#FilmReview: फिल्म देखने से पहले जानें कैसी है नवाजुद्दीन सिद्धिकी की ”बाबूमोशाय बन्दूकबाज़”
II उर्मिला कोरी II फिल्म: बाबूमोशाय बन्दूकबाज़ निर्माता: कुशान नंदी ,किरण श्याम श्रॉफ ,अश्मित कुंदर निर्देशक: कुशान नंदी कलाकार: नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग़, जतिन गोस्वामी, ,दिव्या दत्ता और अन्य रेटिंग: ढाई गैंग और गैंगस्टर की कहानियों से बॉलीवुड का पुराना लगाव है. ‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’ उसी जॉनर की फिल्म है. कहानी का बैकड्रॉप देशी हैं और […]
II उर्मिला कोरी II
फिल्म: बाबूमोशाय बन्दूकबाज़
निर्माता: कुशान नंदी ,किरण श्याम श्रॉफ ,अश्मित कुंदर
निर्देशक: कुशान नंदी
कलाकार: नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग़, जतिन गोस्वामी, ,दिव्या दत्ता और अन्य
रेटिंग: ढाई
गैंग और गैंगस्टर की कहानियों से बॉलीवुड का पुराना लगाव है. ‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’ उसी जॉनर की फिल्म है. कहानी का बैकड्रॉप देशी हैं और किरदार भी हिंदी बेल्ट से हैं लेकिन यहाँ भी गैंगस्टर का अंदाज़ स्टाइलिश है. फिल्म की शुरुआत किशोर कुमार के गानों से होती है जहाँ अपनी तो जैसे तैसे कुछ तो लोग कहेंगे गीतों के ज़रिये बाबू (नवाज़ुद्दीन) के किरदार को बखूबी बयां कर दिया गया है. फिल्म की कहानी इसी बाबू की है जो एक कॉन्ट्रैक्ट किलर है, जो लोगों को मारता है क्यूंकि वही उसकी रोजी रोटी है. लोकल राजनेता जीजी (दिव्या दत्ता) और दुबे जी का वह खास है.
सबकुछ ठीक चल रहा होता है कि बाबू की ज़िन्दगी में फुलवा (बिदिता बाग) आ जाती है फिर यह गैंगस्टर की कहानी लव सेक्स और धोखा वाले मोड़ में चली जाती है. पूरी कहानी के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. फिल्म का फर्स्ट हाफ एंगेजिंग है सेकंड हाफ में कहानी को खींचा गया है. फिल्म के जिस सस्पेंस को छुपाया जा रहा था वह पहले से ही दर्शक जानता है. फ़िल्म एक लाइन वाली कहानी पर आधारित है, जो कमज़ोर है. ट्विस्ट और टर्न से उसे रोचक बनाने की कोशिश हुई है लेकिन इसमें वह नाकामयाब रहे हैं.
फिल्म में जमकर आपको गोलियों और गालियों की आवाज़ सुनाई देगी और सब तरफ खून के छींटे उड़े हैं. जो इस फिल्म को डार्क बना देता है जिसके प्रसंशक एक खास दर्शक वर्ग हैं. अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म की यूएसपी नवाजुद्दीन सिद्दिकी. जिन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह मौजूदा दौर के बेहतरीन अभिनेता हैं. उनका संवाद हो या अंदाज़ थिएटर से बाहर निकल जाने के बाद भी याद रह जाता है. जतिन गोस्वामी बांके के रूप में प्रभावशाली रहे है. बिदिता भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं. दिव्या एक षडयंत्रकारी राजनीतिज्ञ के रूप में अपने खेल के शीर्ष पर है.
फिल्म में पुलिस अफसर की भूमिका में भगवान तिवारी एक अलग ही रंग जमाते हैं. उनके फ़ोन की कॉलर ट्यून हो या लोगों के नाम शेव करने का अंदाज़ फ़िल्म के मूड को हल्का करता है. फिल्म के संवाद इसके प्लस पॉइंट हैं जो इस रस्टिक गैंगस्टर फिल्म के मूड को एंगेजिंग बनाता है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप हैं. आखिर में अगर आप नवाज़ के फैन हैं और गैंगस्टर फ़िल्मी जॉनर आपको पसंद है तो कमज़ोर कहानी के बावजूद यह फिल्म आपको लुभा सकती है.