मुंबई : फिल्म पद्मावती से जुड़े पूरे घटनाक्रम को बकवास बताते हुए वरिष्ठ अभिनेता और फिल्मकार मनोज कुमार का कहना है कि निर्माता और प्रदर्शनकारियों दोनों की गलती है. उन्होंने दोनों पक्षों पर स्थिति से ठीक से नहीं निपटने का आरोप लगाया. पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में कुमार ने कहा, मैं दोनों पक्षों को दोषी कहूंगा. यह बकवास है. अगर राजपूतों को यह महसूस होता है कि कुछ गलत है तो उन्हें फिल्म निर्माताओं को लिखना चाहिए था कि फिल्म रिलीज करने के पहले, कृपया हमें दिखा दें.
उन्होंने कहा, उनकी आपत्ति पर निर्माताओं को उन्हें लिखना चाहिए था कि आइये और फिल्म देखिये और एक घंटे में मामला खत्म कीजिए. यह आपस का झगड़ा सडक पर लाना है. कुछ हद तक मीडिया को भी दोषी बताया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद है कि पद्मावती का अस्तित्व वास्तव में था भी या नहीं.
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म शहीद में काम कर चुके कुमार का मानना है कि इतिहास पर आधारित फिल्म बनाते समय आजादी ली जा सकती है लेकिन यह तथ्यों के साथ छेड़छाड़ किये बिना होनी चाहिए. कुमार ने ही फिल्म शहीद लिखी थी. उन्होंने कहा कि आपको संदर्भ को जोड़ने के लिए सामग्री के ढांचे के अंदर घटनाओं की कल्पना करनी पड़ती है. पद्मावती तमिल में भी बनी लेकिन किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की.
80 वर्षीय अभिनेता ने कहा कि वह भी 1987 में अपनी फिल्म कलयुग और रामायण के साथ सेंसर बोर्ड के शिकार हुए. उन्होंने कहा, फिल्म में एक गाना था कलयुग की सीता मिलने जज को चली, सौ चूहा खाके.., मैं वहां राम-सीता की बात नहीं कर रहा था. यह मेरे लिए एक नया विषय था लेकिन उस समय कुछ समूहों ने सेंसर बोर्ड में भारी हंगामा किया. कुमार ने कहा कि सेंसर की परेशानियों से बचने के लिए दिशानिर्देश स्पष्ट होने चाहिए कि फिल्म को कौन सेंसर कर रहा है और क्या वे सिनेमा की भाषा तथा उसकी पृष्ठभूमि को समझते हैं?