हमारे समाज में पुरुषों को घूरने की पूरी आजादी है: प्रकाश झा

नयी दिल्ली: फिल्म निर्देशक प्रकाश झा का कहना है कि भारतीय समाज में पुरषों को घूरने की आजादी है और सिनेमा इसमें बदलाव नहीं ला सकता. उन्हें लगता है कि सिनेमा महत्वपूर्ण मुद्दों को जीवित रखने में मददगार हो सकता है. झा ने अपनी पिछली फिल्म लिप्सटिक अंडर माई बुर्का के बारे में बात करते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 4, 2017 2:16 PM

नयी दिल्ली: फिल्म निर्देशक प्रकाश झा का कहना है कि भारतीय समाज में पुरषों को घूरने की आजादी है और सिनेमा इसमें बदलाव नहीं ला सकता. उन्हें लगता है कि सिनेमा महत्वपूर्ण मुद्दों को जीवित रखने में मददगार हो सकता है. झा ने अपनी पिछली फिल्म लिप्सटिक अंडर माई बुर्का के बारे में बात करते हुये कहा कि उन्हें महिलाओं के घूरने वाली यह पटकथा अद्वितीय लगी, लेकिन इसे सेंसर बोर्ड से रिलीज कराने में उन्हें कडी मेहनत करनी पडी.

झा ने एक कार्यक्रम में कहा, हमारे समाज में पुरषों को घूरने की पूरी आजादी है. एक पुरुष के नजरिये से सबकुछ की अनुमति है. मूल्य, प्रणाली, …एक पुरुष फिल्मों एवं कहानियों में महिलाओं का पीछा कर सकता है, लेकिन यहां एक महिला पुरुष का पीछा करना चाहती है.’

उन्‍होंने आगे कहा, यहां एक महिला ही महिला के घूरने के मुद्दे पर बात करती है और यही इस कहानी को बिल्कुल अलग बनाती है. सेंसर बोर्ड के साथ अपने विवाद को याद करते हुये झा ने कहा कि वह इस फिल्म को इंटरनेट पर बिल्कुल मुफ्त में रिलीज करने के लिये तैयार थे, लेकिन खुशकिस्मती से फिल्म सर्टिफकिेट अपीलीय ट्रिब्यूनल ने इसे मंजूरी दे दी.

उन्होंने कहा, समाज हमेशा बदलाव चाहता है. सांस लेने की जगह चाहता है. यह एक प्रक्रिया है. मुझे नहीं मालूम कि समाज अचानक महिलाओं के दृष्टिकोण से चीजों को देखना शुरु कर देगी, लेकिन एक और संसार है, जो किसी की कहानी, संगीत अथवा किसी के लेखन से आता है.

झा ने कहा कि उन्हें सिनेमा इसलिये पसंद है क्योंकि यह समाज के कुछ ज्वलंत मुद्दों पर रोशनी डालता है. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं लगता कि फिल्में समाज में वास्तविक बदलाव ला सकती है लेकिन मुद्दों पर विमर्श करने का यह बहुत शक्तिशाली माध्यम है. यह बहुत सशक्त जरिया है.

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