EXCLUSIVE: आर बाल्की ने ”पैडमैन” को लेकर खोले कई दिलचस्प राज
‘चीनी कम’, ‘पा’ और ‘की एंड’ का जैसी अपनी फिल्मों से फिल्मकार आर बाल्की ने समाज के प्रचलित मानदंडों को समय समय पर चुनौती दी है. हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश का फलसफा रखने वाले बाल्की इस बार पद्मश्री से सम्मानित अरुणाचलम मुरुगनाथन की कहानी को परदे पर ‘पैडमैन’ के ज़रिए बयां करने वाले […]
‘चीनी कम’, ‘पा’ और ‘की एंड’ का जैसी अपनी फिल्मों से फिल्मकार आर बाल्की ने समाज के प्रचलित मानदंडों को समय समय पर चुनौती दी है. हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश का फलसफा रखने वाले बाल्की इस बार पद्मश्री से सम्मानित अरुणाचलम मुरुगनाथन की कहानी को परदे पर ‘पैडमैन’ के ज़रिए बयां करने वाले हैं. यह उनकी पहली बायोपिक फ़िल्म है. फिल्म में अक्षय कुमार अरुणाचलम मुरुगनाथन का किरदार निभा रहे हैं. आर बाल्की ने हाल ही में हमारी संवाददाता उर्मिला कोरी से फिल्म के बारे में कई दिलचस्प बातें शेयर की…
‘पैडमैन’ आपके कैरियर की पहली बायोपिक है क्या इसे बनाते हुए आप ज्यादा फ्रिकमंद थे ?
हां जब आप बायोपिक बना रहे होते हैं तो आप थोड़े डरे होते हैं कि क्या मैं जिस आदमी की कहानी को परदे पर दिखाने जा रहा हूं. उसके साथ पूरी तरह से न्याय कर पाऊंगा क्योंकि वह आदमी भी मौजूद है. आपके जेहन में यह सब बातें आती हैं.
क्या अक्षय शुरुआत से ही अक्षय इस फ़िल्म के लिए आपकी पहली पसंद है?
ट्विंकल खन्ना ने अरुणाचलम को राजी किया कि वह उन पर फ़िल्म बनाना चाहती हैं. अक्षय शुरुआत से ही इस फ़िल्म से जुड़े थे बावजूद इसके जब इस फ़िल्म के निर्देशन का जिम्मा मुझे मिला तो अक्षय ने कहा कि अगर आपको लगता है कि इस फ़िल्म के लिए मैं परफेक्ट नहीं हूं तो आप किसी और को भी ले सकते हैं. अक्षय कुमार सुपरस्टार हैं. पिछले कुछ समय से वह लगातार सामाजिक मुद्दों को अपनी फिल्म में उठा रहे हैं वो भी मनोरंजक तरीके से तो उनसे बेहतर और कौन हो सकता था.
अक्षय कुमार फिल्म में पैड पहनते हुए नज़र आ रहे हैं , अक्षय उन दृश्यों में कितने सहज थे ?
यह पैडमैन अरुणाचलम मुरुगनाथन की कहानी है और अक्षय उस किरदार को निभा रहे हैं तो उन्हें पैड पहनना ही था. अक्षय जब 25 मंजिला ईमारत से छलांग मारते हैं तब जितना सहज होते हैं उतना ही इस फिल्म में पैड को पहनते हुए थे। वह मौजूदा दौर के उन चुनिंदा एक्टर्स में से है जो हमेशा एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार रहते हैं
फिल्म बनाते हुए क्या आपको लगा कि आपको इसको दूसरे भाषा में डब करना चाहिए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस फिल्म से जुड़े ?
मैं डब नहीं बल्कि इस फिल्म का रिमेक करना चाहूंगा क्योंकि कहीं न कहीं डब करते हुए फिल्म का मूल प्रभाव कम हो जाता है. मैं चाहूंगा कि इस फिल्म के रिमेक में बड़े से बड़ा स्टार जुड़े ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देखने आएं और इंटरटेंमेट के साथ साथ फिल्म से जुड़ा संदेश भी उन तक पहुंच पाएं.
मासिक धर्म यह विषय आज भी हमारे समाज में टैबू माना जाता है. आपको क्या लगता है कि पैडमैन बदलाव लाएगी ?
टैबू तब होता है जब कोई बात नहीं करता है. जब पहला आदमी बात करता है तो कुछ टैबू नहीं होता है. सब यही सोचते हैं कि पहला कौन बात करेगा. जब मैं बात करने लगूंगा तो आप भी बात करने लगोगे. अगर मैं नहीं बोलूंगा तो यह टैबू होगा. मैं मानता हूं कि फिल्म बहुत बड़ा माध्यम है. जहां तक बदलाव की बात है तो बदलाव की शुरुआत हो गयी है. फिल्म का नाम पैडमैन है. अब तक आप पब्लिक में पैड नहीं बोलते थे लेकिन अब आप बोलने लगे हैं. इस फिल्म की वजह से पैड इतनी बार बोला जाने लगा है कि अगली बार आप दुकान में पैड बोलने में हिचकेगे नहीं.
क्या आपको लगता है कि लड़कों को भी यह फिल्म दिखाई जानी चाहिए ?
हाँ सभी लड़कों को यह फिल्म देखनी चाहिए ताकि उन्हें पता हो और पीरियड के दौरान अपने घर और आसपास की महिलाओं को हाइजीन के लिए जागृत करें । यह फिल्म मिडिल ईस्ट में दिखाई जा रही है. एक अरसे बाद वहां कोई फिल्म रिलीज होगी. वह जगह बहुत ही दकियानूसी और पिछड़ी सोच रखने के लिए जानी जाती है लेकिन वह फिल्म का एक भी दृश्य सेंसर नहीं करना चाहते हैं. वह चाहते है जैसी फिल्म है महिलाएं वैसे ही देखें। यह ऐसा मुद्दा है जो सभी जगह है. यूके जैसी जगह में मासिक धर्म के दौरान हाइजीन उनके प्रमुख मुद्दों में से एक है
मासिक धर्म पर फिल्म फुल्लू भी बनी थी आपका उस फिल्म पर क्या कहना है ?
अरुणाचलम ने अपनी फिल्म का ऑफिशियल अधिकार किसी को नहीं दिया था फुल्लू के मेकर्स ने भी इस बात को माना था कि उनकी फिल्म अरुणाचलम पर बेस्ड नहीं है. हमारी पहली फिल्म होगी.
इन दिनों फिल्मों को कई तरह की सेंसरशिप से गुजरना पड़ता है क्या फिल्मकार के तौर पर यह बातें परेशान करती है ?
हां करती है. हर कदम पर सेंसर है. सेंसर बोर्ड तो फिर भी अच्छा है.वो नहीं बोलता कि आपकी फिल्म कैसी होनी चाहिए. वरना फिल्म बनाते हुए स्टूडियो, मार्केटिंग, रिव्यूर फिर टिवट्रर सहित दूसरे सोशल मीडिया और उसके बाद वो ग्रुप आते हैं. जिनकी भावनाएं हर फिल्म के किसी न किसी सीन से आहत हो जाती है. मेरी फिल्म की एंड का सफल फिल्म थी लेकिन उस फिल्म से कई लोगों को परेशानी थी कि इतनी गहराई वाली बात सिंपल तरीके से क्यों कही गयी. अरे भाई मैं लाइफ को सीरियस नहीं लेता हूं. आप लेते हैं तो आप अपनी फिल्म में दिखा दीजिए बनाकर, लेकिन मेरी फिल्म पर मत थोपिए.