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FILM REVIEW: फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”पंचलैट” की कहानी

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: पंचलैट निर्देशक: प्रेम प्रकाश मोदी कलाकार: अमितोष नागपाल, अनुराधा मुखर्जी, अनिरुद्ध नागपाल, यशपाल शर्मा,राजेश शर्मा,पुनीत तिवारी,प्रणय नारायण और अन्य रेटिंग: ढाई राजकपूर की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पंचलैट’ के ज़रिए एक बार फिर रुपहले परदे पर आई है. पंचलैट 50 के बैकड्रॉप पर […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: पंचलैट

निर्देशक: प्रेम प्रकाश मोदी

कलाकार: अमितोष नागपाल, अनुराधा मुखर्जी, अनिरुद्ध नागपाल, यशपाल शर्मा,राजेश शर्मा,पुनीत तिवारी,प्रणय नारायण और अन्य

रेटिंग: ढाई

राजकपूर की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘पंचलैट’ के ज़रिए एक बार फिर रुपहले परदे पर आई है. पंचलैट 50 के बैकड्रॉप पर बनी फिल्म है. एक गांव की कहानी जहां उस समय के अनुसार जाति के आधार पर कई टोले बंटे हुए थे और ये कहानी महतो टोले की है. जहां गोधन (अमितोष) नाम का एक युवक अपने नाना के गाँव आता है.

गोधन के परिवार में कोई बचा नहीं है. वह अब अपने नाना नानी के जायदाद का वारिस है लेकिन गाँव के पंच ऐसा नहीं चाहते कि उसे वह जायदाद यूँ ही मिल जाये. वह उससे अलग अलग नाम पर रिश्वत लेने की फिराक में है.

गोधन मासूम ज़रूर है लेकिन वह पंचो के नियत से बखूबी वाकिफ है. वह रिश्वत देने से इनकार कर देता है. पंच उसका हुक्का पानी बंद कर देते हैं. गाँव में ब्राम्हण और राजपूत टोला के देखा देखी पंच अपने टोले में भी पंचलैट लाते हैं लेकिन पूरे महतो टोला में उसे सिर्फ गोधन ही जलाना जानता हैं. पंच कैसे अपने मुंह की खाते हैं और गोधन को मनाते हैं यही फ़िल्म की कहानी में वर्तमान और फ्लैशबैक के ज़रिए दर्शाया गया है.

फ़िल्म में एक एंगल लव स्टोरी का भी है. रेणु की कहानियों में समाज और लोगों की सोच और धारणा को भी दिखाया जाता है जो इस फ़िल्म का भी अहम हिस्सा है. फ़िल्म में अलग अलग किरदार हैं जिनकी खासियत फ़िल्म में एक अलग ही रंग भरते हैं. हां फ़िल्म की लंबाई थोड़ी ज़्यादा है अगर फ़िल्म की एडिटिंग पर काम किया जाता तो यह एक अच्छी और एंगेजिंग फ़िल्म बन सकती थीं

अभिनय की बात करें तो उस पहलू पर यह बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म है. विजेंद्र कालरा, प्रणय नारायण,अनुराधा मुखर्जी, अनिरुद्ध नागपाल सभी अपनी भूमिकाओं में पूरी तरह से रचे बसे हैं हां अमितोष और यशपाल शर्मा की विशेष तारीफ करनी होगी. फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.

फ़िल्म से जुड़े दूसरे किरदारों का लुक हो उनकी भाषा या फिर फ़िल्म का लोकेशन पूरी तरह से 50 के दशक के ग्रामीण जीवन को बखूबी कहानी के साथ जोड़ा गया है. जिसके लिए फ़िल्म से जुड़ी टीम की तारीफ करनी होगी. कुलमिलाकर अगर आप मुम्बइया फ़िल्म से इतर फिल्में भी देखना पसंद करते हैं तो यह कोशिश आपको पसंद आएगी.

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