II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म – कालाकांडी
निर्माता-रोहित खट्टर, अशी दुआ
निर्देशक- अक्षत वर्मा
कलाकार -सैफ अली खान,अक्षय ओबेरॉय, कुणाल कपूर,शोभिता धूलिपाला
रेटिंग -डेढ़
हिंदी फिल्मों में कॉमेडी जॉनर बहुत ही पॉपुलर रहा है लेकिन ब्लैक कॉमेडी पर अब तक गिनी चुनी फिल्में ही बनी हैं. ‘कालाकांडी’ इसी जॉनर का प्रतिनिधित्व करती है. फिल्म की कहानी शेयर मार्केट में एक्सपर्ट रिलीन (सैफ अली खान) की है. फिल्म के पहले ही सीन में उसे बताया जाता है कि उसके पास कुछ महीने ही बचे हैं. उसने अपनी जिंदगी में न तो कभी शराबी पिया न ही सिगरेट लेकिन अब वह अपनी बची हुई जिंदगी में वो सबकुछ करना चाहता है.
पूरी फिल्म एक रात की कहानी है. इस एक रात में और तीन कहानियां साथ-साथ चलती है. दूसरी सैफ अली खान के भाई अंगद (अझय) की है. तीसरी कहानी कुणाल रॉय और शोभिता की है और चौथी कहानी गैंगस्टर विजय राज और दीपक डोब्रियाल की है. इन सभी की कहानी में एक बात एक जैसी ही है कि जो इनलोगों ने सोचा था वैसा कुछ हुआ नहीं.
ये सभी किरदार किस तरह से एक दूसरे से टकराते हैं और इनकी जिंदगी में क्या क्या घटता है. इस पर ही यह फिल्म की कहानी है. फिल्म के निर्देशक अक्षत वर्मा हैं. जिन्होंने ब्लैक कॉमेडी की सफल फिल्म देल्ही बेली की कहानी लिखी थी. उनके निर्देशन की इस फिल्म में भी उसका हैंगओवर खत्म नहीं हुआ है. कहानी का ट्रीटमेंट आपको देल्ही बेली की याद दिलाती है. कुलमिलाकर कहानी में ड्रग, सेक्स, गैंग्स्टर्स, एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर, ढेर सारी गालियां और अंग्रेज़ी शब्दों की भरमार.
कमोबेश उसी फिल्म के अंदाज में ही हैं, लेकिन कहानी में देल्ही बेली वाली बात नहीं है. फिल्म की चारों कहानी आधी अधूरी सी है जिससे सबकुछ सतही सा फिल्म देखते हुए जान पड़ता है.जिस वजह से यह फिल्म बोझिल अनुभव सा लगता है.
अभिनय की बात करें तो सैफ अली खान बेहतरीन रहे हैं. उनका अभिनय फ़िल्म का एकमात्र अच्छा पहलू है. विजय राज और दीपक डोब्रियाल भी जिस जिस सीन में आते हैं वो अच्छे बन पड़े हैं. बाकी के कलाकारों का काम औसत है. फ़िल्म का म्यूजिक साधारण है. फ़िल्म के सिचुएशन के साथ वह मेल नहीं खाते हैं.
फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है. फ़िल्म की शूटिंग का अंदाज़ अलग ढंग से की गई है. सड़क पर चलता प्लेन, लिफ्ट में आती समंदर की लहरें ये सब फ़िल्म को एक अलग ही लुक देते हैं. दूसरे पक्ष ठीक ठाक हैं. आखिर में प्रयोग के चक्कर में कालाकांडी बस एक बोझिल फ़िल्म बनकर रह गयी है.