सर्च इंजन गूगल ने अंग्रेजी और मलयालम की मशहूर लेखिका कमला दास को डूडल के जरिये याद किया है. डूडल में वह दार्शनिक अंदाज में अपनी प्रिय डायरी और कलम के साथ दिखाई दे रही हैं. उनकी आंखों की गहराई और चमक उनके चेहरे पर एक अलग नूर ले आई है. बचपन से ही इन्हें घर से ही साहित्यिक माहौल मिला और उन्होंने भी बचपन से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ पर काफी विवाद हुआ था.
यह किताब इतनी पढ़ी गई कि इसका 15 विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया. इस किताब से उन्हें देश में नहीं विदेशों में भी खूब प्रसिद्धि मिली. ऐसा कहा जाता है कि परिवार के सो जाने के बाद वे घर के किचन बैठकर सारी रात लिखती रहती थी. जानें कौन हैं कमला दास…
बचपन कैसे बीता
कमला दास का जन्म 13 मार्च 1934 को केरल के त्रिशूर के पुन्नायुर्कुलम में हुआ था. उनके पिता वीएम नायर केरल के प्रख्यात अखबार मातृभूमि के मैनेजिंग संपादक थे, जबकि कमला दास की मां नलपत बालामणि अम्मा मलयाली भाषा की जानीमानी कवि थीं. कमला दास का बचपन कलकत्ता में बीता, यहां उनके पिता एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में कार्यरत थे.
15 साल में शादी
कमला दास की शादी 15 साल की उम्र में ही माधव दास से हो गई थी. माधव दास पेशे से बैंकर थे. वे कमला दास से 15 साल बड़े थे. 16 साल की छोटी सी उम्र में वो मां भी बन चुकी थीं. माधव दास ने ही कमला दास को लिखने के लिए प्रेरित किया. जल्द ही उनकी रचनायें अंग्रेजी और मलयालम में छपने लगी. कमला दास की जिंदगी में अंकल नलपत नारायण मेनन का भी प्रभाव रहा, वे एक जानेमाने लेखक थे.
मलयालम में ‘माधवीकुट्टी’
कमला दास मलयालम में माधवी कुट्टी के नाम से लिखती थीं, जबकि अंग्रेजी में उन्होंने कमला दास के नाम से लिखा. माधवी कुट्टी उनकी नानी का नाम था. उन्होंने साल 1999 में अचानक धर्मांतरण कर लिया और उनके नाम से आगे सुरैया जुड़ गया. उन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध करते हुए आजादी की मांग की, कहा जाता है इसी वजह से कट्टर मुसलिमों से उनकी बनी रही.
रचनाओं में स्वच्छंद प्रस्तुति
कमला दास ने अपनी रचनाओं में स्त्रीमन की इच्छाओं को खुले और स्वछंद तरीके से लिखा. उनकी रचनाओं में नारी के मन में यौन इच्छा को लेकर किसी किस्म की कुंठा या अपराध बोध नहीं है. कमला दास पर ताउम्र नारीवादी होने का ठप्पा लगा रहा.1976 में आई उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ के नाम से रिलीज हुई. यह काफी विवादों में रही. उनकी इस कृति को घर वालों ने रिलीज होने से रुकवाने की कोशिश की.
बताते चलें कि अपने प्रशंसकों में ‘अम्मी’ के नाम से मशहूर कमला को उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से खासी मकबूलियत हासिल हुई. कमला दास को उनकी शानदार लेखनी के लिए वर्ष 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था. पुणे के एक अस्पताल में 31 मई 2009 को 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था.