फिल्‍म समीक्षा : राजकुमार की ‘न्यूटन’ से बदलेगी पारंपरिक सिनेमा की धारा

परदे पर राजकुमार राव की उपस्थिति भी कमोबेश नवाजुद्दीन सिद्दिकी सरीखी हो चली है. उनकी हर आने वाली फिल्म में अलग कहानी और उस कहानी में उनका अलहदा किरदार. ट्रैप्ड, बहन होगी तेरी और बरेली की बरफी के बाद राजकुमार राव की यह इस साल आने वाली चौथी फिल्म है. भारत के सबसे बड़े महोत्सव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2017 2:04 PM
परदे पर राजकुमार राव की उपस्थिति भी कमोबेश नवाजुद्दीन सिद्दिकी सरीखी हो चली है. उनकी हर आने वाली फिल्म में अलग कहानी और उस कहानी में उनका अलहदा किरदार. ट्रैप्ड, बहन होगी तेरी और बरेली की बरफी के बाद राजकुमार राव की यह इस साल आने वाली चौथी फिल्म है. भारत के सबसे बड़े महोत्सव आम चुनाव को केंद्र में रखकर गढ़ी गयी यह फिल्म राजनैतिक और सामाजिक खामियों की परतें उधेड़ती है.
फिल्म बर्लिन फिल्म महोत्सव में अवार्ड भी जीत चुकी है. श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी सरीखे फिल्मकारों की कम सक्रियता और प्रकाश झा के कमर्शियल सिनेमा की ओर झुकाव की वजह से समांतर सिनेमा का जो दौर थम सा गया था, न्यूटन उस दौर को आगे ले जाने वाली फिल्म सरीखी है. न्यूटन (राजकुमार राव) आज के दौर में भी आदर्शवादिता के लिबास में लिपटा युवा है.
बचपन में अपने नाम नूतन से परेशान होकर उसने खुद अपना नाम बदल लिया. नू को न्यू और तन को टन करके खुद को न्यूटन बना लिया. उसके लिए किताब की बातें ब्रह्मा की लकीर सरीखी हैं. सरकारी नौकरी में रहते हुए आदर्श का ऐसा पक्का कि शादी से सिर्फ इस बात से इनकार कर देता है कि लड़की की उम्र 18 से कम है.
ऐसे ही एक बार न्यूटन को चुनावी डय़ूटी में छत्तीसगढ़ के एक इलाके में जाना पड़ता है जिसकी कुल आबादी महज 76 है. वहां के आदिवासियों को चुनाव से कोई सरोकार नहीं है. नक्सलियों का दबाव पुलिस बल को भी निष्क्रिय कर चुका है. ऐसे में न्यूटन इस इलाके में चुनाव कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ लेता है. उसकी चुनावी टीम में टीचर माल्को (अंजलि पाटिल) भी शामिल है. न्यूटन चुनावी उदासीनता के शिकार पुलिस अधिकारी आत्मा सिंह (पंकज त्रिपाठी) को भी बहस के जरिये साध लेता है.
फिर शुरू होता है एक जद्दोजहद भरा सफर जिसमें चुनाव प्रणाली, सरकारी तंत्र और सुरक्षा बलों की खामियां परत दर परत उधेड़ती जाती हैं. फिल्म सुलेमानी कीड़ा के बाद निर्देशक अमित मसुरकर ने एक बार फिर लीक से हटकर कहानी का चुनाव करते हुए खुद को साबित किया है.
राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, रघुवीर यादव और अंजलि के उम्दा अभिनय के दम पर अमित हिंदी सिनेमा के प्रति एक खास उम्मीद जगाते हैं. उम्मीद भेड़चाल से हटकर नयी सोच में सनी सिनेमा बनाने की, उम्मीद यथार्थवादी सिनेमा को मनोरंजक तरीके से परोस दर्शकों को एक अलग स्वाद चखाने की.

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