर कल उधर. हीरो है लेकिन होपलेस. किरदार से आपको किसी भी तरह की कोई सहानुभूति नहीं होगी. यह काफी रीयलिस्टिक किरदार है. हमारे आसपास हम ऐसे किरदार पाते हैं यह उन्ही में से एक है.
कुशान नंदी बतौर निर्देशक उतने कामयाब नाम नहीं हैं ?
जो कामयाब हैं वे फिलहाल कैसी फिल्में बना रहे हैं आपको पता ही है. नये निर्देशकों की अच्छी बात यह है कि वह बहुत सारी खासियत अपने साथ लेकर आते हैं. उनकी दूसरी तीसरी फिल्म ही होती है तो वह उस पर काफी मेहनत करते हैं. उन पर खुद को साबित करने का भी दबाव होता है. सीजनल निर्देशकों को तो बस प्रोजेक्ट बनाने होते हैं।भगवान का शुक्र है कुशान नए हैं. उन्होंने बहुत काम किया है. पहली ही मीटिंग में यह बात समझ आ गयी थी जिससे मैंने तय कर लिया कि इनके साथ काम किया जा सकता है.
इस फ़िल्म को बनने में काफी लंबा समय लगा है?
नहीं फ़िल्म अपने तय समय पर ही बनी है और शूटिंग खत्म हुए पांच महीने हुए है और ये फ़िल्म रिलीज होने जा रही है. हां कोलकाता में शूटिंग के लिए गए थे वहां फेडरेशन के साथ कुछ विवाद हो गया था लेकिन वहां सिर्फ आठ प्रतिशत ही शूटिंग हुई थी. जिसके बाद हमने कहानी को कोलकाता: से हटाकर यूपी में सेट कर दिया. लखनऊ में फ़िल्म की शूटिंग हुई है.
यूपी बिहार का किरदार होने से क्या आप उनसे ज़्यादा कनेक्ट हो पाते हैं ?
मैं हर उस किरदार से कनेक्ट कर पाता हूँ जो रीयलिस्टिक है और असल जिंदगी में है. बॉलीवुड टाइप के जो हीरो हैं उन्हें करने की मेरी कोई खवाइश नहीं है. अच्छा है वैसे किरदार अब खत्म भी हो रहे हैं. एक हीरो है जो दस लोगों को मार गिराता है. कोई देखना नहीं चाहता है अब तो कंटेंट ओरिएंटेड और रीयलिस्टिक किरदार देखने की लोगों को आदत पड़ती जा रही है.
आपके किरदार को देशी जेम्स बांड कहा जा रहा है ?
अच्छा लग रहा है मैंने फ़िल्म के कुछ फिजिकल एक्शन में जेम्स बांड की कॉपी भी की है. मैं जेम्स बांड की फिल्मों का फैन रहा हूँ. बचपन से ही उन्हें देखता आया हूँ. फ़िल्म में मैं मेरा संवाद भी है मोशाय बाबू मोशाय जो मैंने उसी अंदाज में बोला है.
चित्रांगदा ने इस फ़िल्म को बीच में छोड़ दिया था उस विवाद पर आपका क्या कहना है ?
वह निर्देशक और उनके बीच विवाद हुआ था।मैं तो इतना ही बता पाऊंगा कि उन्हें स्क्रिप्ट से परेशानी थी. स्क्रिप्ट उन्हें कई महीने पहले मिल गयी थी अब वो आखिरी मौके पर उसमें फेर बदल चाहती थी ऐसा तो नामुमकिन था. आपको स्क्रिप्ट से परेशानी थी तो आप फ़िल्म से क्यों जुड़ी.
इस फ़िल्म को लेकर सेंसर में काफी विवाद हुआ था ?
हां विवाद होना लाजिमी था क्योंकि उनलोगों ने 48 कट्स करने को कहा था, 48 कट्स के बाद फ़िल्म में बचता क्या था. सेंसर का काम फिल्मों को सर्टिफिकेट देना होता है कट करना नहीं होता है आप बता तो की ये एडल्ट फ़िल्म है ये सभी के लिए मगर नहीं आपको तो कैंची चलानी है. उसमें भी अलग अलग लोगों के साथ अलग बर्ताव. अजय देवगन निर्मित पार्च्ड में जमकर गालियां थी लेकिन वो फ़िल्म पास हो गयी थी. ऐसे दोयम रैवेयें पर लगाम लगनी चाहिए. वैसे हम खुश हैं ट्रिब्यूनल ने हमारी फ़िल्म को मामूली कट के साथ रिलीज करने का सर्टिफिकेट दे दिया है.
हाल ही में आपने सोशल मीडिया पर रंगभेद को लेकर अपने विचार रखे थे क्या सोच थी उसके पीछे ?
हां कहीं न्यूज़ में आया था कि मेरे अपोजिट किसी खूबसरत और गोरी अभिनेत्री को कास्ट नही किया जा सकता है मतलब मैं काला हूं और बदसूरत हूं इसलिए लेकिन मुझे कोई फर्क नही पड़ता है. मैं इन सब बातों पर ध्यान नहीं देता हूँ.
विज्ञान बहुत आगे जा चुका है क्या आपको कभी लगता नहीं कि आप खुद को दूसरे हीरो की तरह गोरा बना लें?
जब से समझदार हुआ मैंने ये सब करना बंद कर दिया. हां बचपन में मैं भी करता था. मां ही ले आती थी गोरा बनने का क्रीम. हमारे गाँव में फेयर एंड लवली की जो क्रीम है उसका नकली वर्जन आता था. जिसको लगाने से मेरा चेहरा सफेद हो जाता था. गोरा बनने का मतलब है ख़ुद को हीन समझना. आपको अपने कलर पर कॉंफिडेंट नहीं है. इसलिए आप ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं. ऊपर वाले ने सबको अलग अलग खासियतों के साथ पैदा किया है. उसको समझने की ज़रूरत है. अंदर की खूबसूरती को पहचानो: आपको हमेशा अपनी पर्सनालिटी पर कॉन्फिडेंस रखना चाहिए.
आपकी ज़िंदगी में कब वो आत्मविश्वास आया?
बहुत पहले आ गया था. जब लोग मेरी मेहनत को मेरे काम को देखकर मेरी तरफ करने लगे तो मेरे मन से मेरा काम्प्लेक्स भी खत्म हो गया. इंडस्ट्री में कई लोगों ने मुझे बताया था कि आप हीरो टाइप नहीं हो और आज देखिए वही लोग स्क्रिप्ट लेकर मेरे पीछे पड़े हैं. आखिरकार मेहनत और काबिलियत ही काम आती है.
आनेवाली फिल्में
मेरी आनेवाली फ़िल्म मंटो की बायोपिक है जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार है.