होमियोपैथी की तरह काम करेगा नोटा: नितेश तिवारी

निर्देशक नितेश तिवारी से खास बातचीत मेरा मानना है कि इस वर्ष चुनाव आयोग ने नोटा (नन ऑफ द एवव) का विकल्प लाकर एक बेहतरीन शुरुआत की है. इससे पहले भारत के अन्य देशों में इसके विकल्प होते हैं. वहां के लोगों को अगर उम्मीदवार पसंद नहीं है, तो वह नोटा का विकल्प चुनते हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2014 7:13 AM

निर्देशक नितेश तिवारी से खास बातचीत

मेरा मानना है कि इस वर्ष चुनाव आयोग ने नोटा (नन ऑफ द एवव) का विकल्प लाकर एक बेहतरीन शुरुआत की है. इससे पहले भारत के अन्य देशों में इसके विकल्प होते हैं. वहां के लोगों को अगर उम्मीदवार पसंद नहीं है, तो वह नोटा का विकल्प चुनते हैं (वे अपने फेवरेट कार्टून को वोट देते हैं. भूतनाथ रिटर्न्स में हमने यही दिखाने की कोशिश की है कि आप कैसे अपने मोहल्ले से खड़े सारे उम्मीदवार को यह जता सकते हैं, दिखा सकते हैं कि हमने आपको नहीं चुना है. आप हमारे लिए सही नहीं हैं.

हालांकि यह सच है कि नन ऑफ द एवव आने के बावजूद वही उम्मीदवार विजयी होगा, जिसे दूसरे स्थान पर मतदान हासिल हुआ है. मसलन अगर नोटा में 40 प्रतिशत बहुमत मिलते हैं और दूसरे किसी उम्मीदवार को 35 तो, 35 प्रतिशत वाला उम्मीदवार ही विजयी होगा. लेकिन कम से कम उसे इस बात की जानकारी तो हासिल है कि हां, वह बहुमत से नहीं आया है. उस पर दबाव बनेगा.

मैं मानता हूं नोटा का विकल्प भारत में होमियोपैथी की तरह काम करेगा. वह धीरे-धीरे असर दिखायेगा. नोटा को अगर लोग बहुमत अधिक देते हैं, तो साफ है कि लोग जागरूक हो रहे हैं. उन्हें यह बात समझ आ रही है कि कोई उम्मीदवार सही नहीं है और अगर वह उस इलाके, मोहल्ले में या देश में काम नहीं करता, तो दोबारा 35 से नीचे भी उसका प्रतिशत गिर सकता है. तो उम्मीदवारों पर निश्चित तौर पर खुद को साबित करने का और काम कर खुद को साबित करने का दबाब तो होगा ही. उसे न चाहते हुए भी ऐसा करना ही होगा. चूंकि उसे भी जागरूकता का एहसास हो चुका है. चेतावनी की तरह काम करेगा नोटा.

* वोटर आइडी होना जरूरी, वोट करना जरूरी

दूसरी बात यह है कि हमने एक अहम मुद्दा यह भी चुना है कि वोटर आइडी होना बेहद जरूरी है. फिल्म में हम दिखाते हैं कि अरे मुझे और कुछ सुनायी नहीं दे रहा. मतलब हम समाज से ही समाज पर दबाव डाल रहे हैं. चूंकि हकीकत यही है कि अगर आपके पास वोटर आइडी नहीं है और आप वोट नहीं कर रहे हैं, तो इसका खामियाजा वे लोग भी भरेंगे जिन्होंने वोट दिया है.

चूंकि इसका असर सीधे चुनाव के नतीजों पर पड़ता है. सो, यह जरूरी है कि समाज का हर व्यक्ति ही एक दूसरे को जागरूक करे और वोट डालने के लिए प्रेरित करे. हमारी यही कोशिश है इस फिल्म से कि लोग वोट करें. लोगों की भागीदारी बढे. जब हर कोई वोट करेगा, तभी सही नतीजे सामने आयेंगे. हमने यह भी दिखाने की कोशिश की है कि आप भले ही कहीं भी काम करते हों, किसी राज्य में काम करते हों, आप वोटिंग में भागीदारी जरूर निभायें.

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