बॉलीवुड का फार्मूला फिल्मों से मोहभंग ज़रूरी है- अभय देओल

लीग से हटकर फिल्में करने वाले अभय देओल इन दिनों अपनी हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘नानू की जानू’ को लेकर चर्चा में है. वह इस फ़िल्म को मेनस्ट्रीम सिनेमा में अलहदा प्रयास करार देते हैं. फिल्‍म में उनके अलावा हरियाणवी डांसर सपना चौधरी भी मुख्‍य भूमिका में हैं. बिग बॉस के 11वें सीजन में नजर आ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2018 5:18 PM

लीग से हटकर फिल्में करने वाले अभय देओल इन दिनों अपनी हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘नानू की जानू’ को लेकर चर्चा में है. वह इस फ़िल्म को मेनस्ट्रीम सिनेमा में अलहदा प्रयास करार देते हैं. फिल्‍म में उनके अलावा हरियाणवी डांसर सपना चौधरी भी मुख्‍य भूमिका में हैं. बिग बॉस के 11वें सीजन में नजर आ चुकीं सपना चौधरी इस फिल्‍म से बॉलीवुड में डेब्‍यू करने जा रही हैं. फिल्‍म के कई गाने रिलीज हो चुके हैं. जिसमें दर्शकों ने अभय और सपना चौधरी की कैमेरा को पसंद किया है. अभय देओल से हमारी संवाददाता उर्मिला कोरी की खास बातचीत…

‘नानू की जानू’ में खास बात आपको क्या लगी ?

यह फिल्म साउथ की फिल्म का एडाप्टेशन है. वो हॉरर ड्रामा है. ये हॉरर कॉमेडी है. अब कैसे उन्होंने ड्रामा को कॉमेडी कर दिया है इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी. मेरे लिए कॉमेडी ट्रेजडी का दूसरा नाम है. जो बंदा फिसलकर गिरता है. आप उस पर हंसते हैं लेकिन जो बंदा गिर रहा है. उसके लिए वह कॉमेडी नहीं है. वो तो रो रहा है .ये फिल्म भी बहुत ट्रैजिक है लेकिन आपको बहुत फनी लगेगी. डार्क और फनी उपर से मेनस्ट्रीम फिल्म मुझे यही बात इस फिल्म की सबसे खास लगी. मैं डार्क कॉमेडी का फैन रहा है. स्टेनली क्यूबरिक, कोन ब्रदर्स की फिल्में बहुत मुझे पसंद है.

डार्क कॉमेडी ये जॉनर हमारे यहां की फिल्मों में नाममात्र का नजर आया है ?

इसके लिए हमारे यहां का कल्चर वजह है. हमारे यहां की संस्कृति ऐसी रही है कि हम दूसरे के दुख में हंसते नहीं हैं. सिनेमा समाज और संस्कृति का आइना होने के साथ साथ बनाता भी है. हमारे सिनेमा आइना है. वो बना नहीं रहा है जबकि सिनेमा की जिम्मेदारी बनती है. हम फार्मूला के पीछे ही रहे हैं. धारा के विपरित जाकर हम कुछ नहीं करना चाहते हैं. जिससे दर्शक वर्ग भी हमारी फिल्मों से उस तरह की उम्मीदें नहीं करता है .जॉर्ज क्लून की डार्क कॉमेडी फिल्म पर हमारे यहां के ही दर्शक हंसते हैं लेकिन फिर वहीं कॉमेडी अगर हमारे देश का कोई अभिनेता करें जिसमे गाने न हो तो वो देखने नहीं जाएंगे. वो विदेशी हैं वो ऐसा करते हैं हम नहीं करते हैं. इस सोच को तोड़ना जरुरी है. अगर हम नहीं तोडेंगे तो हम खुद को एक दायरे में सीमित करते जाएंगे.

मौजूदा दौर का फिल्म सीनारियो का आप कैसा देखते हैं.

मुझे लगता है कि अब फिर से बदलाव आ रहा है. यही वजह है कि आप मुझे और काम करते हुए देखेंगे. जो ऑडियंस 2007-08 में आठ नौ साल की थी अब वो अठारह उन्नीस की हो गयी है. उनके पास इंटरनेट आने से बहुत सारी च्वॉइस आ गयी हैं. 40 की उम्र के लोग सोशलिस्ट डेमोक्रेसी में पले बढ़े थे. उनका उतना एक्सपोजर नहीं था इसलिए किक्रेट और बॉलीवुड इतने बड़े हैं क्योंकि इंटरटेमेंट के नाम पर वही था. एक बार कैपिटलिस्ट इकोनॉमी हो गयी हमारी तब बाहर की गाडियां और ब्रांड आना शुरु हो गए .फिर इंटरनेट से बाहर की फिल्में, शोज आ गए. एक जेनेरेशन जो टिकट खरीद सकता है वो बडा हो गया है. उनके पास बहुत सारी च्वॉइस है. इसी जेनेरेशन की ज्वॉइस पर खरा उतरने के लिए सिनेमा में भी बदलाव आएगा.

क्या आपको लगता है कि डिजिटल कंटेंट खासकर विदेशी कंटेंट की बढ़ती लोकप्रियता से हमारा बॉलीवुड प्रभावित होगा.

