Loading election data...

4 साल बाद कैमरा फेस करना काफी इमोशनल था, दिमाग में बेटी त्रिशला थी : संजय दत्त

उर्मिला कोरी चार वर्षों के अंतराल के बाद संजय दत्त ने हालिया रिलीज फिल्म भूमि से वापसी की है. यह पिता-बेटी के रिश्ते पर आधारित है. संजय दत्त के मुताबिक इसे करते हुए उनके दिमाग में बेटी त्रिशला की बातें थीं, इसलिए वे फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव भी महसूस करते हैं. उनका कहना है कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2017 11:57 AM
उर्मिला कोरी
चार वर्षों के अंतराल के बाद संजय दत्त ने हालिया रिलीज फिल्म भूमि से वापसी की है. यह पिता-बेटी के रिश्ते पर आधारित है. संजय दत्त के मुताबिक इसे करते हुए उनके दिमाग में बेटी त्रिशला की बातें थीं, इसलिए वे फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव भी महसूस करते हैं. उनका कहना है कि ‘भूमि’ महिला सशक्तीकरण, वीमेन सेफ्टी के मुद्दों को मजबूती से बयां करती है. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
– भूमि में आपको खास क्या लगा?
भूमि की स्क्रिप्ट बहुत कमाल की लगी. निर्देशक ओमंग कुमार बहुत फोकस्ड हैं. उन्हें पता है कि उन्हें अपने एक्टर से क्या चाहिए. फिल्में मनोरंजन का साधन होती हैं, लेकिन कोई सशक्त संदेश दे जाये तो उससे अच्छी क्या बात होगी. ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का मैं पक्षधर हूं. मुझे याद है जेल में रेपिस्ट कैदियों से लोग बात तक नहीं करते थे. मुझे एक हवलदार ने कहा था कि यह अजीब बात है कि एक तरफ हम लक्ष्मी, दुर्गा, काली को पूजते हैं और दूसरी तरफ ऐसा घिनौना क्राइम करते हैं. वाकई ये घटनाएं बहुत शर्मनाक हैं.
– यह तय था कि आपकी वापसी भूमि से ही होगी?
मेरी वापसी कहना ठीक नहीं होगा. मेरी कोई फिल्म चार सालों के बाद आ रहीहै, यह ठीक है. हमेशा से यही फिल्म होगी, यह तय नहीं था. सिद्धार्थ आनंद और विदु विनोद से भी बात चल रही थी. लेकिन उनको कोई स्क्रिप्ट पसंद नहीं आ रही थी, तो भूमि को मैंने हां कह दिया.
– लंबे अंतराल बाद कैमरे का सामना करना कैसा रहा?
नर्वस नहीं था, हां इमोशनल जरूर हुआ था. पहला शॉट देना काफी इमोशनल रहा. वैसे एक्टिंग, स्विमिंग और साइकिलिंग की तरह होती है. एक बार आ गयी तो फिर भूलती नहीं है. कैमरे के सामने आते ही आप एक्टिंग करने लगते हैं.
– फ़िल्म पिता-बेटी के रिश्ते के साथ वुमन सेफ्टी की भी बात करती है. कमी कहां रह गयी है?
हमारे देश में और अधिक फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की जरूरत है, ताकि सभी को जल्दी न्याय मिल सके. खास कर इन केसेज में जल्दी से न्याय मिलना ही चाहिए. निर्भया, नैना पुजारी जैसे केस सुन कर तो मैं हिल गया था. कई रातों तक सो भी नहीं पाया. मुझे नहीं लगता कि निर्भया को पूरी तरह से न्याय मिला. एक रेपिस्ट को कम उम्र का होने की वजह से सजा से माफी देना कहां का न्याय है.
– निजी जिंदगी में आप किस तरह के पिता हैं?
मैं सख्त पिता नहीं हूं. हां, जब पिता नहीं बना था तो जरूर सोचता था कि मैं बच्चों को बहुत अनुशासन में रखूंगा. ऐसा करूंगा, वैसा करूंगा, लेकिन ये सब मुझसे होता नहीं है. बच्चों के सामने मैं बेहद भावुक पिता हूं.
– अपने बच्चों को आपकी क्या सलाह होती है?
यही कि हमारी बातें मानो. समय पर घर आओ. वो दोस्तों के घर पर सोना, नाइट आउट करना मुझे पसंद नहीं है. लड़के-लड़कियां दोनों के लिए एक ही नियम हैं. दत्त साहब के समय से ही ऐसा चला आ रहा है. उन्होंने कभी लड़के-लड़की में भेद नहीं किया. मैं हर बच्चे को यही कहूंगा कि वह अपने मां-बाप की सलाह मानें, तो वह कई मुश्किलों से बच जायेंगे.
– पैरेंट और बच्चों के बीच कैसा रिश्ता हो?
बच्चा चाहे कितना भी बड़ा हो जाये, वह मां-बाप के लिए बच्चा ही रहेगा, ये हमारे संस्कार हैं. जिस दिन बच्चे को आपने फ्रेंडली कर लिया, उसके बाद बच्चा आपके हाथ से निकल जाता है. फ्रेंडली के नाम पर वेस्टर्न चीजों को फॉलो नहीं चाहिए. जब पहली बार मैं स्मोकिंग करते हुए पकड़ा गया था, तो दत्त साहब से खूब पिटाई पड़ी थी.
– बेटी त्रिशला का रुझान किस में है?
उसने फोरेंसिक साइंस और फैशन डिजाइनिंग किया है, तो वह उस में मशरूफ है. उसके जेहन में फिल्में में कैरियर बनाना नहीं है. यह च्वाइस उसकी है. इसमें मेरा कोई दबाव नहीं.
– इंडस्ट्री में एक लंबा समय आपने बिताया है. प्रोफेशनल और पर्सनल में कितना बदलाव पाते हैं?
अब फिल्में टाइम पर बनती हैं. बजट में बनती हैं. इंडस्ट्री बहुत प्रोफेशनल हो गयी है. प्रोमोशन भी फिल्म मेकिंग का अहम हिस्सा हो गया है, इतना प्रोमोशन मैंने कभी नहीं किया था अपने कैरियर में. जहां तक पर्सनल की बात है, तो इंडस्ट्री मेरे लिए हमेशा परिवार की तरह रही है. मेरे अच्छे ही नहीं, मेरे खराब दौर में भी मेरे साथ खड़ी थी. इसके लिए मेरे से ज़्यादा दत्त साहब के गुडविल को क्रेडिट जाता है.

Next Article

Exit mobile version