उर्मिला कोरी
फ़िल्म: नानू की जानू
निर्देशक: फ़राज़ हैदर
कलाकार: अभय देओल,पत्रलेखा,मनु रिषि,बृजेश कालरा और अन्य
रेटिंग: दो
भूतनी के इंसान के साथ प्यार की कहानी ‘नानू की जानू’ है. फ़िल्म की कहानी तमिल की सफल फिल्म पिसासु से प्रभावित है.तमिल फिल्म एक ड्रामा फ़िल्म थी जबकि नानू की जानू एक हॉरर कॉमेडी फिल्म है. फ़िल्म की कहानी की बात करें तो यह नानू (अभय देओल) की कहानी है. जो दिल्ली का एक गुंडा है.अपने दोस्तों के साथ मिलकर वह दूसरे के घरों पर कब्ज़ा करता है. इसी बीच नानू सड़क हादसे में बुरी तरह से चोटिल लड़की सृष्टि (पत्रलेखा) को अस्पताल ले जाता है.
उसे बचाने की कोशिश करता है लेकिन वह मर जाती है. यही मरी हुई लड़की भूतनी बनकर नानू के पीछे पड़ जाती है. वह नानू को बहुत चाहती है लेकिन नानू उससे बहुत डरता है. उसके बाद शुरू होती है कॉमेडी.
इस प्यार की कहानी के साथ साथ फ़िल्म में एक सस्पेंस भी है कि सृष्टि की मौत से जुड़ा. इन सब सवालों के जवाब आपको फ़िल्म देखने के बाद मिल जाएगा.
स्क्रिप्ट की बात करें तो फ़िल्म शुरुआत में ज़रूर कुछ कुछ दृश्यों के ज़रिए ही सही लेकिन एंटरटेन करती है लेकिन इंटरवल के बाद फ़िल्म पूरी तरह से बोझिल हो जाती है.
फ़िल्म इंटरवल के बाद खासकर आखिरी एक घंटे में इमोशन, हॉरर के साथ साथ संदेश जोड़ने के चक्कर में पूरी तरह से मनोरंजन से भटक जाती है. रोड़ सेफ्टी से लेकर मोबाइल तक सब पर भाषण शुरू हो जाता है.जिससे यह हल्की-फुल्की कॉमेडी सी लगने वाली फ़िल्म बचकानी सी लगने लगती है.
अभिनय की बात करें तो अभय देओल एक मंझे हुए अभिनेता हैं. हमेशा ही वह परदे पर अपने किरदार में रच बस जाते हैं. पत्रलेखा को फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. वह फ़िल्म में 15 से 20 मिनट ही कुलमिलाकर नज़र आयी हैं. बृजेन्द्र कालरा और राजेश शर्मा सहित दूसरे कलाकारों का काम ठीक ठाक था.
मनु ऋषि की तारीफ करनी होगी. उनका अभिनय इस फ़िल्म की एकमात्र यूएसपी कहा जाए तो गलत न होगा. तू जानता है मैं कौन हूं वाला इंसान उन्हें दिखाया गया. फ़िल्म के दो तीन दृश्यों में वह लाजवाब रहे हैं.
फ़िल्म का गीत संगीत औसत है. सपना चौधरी की मौजूदगी वाला गीत भी बेअसर सा है. फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी और संवाद अच्छे हैं. कुलमिलाकर हॉरर कॉमेडी वाली यह फ़िल्म मनोरंजक करने से चूकती है.