मुझे लगता है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री हमेशा रहेगी. अगर आप विश्व में देखेंगे तो हॉलीवुड इंडस्ट्री ने हर जगह की लोकल फिल्म इंडस्ट्री को खत्म कर दिया है. अब तक सिर्फ बॉलीवुड पर ही हॉलीवुड हावी नहीं हो पाया है. जिससे यह उम्मीद है कि हमारा सिनेमा जिंदा रहेगा. जिस तरह से हॉलीवुड के साथ हुआ. वही इंटरनेट के साथ भी होगा. लोग देखेंगे लेकिन वो अपनी फिल्मों को भी देखेंगे. हां हमारे लिए इंटरनेट चुनौती जरुरी बनेगा. यह अच्छा भी है क्योंकि इससे हम नये आइडियाज के बारे में सोचेंगे. हमें नए के बारे में सोचने की जरुरत है. नयी प्रतिभा को आगे बढ़ाने की जरुरत है. हमारी परेशानी है कि हम हमेशा चीजों को रिहैश करने की सोचते हैं. ये है अगला शाहरुख खान ये है अगला सलमान खान. आप लोग ही लिखते हैं. यही एट्टीट्यूड हमें हमेशा उसी फार्मूला में रखेगा. जो आ चुका है एक्टर उसकी फिर से जरुरत नहीं है. नए एक्टर को उसकी नयी पहचान से पहचानो. उसे अगला शाहरुख सलमान मत बनाओ.

क्या सीरियस अभिनेता के टैग ने आपके पास ऑफर्स की कमी कर दी है

मैं फिलहाल पॉजिटिव चीजों में फोकस करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि मैं किसी तरह का प्रेशर नहीं लेना चाहता हूं. यही वजह है कि मुझे इस टैग से भी शिकायत नहीं है क्योंकि इस टैग के साथ भी मैं पॉजिटिव बात को देखता हूं मतलब मैं सीरियस हूं जो करता हूं वो सीरियस ही करता हूं फिर चाहे वह कॉमेडी हो या एक्शनमैं सच कहूं तो मैं पैरेरल सिनेमा में कोई बदलाव लाने के लिए काम नहीं कर रहा हूं. अगर मैं ऐसा सोचने लगा तो मैं उसी ओर चला जाऊंगा. मेरा ध्यान अपने कैरियर को बनाने में है न की सिनेमा में कोई बदलाव लाने का।अगर मैंने खुद को स्थापित कर लिया तो जो भी बदलना है या टूटना है वह खुद ब खुद हो जाएगा।. हां मैं अलग तरह की फिल्मों का हिस्सा बनना चाहूंगा. मेरा मानना यह भी है कि अगर इंडस्ट्री आपको वो आर्टिस्टिक स्पेस नहीं दे रही है. जो आप चाहते हैं तो इसमे गलती इंडस्ट्री की नहीं है बल्कि आपकी है. इस पर सोचने और लड़ने से अच्छा है कि आप खुद का मानक बढाएं. मुझे खुशी है कि मैंने ऐसा किया. गलतियां करना गलत नहीं है गलतियों से न सीखना गलत है.

अभय आपने कहा कि अब आप जिंदगी के सिर्फ पॉजिटिव साइड को ही देखना चाहते हैं क्या बदलाव कब आपके जेहन में आया.

आप सुबह उठते हैं और दीवार से टकराते हैं. एक दिन ऐसा होगा तो ठीक है लेकिन जब लगातार ऐसा होने लगे तो फिर आपको तय करना होता है कि आपको ये दर्द लेना है या नहीं. मेरे साथ भी यही हुआ. अब मुझे दर्द नहीं सहना इसके लिए आपको जिंदगी की पॉजिटिव साइड को देखना जरुरी है. इसमे मेरी मदद एलेन वाट के वीडियो लेक्चर बहुत करते हैं. मैंने बकायदा उनके कई लेक्चर को इकट्टा किया है. उनके लेक्चर सुनने के बाद मुझमे बहुत बदलाव आया है. यह मुझे पॉजिटिव करने के साथ साथ जिंदगी के हर पक्ष में खुशी ढूंढने लगते हैं.

आपने फेयरेस क्रीम पर सवाल उठाकर अपने फिल्म फ्रेटनिटी को सवालों के घेरों में ला दिया था और कौन से मुद्दे हैं जिन पर आप सवाल उठाना चाहते हैं.

हां मुझे अच्छी तरह से याद है. मैंने एक अखबार को उस पूरे मुद्दे पर इंटरव्यू दिया था. अगले दिन क्या देखता हूं उसी अखबार के फ्रंट पेज पर फेयरनेस क्रीम की बड़ी सी विज्ञापन है और मेरा आर्टिकल भी ये मेरे लिए बहुत ही शॉकिंग था. आप फिल्म इंडस्ट्री पर सवाल उठाते हैं कि स्टार्स ऐसे विज्ञापन फिल्म करते हैं लेकिन उनको बढ़ावा आपका पेपर और न्यूज चैनल भी तो देता है. यही वजह है कि अब मैंने तय कर लिया है कि मैं उस पर बात नहीं करूंगा. अब मैं सिर्फ पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर पर ही बात करूंगा.

निजी जिंदगी के फ्रंट पर क्या चल रहा है

निजी जिंदगी में मैं सिंगल हूं और मैं अपने सिंगल स्टेट्स को बहुत इंज्वॉय कर रहा हूं. मैं कई सालों तक रिलेशनशिप में रहा हूं. अब मैं सिंगल रहना चाहता हूं. कम से कम दो सालों तक. मैं फिलहाल सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहता हूं.

यमला पगला दीवाना फिर से में पूरा देओल परिवार है क्या आप भी ऐसी किसी फिल्म का हिस्सा बनना चाहते हैं

हां ज़रूर लेकिन मुझे ये भी डर लगता है कि क्या मैं ताया (धर्मेंद्र) जी के सामने एक्टिंग कर पाऊंगा. मैं अभी भी उनसे बहुत डरता हूँ.

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