II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: सिमरन
निर्देशक: हंसल मेहता
कलाकार: कंगना रनौत, सोहम शाह, ईशा तिवारी और अनीशा
रेटिंग: तीन
‘सिमरन’ हिंदी सिनेमा के चुनिंदा नामों में से एक रहा है. ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगी’ की सिमरन से इस फ़िल्म की प्रफुल बनी सिमरन तक. अब तक कई नायिकाओं ने इस नाम के साथ अपने सपनों और ख्वाइशों को जाहिर किया है. बदलते वक्त के साथ समाज में महिलाओं की सोच और भूमिका बदली है तो सिमरन भी बदली है. इस फ़िल्म की सिमरन को अब किसी सपनों के राजकुमार का इंतज़ार नहीं है बल्कि शादी जैसे रिश्ते पर उसका विश्वास ही नहीं है.
वह आम लड़कियों की तरह नहीं सोचती है. प्यार का नहीं बल्कि अच्छी सुख सुविधाओं से भरी ज़िंदगी का वह सपना देखती है. वह बिना शादी किए सेक्स करना चाहती है लेकिन प्रोटेक्शन के बिना नहीं. यह ‘सिमरन’ जमकर फ़्लर्ट करती है. चोरी और जुए की आदत को वह अपनी खूबी बताती है. निडर होकर वह अपनी शर्तों पर जीती है जो है सही है. यही उसकी सोच है. यह सोच इस फ़िल्म की खासियत है. सोच जितनी अलग है वह फ़िल्म की कहानी में नहीं आ पाई है. यही पर ये फ़िल्म चूक जाती है.
फ़िल्म की कहानी अमेरिका में रहने वाली तलाकशुदा प्रफुल्ल पटेल (कंगना रनौत) की है. वो हाउसकीपिंग का काम करती है. उसके माता पिता उसकी फिर से शादी करना चाहती है. लेकिन वह अब अपनी खुशियों के लिए ज़िंदगी जीना चाहती है. वह वेगास कजिन की शादी में जाती है जहां उसे जुए की लत लग जाती है. वह जुए में न सिर्फ हार जाती है बल्कि वह कई लोगों से उधार भी ले लेती हैं. उन लोगों के पैसे वापस करने के लिए वह चोरी का सहारा लेने लगती है.
इसी बीच कुछ लड़के भी उसकी ज़िंदगी में आते हैं. क्या वह लोगों के पैसे दे पाएगी क्या उसकी जिंदगी में फिर प्यार आ पायेगा. इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ अच्छा है सेकंड हाफ में कहानी पूरी तरह से बिखर जाती है. हालांकि फ़िल्म के वन लाइनर फ़िल्म को बोर नहीं होने देते हैं. जिस तरह से चोरी के सीन्स दिखाए गए हैं वह विश्वसनीय नहीं लगते हैं. निर्देशक के तौर पर हंसल मेहता निराश करते हैं. किस तरह से प्रफुल सिमरन बनती है वह रोचक है.
अभिनय की बात करें तो यह कंगना की फ़िल्म है. पूरी फिल्म उन्ही के कंधों पर हैं. उन्होंने बखूबी अपने किरदार को हर सीन में जिया है. वह एक सीन में रुला देती हैं तो अगले ही सीन में हंसाकर लोटपोट कर देती है. कंगना मौजूदा दौर की बेहतरीन अभिनेत्री हैं. एक बार फिर उन्होंने साबित किया है. बाकी के किरदार औसत हैं. कंगना और उनके पिता के किरदार के बीच के सब प्लॉट्स अच्छे बने हैं.
फ़िल्म का गीत संगीत कमज़ोर हैं. क्रेडिट गीत सिंगल रहने दो थोड़ा ठीक ठाक बना है. फ़िल्म के लोकेशन और सिनेमाटोग्रफी बढ़िया है. फ़िल्म के संवाद खास है. हां फ़िल्म में जमकर अंग्रेज़ी संवाद का इस्तेमाल किया गया है जिससे हर वर्ग का दर्शक सहज नहीं होगा. आखिर में अगर आप अलग तरह की फिल्में और कंगना रनौत के प्रसंशक हैं तो यह फ़िल्म आपके लिए ही है. कंगना ने एक बार फिर कमाल कर दिया है.