Padmaavat: स्वरा भास्कर के ओपन लेटर का ”राम लीला” के को-राइटर ने ऐसे दिया जवाब
नयी दिल्ली: 25 जनवरी को रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ की एक तरफ जहां जमकर तारीफ हो रही है, वहीं अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने तीखा बयान दिया है. स्वरा ने कहा,’ फिल्म देखने के बाद मैं खुद को योनि मात्र महसूस कर रही हूं.’ खुले खत में स्वरा भास्कर ने इस बात […]
नयी दिल्ली: 25 जनवरी को रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ की एक तरफ जहां जमकर तारीफ हो रही है, वहीं अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने तीखा बयान दिया है. स्वरा ने कहा,’ फिल्म देखने के बाद मैं खुद को योनि मात्र महसूस कर रही हूं.’ खुले खत में स्वरा भास्कर ने इस बात का जिक्र किया कि फिल्म में सती और जौहर प्रथा का महिमामंडन किया गया है. उन्होंने यह भी लिखा है कि फिल्म का लास्ट सीन भंसाली को नहीं रखना चाहिए था.
क्या कहती हैं स्वरा भास्कर ?
स्वरा लिखती है फिल्म के आखिर सीन में दीपिका उर्फ रानी पद्मिनी बाकी राजपूती महिलाओं के साथ जौहर की अग्नि में अपनी इज्जत बचाने के लिए कूद जाती है, लेकिन स्वरा लिखती हैं कि महिलाओं को रेप का शिकार होने के अलावा जिंदा रहने का भी हक है. स्वरा भंसाली से कहती है की सर महिलाएं चलती-फिरती वजाइना नहीं हैं. हां, उनके पास योनि है, लेकिन उनके पास उससे भी ज्यादा बहुत कुछ है. उनकी पूरी जिंदगी योनि पर ही ध्यान केंद्रित करने, उस पर नियंत्रण करने, उसकी रक्षा करने और उसे पवित्र बनाए रखने के लिए नहीं है. फिल्म की कहानी में नारी की अस्मिता को लेकर जो संदेश दे रही है, उस ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा, आपकी महान रचना के अंत में मुझे यही लगा. मुझे लगा कि मैं एक योनि हूं. मुझे लगा कि मैं योनि तक सीमित होकर रह गई हूं.’
उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ…
स्वरा के ओपन लेटर का जवाब ‘राम लीला’ के को-राइटर ने An open letter to all Vaginas टाइटल के साथ ओपन लेटर लिख कर दिया है. उन्होंने लिखा कि महिलाओं के पास वजाइना होती है. यह जीवन का रास्ता है क्योंकि वह जीवन दे सकती है. एक पुरुष लाख कोशिशों के बावजूद भी ऐसा नहीं कर सकता. ऐसे में दोनों जेंडर की समानता के सवाल का सही जवाब मिल जाता है. क्या उन्हें देखकर यह नहीं लगा कि रानी पद्मावती अपने पति को राजगुरू के गलत इरादों के बाद उसे देश निकाला का आदेश देती हैं. उन्हें वजाइना का एहसास तब होता है जब रानी पद्मावती खुद अपना चेहरा खिलजी को दिखाने के लिए तैयार होती हैं? उन्हें वजाइना का एहसास तब होता है जब रानी पद्मावती अपने पति को खिलजी के किले से जाकर छुड़ा कर लाती है? उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ जब रानी रेप की जगह आग को चुनती हैं ?
फेमिनिजम शब्द का गलत अर्थ न गढ़ें
को-राइटर ने आगे लिखा,’ सही, गलत, मजबूत कमजोर सब आप पर है कि अब किस तरह वजाइना की परिभाषा को गढ़ती हैं. फेमिनिजम शब्द को कई बार गलत तरीके से परिभाषित किया गया. इन बात को मत भूलिए कि पुरुषों की बराबरी करना, उनके जैसा बनने की कोशिश करना, यह सब फेमिनिजम की परिभाषा नहीं है. एक महिला ने गुलामी की जिंदगी जीने से ज्यादा खुद को आग के हवाले कर दिया यह उसकी इच्छा थी. इस बात को वजाइना और फेमिनिजम के नाम पर गलत समझना कहां तक ठीक है? इस तरह तो आप किसी महिला के त्याग को भी अपनी सोच से खराब कर रहे हैं.
13वीं सदी से वर्तमान की तुलना कैसे ?
उन्होंने आगे लिखा,’ यह फिल्म 13वीं सदी के दौरान हुई एक घटना का जिक्र कर रही है, लेकिन उसकी तुलना वर्तमान से कैसे की जा सकती है. 700 साल पहले महिलाएं रेप के बजाय मौत को चुनती थीं. इस इतिहास को हम सभी जानते हैं. इसके बाद भी अगर आपको आपत्ति है तो ऐतिहासिक फिल्में देखना बंद कर दें. उन्होंने सती प्रथा का जिक्र करते हुए कहा- यह एक ऐसी परंपरा थी जिसमें पति के मरने के बाद औरतों को ज्यादातर पति के मरने के बाद जबरदस्ती खुद को चिता के हवाले करना होता था. ऐसा कम हुआ है जब किसी महिला ने अपनी इच्छा से सती होना स्वीकार किया है. वहीं जौहर एक ऐसी प्रथा है कि जो महिलाएं स्वेच्छा से चुनती हैं. इतिहास में कहीं भी जौहर को जबरदस्ती कराने का जिक्र नहीं है.