Film Review: फिल्म देखने से पहले जानें कैसी है ”पैडमैन”
II उर्मिला कोरी II फिल्म: पैडमैन निर्देशक: आर बाल्की निर्माता: टिंवकल खन्ना कलाकार: अक्षय कुमार, सोनम कपूर, राधिका आप्टे और अन्य रेटिंग :साढे तीन सिनेमा के परदे पर कुछ समय से समाज में टैबू यानि प्रतिबंधित मुद्दे प्रभावी ढंग से सामने आ रहे हैं खास बात यह है कि कमर्शियल फिल्में और मुख्य धारा वाले […]
II उर्मिला कोरी II
फिल्म: पैडमैन
निर्देशक: आर बाल्की
निर्माता: टिंवकल खन्ना
कलाकार: अक्षय कुमार, सोनम कपूर, राधिका आप्टे और अन्य
रेटिंग :साढे तीन
सिनेमा के परदे पर कुछ समय से समाज में टैबू यानि प्रतिबंधित मुद्दे प्रभावी ढंग से सामने आ रहे हैं खास बात यह है कि कमर्शियल फिल्में और मुख्य धारा वाले अभि नेताओं की कहानी की यह हिस्सा बन रहे हैं. अक्षय कुमार इस मामले में अपने समकक्ष अभिनेताओं से आगे नजर आते हैं. खुले में शौच करने जैसे अहम विषय के बाद अक्षय इस बार महिलाओं के मासिक धर्म को अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट के लिए चुना है. पैडमैन फिल्म की कहानी कोयम्बटूर के रहने वाले पद्मश्री अरुणाचलम मुरुगनाथन पर आधारित है.
अरुणाचलम मुरुगनाथन, जिन्होंने महिलाओं को सस्ते सैनेटरी पैड उपलब्ध कराने के लिए एक लंबी लडाई लड़ी है. रुपहले परदे पर नजर आयी फिल्म की कहानी पर आते हैं तो यह मध्यप्रदेश के ल्क्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) की कहानी है. वह एक कारखाने में काम करता है. अपनी पत्नी,मां और तीन बहनों के साथ वह बहुत खुश है लेकिन एक दिन वह माहवारी के वक्त अपनी पत्नी सावित्री (राधिका आप्टे) को गंदे कपड़ो का इस्तेमाल करते देखता है.
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उसे मालूम होता है कि गंदे कपड़े का इस्तेमाल से उसकी पत्नी को कई गंभीर बीमारियां हो सकती है. यहां तक की उसकी मौत भी हो सकती है. वह सेनेटरी नैपकिन खरीद कर अपनी पत्नी के लिए आता है लेकिन वह इतने महंगे नैपकिन का इस्तेमाल करने से इंकार कर देती है. वह कहती है कि फिर घर की तीन औरतों की माहवारी में ही सारे पैसे खर्च हो जाएंगे.
घर में दूध दही सब बंद हो जाएगा.बात सिर्फ पैसों की नहीं है. पीरियड़ को फिल्म में शर्म और लाज से भी जोड़ दिया है. जो की हमारे समाज की हकीकत है. मर्द की बात तो दूर जिंहे पीरियड होता है.वे औरतें भी सबके सामने पीरियड पर बात करने से हिचकती हैं.अलग अलग कोडवर्ड इसके लिए प्रचलित है. सावित्री का किरदार फिल्म में कहता भी है कि शर्म से मरने से अच्छा है कि वह बीमारी से मर जाए.
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लक्ष्मीकांत अपनी पत्नी के लिए खुद से सस्ते पैड बनाने का फैसला लेता है मगर यह राह इतनी आसान नहीं होती है. उसे अपने परिवार, गांव और समाज के विरुद्ध होना पड़ता है. लक्ष्मी की इस लडाई में उसका साथ परी (सोनम कपूर) देती है. लक्ष्मी किस तरह से लडाई जीतता है. इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी. फिल्म की कहानी की लंबाई थोड़ी लंबी हो गयी है खासकर पहले भाग को थोडा ज्यादा खींचा गया है.
सोनम के किरदार के आने से फिल्म की कहानी रफ्तार पकड़ती है. हां सोनम के किरदार और लक्ष्मी के किरदार के बीच प्यार का होना इस फिल्म का आम मुंबईया फिल्म का टच दे जाता है. सिर्फ दोस्ती और इंसायिनत का रिश्ता भी बहुत खास होता है. फिल्म की इन खामियों के बावजूद बाल्की ने कहानी को बखूबी परदे पर उतारा है. कहानी को ज्यादा उपदेशात्मक नहीं बनने दिया है बल्कि मनोरंजन से इसे हमेशा जोड़े रखा.
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फिल्म महिला रोजगार के जरिए महिला सशक्तीकरण की बात भी बखूबी रखता है. यूनाइटेड नेशन में अक्षय कुमार का वन टू वन स्पीच दिल को छूता है.
अभिनय की बात करें तो यह अक्षय कुमार बेहतरीन रहे हैं. अक्षय ने लक्ष्मी के किरदार के सादगी, मासूमियत और उसके जुनून को बखूबी जीया है. यूनाइटेड नेशन में उनके स्पीच वाले दृश्य में वह उम्दा रहे हैं. राधिका आप्टे अपने किरदार में प्रभावी रही हैं. सोनम ने भी अच्छा काम किया है. बाकी के किरदारों की भी तारीफ करनी होगी.वह बखूबी अपनी अपनी भूमिकाओं में जमें हैं.
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फिल्म की कहानी को खास इसके संवाद बना जाते हैं. इंसान वो नहीं जो करोड़ो कमाए, बल्कि वो है जो करोड़ो के काम आए. ऐसे कई संवाद आपको कहानी में मिलतेहैं. फिल्म के गीत संगीत कहानी के अनुरुप है.हां आज से तेरी वाला गीत थिएटर से निकलने के बाद भी याद रह जाता है.
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी की बात करें तो मध्यप्रदेश के महेश्वर में शूट हुई यह फिल्म एक अलग ही रंग कहानी की सादगी में भरते है. आखिर में कुछ खामियों के बावजूद यह फिल्म महिलाओं से जुड़े निजी और गंभीर मुद्दे पीरियड पर घर से लेकर देश और दुनिया के तमाम मर्दों को संजीदा होने की बात रखता है.
यह फिल्म हल्के फुल्के अंदाज में ही सही लेकिन रुढियों पर चोट करती है. यह फिल्म फेमिनिज्म का जश्न मानती है। अगर औरत के दर्द को समझना है तो हर पुरुष को अपने भीतर की नारीत्व को जगाना होगा इसलिए यह फिल्म सभी को देखनी चाहिए.