II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: अक्टूबर
निर्माता: पैन इंडिया
निर्देशक: शूजित सरकार
कलाकार: वरुण धवन, बिनीता संधू और अन्य
रेटिंग: साढ़े तीन
मौजूद दौर के फिल्मकारों में फिल्मकार शूजित सरकार का नाम बहुत खास है. ‘विक्की डोनर’, ‘मद्रास कैफे’, ‘पीकू’ और ‘पिंक’ जैसी फिल्मों में अलहदा विषय और कहानी को कहने वाले शूजित इस बार ‘अक्टूबर’ के ज़रिए प्यार की नई परिभाषा गढ़ी है. अनकंडीशनल लव यह शब्द हमने अब तक कई बार सुना होगा लेकिन इस फ़िल्म ने कभी अपने दृश्य, संवाद तो कभी खामोशी से इस शब्द को पूरी तरह से जीया है.
फ़िल्म की कहानी पर डेन (वरुण धवन) की है जो दिल्ली के पांच सितारा होटल में होटल मैनेजमेंटका ट्रेनी है. उसी होटल में शिउली(बिनीता) भी ट्रेनी है. डेन अपने काम को लेकर संजीदा नहीं है. जिस वजह से आए दिन वह गलतियां करता रहता है और मैनेजमेंट के गुस्से का उसे शिकार होना पड़ता है.
शिउली उसके बिल्कुल विपरीत है. एक दिन शिउली होटल के तीसरी मंजिल से फिसलकर गिर जाती है और कोमा में चली जाती है. उस वक्त डेन वहां मौजूद नहीं होता है. डेन को बाद में मालूम होता है कि शिउली जब गिरी थी उससे पहले उसने पूछा था कि डेन कहाँ है. यह बात डेन को बहुत ज़्यादा प्रभावित कर जाती है और डेन की पूरी ज़िंदगी बदल जाती है. कोमा में गयी शिउली उसकी जिंदगी बन जाती है. डेन के उसी अनकंडीशनल लव को फ़िल्म की पूरी कहानी में बयां किया गया है.
फ़िल्म की कहानी ट्रेजेडी है लेकिन जूही चतुव्रेदी की तारीफ करनी होगी उन्होंने फिल्म को लाइट रखा है. जिससे इस इमोशनल कहानी को देखते हुए भी आप कई बार मुस्कुरा जाते है. बिनीता संधू के किरदार का एक्सीडेंट वाला दृश्य जिस तरह से बिना किसी मेलोड्रामा और म्यूजिक के प्रस्तुत किया गया है उसके लिए निर्देशक शूजित सरकार की तारीफ करनी होगी.
फ़िल्म की कहानी आपके जेहन में कई सवाल भी उठाती है कि ये दृश्य ऐसा क्यों था. क्या शिउली सच में डेन से प्यार करती थी या डेन का भ्रम था. शिउली और डेन के बीच कुछ दृश्यों में एक अनकहा से रिश्ता महसूस होता है लेकिन फ़िल्म में उसपर ज़्यादा फोकस नहीं किया गया है. ऐसे कई सवाल के जवाब शायद आपको न मिले लेकिन यह प्रेमकहानी अधूरी होकर भी पूरी सी आपको लगेगी.
इस प्रेमकहानी का अधूरापन ही इसे खास बनाता है ये कहना गलत न होगा. फ़िल्म रियलिस्टिक है इसलिए जिंदगी और मौत के बीच के द्वंद को भी सामने लाया गया है.
शिउली की माँ और डेन चाहते हैं कि कोमा में गयी शिउली को ज़िन्दगी से अभी भी उम्मीद है जबकि शिउली के चाचा का मानना होता है कि शिउली की ज़िंदगी से सपोर्ट सिस्टम हटा लेना चाहिए क्योंकि उसकी बीमारी का महंगा खर्च परिवार के भविष्य को अंधकार कर सकता है. यह सब पहलू इस फ़िल्म को खास बना जाते हैं. फ़िल्म प्रैक्टिकल होने के लोकप्रिय फंडे को अपनाने के बजाय इमोशनल होने पर ज़ोर देती है.
अभिनय की बात करें तो वरुण धवन इस फ़िल्म में चौकाते हैं. उनकी मस्तीखोर और रंगबिरंगी इमेज से वह इस फ़िल्म में अलग नज़र आए हैं. वरुण के अब तक के कैरियर की यह सबसे उम्दा फ़िल्म कही जा सकती है.
नवोदित अभिनेत्री बिनीता संधू का ज़्यादातर समय अस्पताल में बीतता है. उन्हें संवाद नाममात्र मिले हैं लेकिन उनकी आंखें बोलती हैं. उन्होंने शिउली के किरदार को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था.अपनी पहली ही फ़िल्म से उन्होंने बता दिया कि सिनेमा को एक शानदार अभिनेत्री मिल गयी है.माँ के किरदार में गीतांजलि राव की मौजूदगी फ़िल्म को मजबूती देती है.
फ़िल्म के दूसरे कलाकारों की भी तारीफ करनी होगी. वह रियल हैं।फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी उम्दा है. शांतनु मोइत्रा का संगीत इस फ़िल्म की कहानी में एक अलग ही रंग लिए है. आखिर में अगर आप आम मुम्बइया फिल्मों से इतर फ़िल्म देखना पसंद करते हैं तो यह अधूरी प्रेमकहानी आपको जरूर पसंद आएगी.