भविष्य की भयावह तस्वीर है कड़वी हवा
।।गौरव ।। सिनेमा दो तरह के होती हैं. पहली वो जो कमायी के जोड़-घटाव वाले समीकरण के खांचे में रखकर बनाया गयी हो, दूसरी वो जो इस समीकरण से बेपरवाह बस ईमानदारी की कड़वी चाशनी में लिपटी हो. कड़वी हवा उसी दूसरी किस्म की फिल्म है. बॉक्स ऑफिस की सोच वाली भेड़चाल से दूर, एक […]
।।गौरव ।।
सिनेमा दो तरह के होती हैं. पहली वो जो कमायी के जोड़-घटाव वाले समीकरण के खांचे में रखकर बनाया गयी हो, दूसरी वो जो इस समीकरण से बेपरवाह बस ईमानदारी की कड़वी चाशनी में लिपटी हो. कड़वी हवा उसी दूसरी किस्म की फिल्म है. बॉक्स ऑफिस की सोच वाली भेड़चाल से दूर, एक ईमानदार मगर कड़वी सच्चई बयां करती फिल्म. क्लाइमेट चेंज जैसी भयावह हकीकत और उसके दुस्परिणाम का आईना.
कमोबेश जिसका टीजर दिल्लीवाले स्मॉग हादसे के दौरान देख चुके हैं. स्थिति की भयावहता का अंदाजा तब आपको खुद ही होता है जब फिल्म के एक दृश्य में आप क्लास रूम में टीचर को सवाल पुछते देखते हैं देश में कितने मौसम होते हैं ? और जवाब आता है दो, जाड़ा और गर्मी, क्योंकि बरसात तो उसने देखी ही नहीं. यह एक जवाब आपको अंदर तक दहला देता है और मजबूर करता है सोचने को कि कब ये जवाब दो से एक हो जाए और फिर एक से विनाश में बदल जाए.
आई एम कलाम और जलपरी जैसी फिल्मों से चर्चा में आये नीला माधव पांडा की यह फिल्म शायद टिकट खिड़की पर भले शेखी बघारती नजर न आये, पर यकीनन आपको झकझोरती, स्थिति की भयावहता से दहलाती और भविष्य के लिए आगाह करती नजर आएगी.
कहानी बुंदेलखंड के छोटे से गांव की है जहां अंधा किसान हेडू (संजय मिश्र) अपने बेटे मुकुंद (भुपेश सिंह), बहू (तिलोत्तमा सोम) और दो पोतियों के साथ रहता है. गांव में पिछले 15 वर्षों से बारिश नहीं हुई है. सूखे की वजह से गांव का हर किसान बैंक का कजर्दार हो चुका है. हर साल बिन बरसात फसल चौपट होने की वजह से कोई कर्ज चुका नहीं पाता.
मुकुंद भी ऐसे ही क ज्रे के बोझ तले दबा है. हेडू इस कज्रे की जानकारी के लिए बैंक के चक्कर भी लगाता है पर निराशा ही हाथ लगती है. कर्ज की वसूली के लिए बैंक की ओर से रिकवरी एजेंट गुन्नू (रणवीर शौरी) भेजा जाता है.
गांव वाले गुन्नू को यमदूत के नाम से बुलाते हैं. गुन्नू की भी अपनी समस्या है. एक ओर उसकी फैमिली है जो उड़ीसा के तुफान में फंसी है और दूसरी ओर वो जिस भी गांव में रिकवरी के लिए जाने को होता है वहां के कई किसान कर्ज वापसी की दहशत से आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसे में जब गुन्नू गांव में क र्ज वसूली के लिए जाता है तब उसकी मुलाकात हेडू से होती है. मौसम की मार ङोल रहे दोनों अपनी समस्या से निबटने के लिए साथ आते हैं.
संजय मिश्र पहले भी समय-समय पर अभिनय की विविधताओं से चौंकाते रहे हैं. गोलमाल अगेन के बाद उन्हें इस रूप में देखना दिली सुकून देता है. हेडू के किरदार में संजय की भावसंप्रेषणता ही रही जो कहानी के दर्द को जरूरी धरातल प्रदान करती है. रही-सही कसर रणवीर शौरी ने चेहरे की झुंझलाहट और अभिनय की बारीकी से पूरी कर दी. कहानी के साथ-साथ चलता गुलजार का गीत मैं बंजर भी कु रेदने का काम करता है.
क्यों देखें– प्रकृति और इंसान के बीच की खींचतान से उपजती भयावह स्थिति को करीब से देखना, समझना और संभलना चाहते हों तो जरूर देखें.
क्यों न देखें- लीक से हटकर फिल्म देखने के आदी न हों तो फिल्म आपके लिए नहीं है.